Rajasthan News: ब्रज का नाम आते ही सबसे पहले भगवान श्री कृष्ण और राधा रानी की तस्वीर सामने आती है. इसके साथ ही भगवान श्री कृष्ण और राधा रानी से जुड़े स्थान, उनके प्रसंग, उस प्रसंग का इस समय पर हो रहा पालन सहित कई चीजें जेहन में आती है. ब्रज की होली के साथ-साथ यहां की कई परंपराएं भी बेहद मशहूर है. इस बीच आज हम आपको ब्रज क्षेत्र की उस परंपरा के बारे में बताने जा रहे हैं जहां करीब 10 हजार साधु-संतों को एक ही परिवार की 40 महिलाएं चूल्हें पर खाना पका कर खिलाती है.
दरअसल ब्रज भ्रमण करने के लिए 43 साल पहले साधु-संतों ने बृज यात्रा की शुरुआत की थी. इसके बाद इस ब्रज यात्रा में करीब 10 हजार से अधिक साधु संत शामिल हुए. वहीं इस समय यह यात्रा राजस्थान के डीग जिले में पहुंच गई है और जहां-जहां से यह यात्रा निकल रही है. वहां-वहां के निवासियों के द्वारा इस यात्रा का भव्य स्वागत सम्मान किया जा रहा है.
राजस्थान के डीग जिले में एक ऐसा परिवार है, जिसकी महिलाओं द्वारा पिछले चार साल से यात्रा में आने वाले 10 हजार साधु-संतों के लिए मिट्टी के चूल्हे पर खाना तैयार किया जाता है. साथ ही महिलाओं के द्वारा जब खाना बनाया जाता है, तो देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग पहुंचते हैं.
4 साल से करा रहे भोजन
सुनील कुमार ने बताया कि इस ब्रज यात्रा में 10 हजार के आस पास साधु संत हैं. यह यात्रा जहां-जहां से गुजर रही है, वहां के लोगों द्वारा साधु संतों के स्वागत सम्मान के साथ-साथ भोजन प्रसादी की व्यवस्था की जा रही है. इसी क्रम में जिले के महमदपुर गांव निवासी विष्णु का परिवार पिछले चार साल से इस बृज यात्रा में शामिल 10 हजार साधु संतों की सेवा में भोजन की व्यवस्था करता है.
40 चूल्हों पर बनाता है खाना
जिसके लिए मिट्टी के करीब 40 चूल्हों पर एक साथ परिवार की 40 महिलाओं द्वारा गेहूं और बाजरे की चपाती के साथ सब्जी बनाई जाती है. इसके साथ ही परिवार की ओर से खाना बनाते समय पूरी शुद्धता का ध्यान रखा जाता है. इस परिवार के द्वारा जब खाना तैयार किया जाता है तो इसे देखने के लिए आस-पास के लोग बड़ी संख्या में पहुंचते हैं.
1981 से शुरू हुई यात्रा
इसके बाद में जैसे-जैसे यह यात्रा आगे गांवों में प्रवेश करेगी वहां के लोगों के द्वारा देवी देवताओं के चबूतरो पर साधु संतों के भोजन प्रसादी के लिए 56 भोग सजाकर के रखें जाएंगे. सन 1981 में ब्रज यात्रा की शुरुआत हुई थी. ब्रज यात्रा का उद्देश्य भगवान श्री कृष्ण और राधा रानी की लीला स्थलों का भ्रमण करना है.
इस यात्रा में शामिल साधु संतों द्वारा चार प्रकार के वनों का भ्रमण किया जाता है. जो वन, उपवन, प्रतिवन, अधिवन हैं, जिनके दर्शन करते हुए ये आगे जाते हैं. इन्हीं वनों में भगवान श्री कृष्ण और राधा रानी जी की बाल लीलाओं का समावेश बताया गया है.
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