Jodhpur News: वैश्विक स्तर पर अब भारत की तकनीक का दुनिया भी लोहा मान रही है. कृषि मंत्रालय के अधीन आने वाले केंद्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान (CAZRI) जोधपुर कृषि की क्षेत्र में लगातार अपने नए शोध और अध्ययन को लेकर कई नए कीर्तिमान स्थापित कर रहा है. इस बार भीषण गर्मी के बावजूद काजरी के वैज्ञानिकों ने 'टिश्यू कल्चर तकनीक' के जरिए विदेशी खजूर की पम्बर पैदावार की है. विदेशी नस्ल के इन खजूर की यह विशेषता भी है कि यह कम पानी में भी अधिक पैदावार देने की क्षमता रखते हैं, जिससे किसानों की आय पर भी इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ता है.
वैज्ञानिकों की 10 वर्ष की मेहनत ला रही रंग
दरअसल काजरी के वैज्ञानिकों की 10 वर्ष पूर्व की मेहनत अब रंग ला रही है, जहा झुलसा देने वाली भीषण गर्मी व कम पानी के बावजूद पौष्टिकता से भरपूर मीठे और स्वादिष्ट खजूर पैदा हो रहे हैं. यह सब काजरी की 'टिश्यू कल्चर तकनीक' से सफल हुआ है. 1 हेक्टेयर में उगाए गए खजूर की गत वर्ष की तुलना में बंपर पैदावार हुई है, जिसके कारण इसके इनकी बिक्री में भी इजाफा हुआ है. केंद्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान (CAZRI) हेक्टेयर में टिश्यू कल्चर तकनीक (Tissue Culture Technique) से तैयार हुए खजूर के लगभग 160 पौधे लगे हैं, जो 10 वर्ष पूर्व गुजरात के आनन्द कृषि विश्वविद्यालय से यहां लाकर लगाए गए थे.
इस तकनीक से होगी अधिक पैदावार
एनडीटीवी से खास बातचीत करते हुए काजरी के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. धीरज कुमार सिंह ने बताया कि काजरी के द्वारा हमने यहां सबसे पहले टिश्यू कल्चर पौधों को लाकर रोपित किया जो आज पूर्ण रूप से वयस्क होकर पेड़ का आकार ले लिए हैं और खुशी की बात है कि इसमें खजूर की भरपूर पैदावार भी आ रही है. यह 'टिश्यू कल्चर तकनीक' (Tissue Culture Technique) की सफलता को इंगित करता है और इस बार भीषण गर्मी की चुनौती के बावजूद भी खजूर की बंपर पैदावार भी हुई है. आगे आने वाले समय में खेत-खलियान इसी तकनीक के बलबूते पर किसानों को 6 गुना अधिक पैदावार देने में सक्षम है.
ये खजूर पौष्टिकता से भी भरपूर है. हालांकि, पश्चिमी राजस्थान में पहले भी खजूर हुआ करते थे, लेकिन यहां की जो परंपरागत किस्म है. उगने में भी अधिक समय लेती है और उन पर फ्रूट आने में भी काफी समय लगता है और वहीं दूसरी और फलों की जो गुणवत्ता है. उनमें भी काफी फर्क देखा गया है तो इन्हीं सब तथ्यों को देखते हुए काजरी ने इसकी नई किस्म की खोज की ओर गुजरात के कृषि विश्वविद्यालय से एडीपी-1 किस्म की पौधों को लाकर यहां जो एक अच्छी किस्म का पौधा है. आमतौर पर बाजार में जो फल आता है, वह पीले या गहरे भूरे रंग का होता है और इस किस्म पर लगने वाले फल गहरे लाल व गुलाबी रंग के होते हैं और इसमें प्रचुर मात्रा में विटामिन, मिनरल्स और एंटीऑक्सीडेंट की भरमार है और इसीलिए यह किसानों और आम लोगों की पहली पसंद भी है.
किसानों के लिए लाभदायक है यह तकनीक
काजरी वैज्ञानिक डॉ. धीरज कुमार सिंह के अनुसार, खजूर का यह पौधा 4 साल में उपज देना शुरू कर देता है. एक बार यह पौधा वातावरण के अनुकूल स्थिर हो जाए तो और अधिक फल देता है. वहीं इसकी जड़ें काफी गहरी जमीन में जाती हैं जिस वजह से यह गहराई से भी खुद की आवश्यकता अनुसार पानी लेने में सक्षम होता है. वहीं इस पौधे पर कीड़े व बीमारी लगने की संभावना भी ना के बराबर है. जिसके कारण इनमें कीटनाशक व अन्य दवाइयों के छिड़काव की आवश्यक भी नहीं रहती. 8 से 10 वर्ष की आयु में प्रत्येक पौधा करीब 80 से 150 किलो पैदावार देने लगता है. गत वर्ष की तुलना में बाजारों में इनके भाव मे भी 100-120 रुपए प्रति किलो बढ़े हैं.
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