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Rajasthan: नन्हे घड़ियालों से चहक उठी चंबल, अंडों से निकल रहे शिशु घड़ियाल

Rajasthan: मुरैना जिले के देवरी घड़ियाल पालन केंद्र में कृत्रिम हैचिंग की मदद से अंडों से शिशु घड़ियाल को सुरक्षित बाहर निकाला जा रहा है. 

Rajasthan: नन्हे घड़ियालों से चहक उठी चंबल, अंडों से निकल रहे शिशु घड़ियाल
राजस्थान-मध्यप्रदेश की सीमा से होकर गुजरने वाली चंबल नदी इन दिनों नन्हे घड़ियालों से गुलजार हो रही है.

Rajasthan: राजस्थान-मध्यप्रदेश की सीमा से होकर गुजरने वाली चंबल नदी इन दिनों नन्हे घड़ियालों से गुलजार हो रही है. गर्मी के मौसम में चंबल के रेतीले किनारों पर सुरक्षित रखे गए अंडों से अब शिशु घड़ियाल निकलने लगे हैं. राष्ट्रीय चंबल घड़ियाल अभ्यारण्य के अधिकारियों की देखरेख में इन अंडों की सुरक्षा सुनिश्चित की गई है. रेंजर दीपक कुमार मीणा के अनुसार, धौलपुर रेंज के शंकरपुरा, अंडवापुरैनी, हरिगिर बाबा और बसई डांग जैसे क्षेत्रों में हजारों अंडे दिए गए थे, जिनमें से अब तक करीब 1500 शिशु घड़ियाल निकल चुके हैं. 

नदी के घाटों पर छोड़ा 

इन नन्हे घड़ियालों की गतिविधियों से चंबल के घाटों पर जीवंतता लौट आई है. झुंड में शिशु घड़ियाल घाटों पर नजर आ रहे हैं, जिन्हें देखकर अभ्यारण्य अधिकारियों के चेहरे भी खिल उठे हैं.  बताया गया कि मादा घड़ियाल शिशु घड़ियाल की देखरेख स्वयं कर रही हैं, जबकि सुरक्षाकर्मी भी लगातार निगरानी में लगे हुए हैं. 

नन्हे घड़ियालों की गतिविधियों से चंबल के घाटों पर जीवंतता लौट आई है.

नन्हे घड़ियालों की गतिविधियों से चंबल के घाटों पर जीवंतता लौट आई है.

देवरी केंद्र में कृत्रिम हैचिंग की प्रक्रिया

देवरी घड़ियाल पालन केंद्र के प्रभारी ज्योति डंडोतिया ने जानकारी दी कि हर साल 15 से 19 मई के बीच चंबल की नेस्टिंग साइट्स से 200 अंडे लाकर कृत्रिम हैचरी में रखे जाते हैं, जहां एक विशेष चैंबर  में 30 से 35 डिग्री सेल्सियस तापमान बनाए रखा जाता है. इस साल 195 अंडों से सफलतापूर्वक शिशु घड़ियाल निकले हैं, जबकि 5 अंडे खराब हो गए. 

शिशु घड़ियाल को 15 द‍िन क्‍वारंटीन क‍िया 

डंडोतिया ने बताया कि अंडों से बाहर आने के बाद शिशु घड़ियालों को 15 दिन तक क्वारंटीन क‍िया जाता है. उन्हें केमिकल स्नान कराकर संक्रमण से बचाया जाता है. पहले 15 दिन तक उन्हें भोजन नहीं देना पड़ता, क्योंकि वे योक से मिले पोषण पर ही जीवित रहते हैं. लंबाई 1.2 मीटर होने पर शिशु घड़ियालों को चंबल नदी में छोड़ा जाता है. जब तक यह माप नहीं होती, उन्हें पालन केंद्र में ही रखा जाता है. 

झुंड में शिशु घड़ियाल घाटों पर नजर आ रहे हैं.

झुंड में शिशु घड़ियाल घाटों पर नजर आ रहे हैं.

घड़ियालों की जीवन यात्रा में जोखिम भी कम नहीं

जानकारों के अनुसार, चंबल की मुख्यधारा का तेज बहाव, बारिश के मौसम में जलस्तर का अचानक बढ़ना, बाज, कौवे, मगरमच्छ जैसे मांसाहारी जीव ये सभी नन्हे शिशु घड़ियाल के लिए बड़े खतरे हैं. एक अनुमान के अनुसार केवल 1–2% शिशु घड़ियाल ही प्राकृतिक परिस्थिति में जीवित रह पाते हैं. 

चंबल की स्वच्छता बनी जलीय जीवन का आधार

चंबल नदी की स्वच्छता और प्राकृतिक जैवविविधता का संरक्षण इसके जलीय जीवन के लिए वरदान साबित हो रहा है. अभ्यारण्य अधिकारियों के अनुसार, वर्तमान में चंबल में करीब 1000 मगरमच्छ, 95 डॉल्फिन, सैकड़ों कछुए और अन्य जलजीव निवास कर रहे हैं. 

राष्ट्रीय चंबल अभ्यारण्य की स्थापना

भारत सरकार ने वर्ष 1978 में चंबल नदी के 435 किलोमीटर क्षेत्र को राष्ट्रीय चंबल घड़ियाल अभ्यारण्य घोषित किया था.  इससे पूर्व, 1975-77 के अंतरराष्ट्रीय सर्वेक्षण में चंबल में मात्र 46 घड़ियाल देखे गए थे, जिनकी संख्या अब सैकड़ों में पहुँच चुकी है. 

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