
Bheru ji mandir Ringas Rajasthan: देशभर में शेखावाटी का क्षेत्र देवी-देवताओं के विशाल मंदिरों और आस्था और विश्वास के नाम से जाना जाता है. इसकी शुरुआत शेखावाटी के तोरण द्वार कहे जाने वाले रींगस से होती है. इसी तोरण द्वार से महज 4 किलोमीटर की दूरी पर कस्बे के प्रवेश से पहले स्थित है लोक देवता भैरव बाबा का विशाल मंदिर. रींगस के श्मशान वाले भैरू बाबा को जयपुर के सबसे ज्यादा समय तक सांसद रहे गिरधारीलाल भार्गव भी आराध्य मानते थे. जब भी लोकसभा चुनाव के परिणाम का दिन आता, वो उस दिन यही आकर पूजा-अर्चना करते. जीत की घोषणा होने के बाद ही यहां प्रसाद चढ़ाकर वापस जयपुर जाते.
पहले होती थी पशु बलि, लेकिन अब बैन
भैरव बाबा के मंदिर में प्रसाद के रुप में गुलगुले, पूड़ी, पकौड़ी, लड्डू-पतासे और शराब चढ़ाई जाती हैं. बरसों पहले यहां पशु बलि भी दी जाती थी, लेकिन एक संत के आह्वान पर यहां पशु बलि अब पूर्णतया निषेध है. भैरू बाबा का वार्षिक लक्खी मेला भाद्रपद माह में शुक्ल पक्ष पर लगता है.
इस मंदिर से जुड़ी है यह मान्यता
करीब 700 साल पुराने इस मंदिर के इतिहास के पीछे कई तरह की कहानियां सामने आती हैं. वहीं, प्राचीन ग्रंथो की मानें तो ब्रह्मा के पांचवें मुख से भगवान शिव की बुराई की गई थी. इसी बुराई के परिणामस्वरूप भगवान भोलेनाथ के पांचवें रुद्र अवतार माने जाने वाले भैरव बाबा ने ब्रह्मा के उस पांचवें मुख्य की हत्या कर दी थी.
माना जाता है कि भैरव बाबा पर उस ब्रह्महत्या का पाप लगा. उसी पाप के प्रायश्चित के लिए भगवान विष्णु के द्वारा बताएं मार्ग के अनुसार भैरव बाबा तीनों लोकों की यात्रा करने निकल पड़े. कहा जाता है कि उनकी यह यात्रा यही रींगस से शुरू हुई थी. मंदिर के 14 पीढ़ियों से पूजा अर्चना कर रहे पुजारी (भोपा, गुर्जर) परिवार भी इसी बात को मानते हैं.

मूर्ति अपनी जगह से कभी नहीं हिली
पुजारी परिवार के वरिष्ठ सदस्य मामराज गुर्जर ने जानकारी देते हुए बताया कि भैरू बाबा की छोटी सी मूर्ति लेकर हमारे दादा-परदादा चरवाहे के रूप में पहले भैरू बाबा को जगह-जगह यात्रा करवाते थे. क्योंकि उनको श्राप से मुक्ति दिलाने का यही मार्ग था. जब भैरू बाबा श्राप से मुक्त हो गए तो गुर्जर परिवार ने उनकी इस मूर्ति को रींगस में वापस लाकर रखा था. लेकिन उसके बाद यह मूर्ति दोबारा यहां से किसी भी सदस्य से ना तो हिली ओर ना ही उठाईं गई. तभी से आज तक रींगस में ही भैरव बाबा की विशेष पूजा-अर्चना होती है. दोनों समय आधा-आधा घंटे विशेष आरती होती है.
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