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नई सरकार के गठन से पहले उठी राजस्थानी भाषा को मान्यता देने की मांग, NDTV से खास बातचीत में HOD ने बताई पूरी कहानी

प्रदेश में नई सरकार बनने के साथ ही राजस्थानी भाषा को मान्यता देने की मांग फिर से उठने लगी है. राजस्थानी भाषा विभाग के अध्यक्ष डॉ. राजपुरोहित ने कहा कि राजस्थानी भाषा को मान्यता देने का मुद्दा अब प्रधानमंत्री मोदी की इच्छा शक्ति पर निर्भर करता है.

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नई सरकार के गठन से पहले उठी राजस्थानी भाषा को मान्यता देने की मांग, NDTV से खास बातचीत में HOD ने बताई पूरी कहानी
राजस्थानी भाषा विभाग के अध्यक्ष डॉ. राजपुरोहित
जोधपुर:

राजस्थानी भाषा: राजस्थान में नई सरकार बनने के साथ ही अब एक बार फिर राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता देने का मुद्दा जोर पकड़ने लगा है. जोधपुर के सबसे प्रतिष्ठ जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय के राजस्थानी विभाग के विभागाध्यक्ष ड़ॉ. गजसिंह राजपुरोहित ने एनडीटीवी से बात करते हुए फिर एक बार राजस्थानी भाषा को मान्यता देने की मांग की है.

राजपुरोहित ने कहा कि राजस्थानी भाषा को मान्यता देने का मुद्दा असल में देश की आजादी से पहले सन 1944 से चल रहा है. राजस्थान का यह एकमात्र ऐसा मुद्दा है जो पिछले 75 वर्षों से राजस्थान की राजनीति में छाया हुआ है. लेकिन यह राजस्थान की 10 करोड़ जनता का दुर्भाग्य है कि राजस्थानी भाषा को अभी तक संवैधानिक भाषा के तौर पर मान्यता नहीं मिली है.

राजपुरोहित में बताया कि राजस्थान की 10 करोड़ जनता व विशेष रूप से युवा वर्ग यह चाहता है कि हमारे प्रदेश की राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता मिले.

1992 में पूर्व महाराजा गजसिंह के नेतृत्व में शुरू हुई थी मांग 

संवैधानिक भाषा को मान्यता देने के लिए कई सारे आंदोलन हुए है. साल 1992 में पूर्व महाराजा गजसिंह के नेतृत्व में भी बोर्ड क्लब पर धरना हुआ था. वहीं वर्ष 2015 में केंद्रीय मंत्री रहे गजेंद्र सिंह शेखावत व अर्जुन राम मेघवाल के नेतृत्व में भी राजस्थानी भाषा को मान्यता को लेकर एक बड़ा धरना भी दिया गया था, और उसे धरने के बाद केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह ने भी यह आश्वासन दिया था कि हम जल्द ही राजस्थानी भाषा को मान्यता देने जा रहे हैं. लेकिन अभी जिस प्रकार से राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी है.

मोदी ही मुमकिन कर सकते हैं

केंद्र में भी पहले से भाजपा की सरकार है और अब अगर राजस्थान में भाजपा की सरकार चाहती है कि राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता मिले, तुम मुझे अब लगता है कि राजस्थानी भाषा को मान्यता देने का मुद्दा अब केवल और केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इच्छा शक्ति पर ही निर्भर करता है. अगर राजस्थान के सभी सांसद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बात करें  साथ ही राजस्थान के बनने वाले नए मुख्यमंत्री भी अगर पीएम मोदी से बात करें तो निश्चित रूप से राजस्थानी भाषा को संवैधानिक भाषा के रूप में मान्यता मिलने की रह आसान हो जाएगी.

2023 में विधानसभा में सर्वसम्मति से पारित हुआ था प्रस्ताव

राजस्थानी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ गजसिंह राजपुरोहित ने बताया कि 25 अगस्त 2003 को राजस्थान विधानसभा में राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता देने के लिए सर्वसम्मति से प्रस्ताव पास करके भी भेजा गया है. और सर्वसम्मति से सभी राजनीतिक दल भी इसमें सम्मिलित थे. वहीं पिछले दो चुनावो में भारतीय जनता पार्टी ने भी अपने घोषणा पत्र में राजस्थानी भाषा को मान्यता दिलवाने की बात को सम्मिलित किया था. और उनके सांसद भी इसको लेकर प्रयास कर रहे थे. लेकिन अब मुझे लग रहा है कि सही समय अब आया है.

वहीं पिछले दो चुनावो में बीजेपी ने अपने मेनिफेस्टो में राजस्थानी भाषा को मान्यता दिलवाने की बात की है. उनके सांसद भी इसको लेकर प्रयास कर रहे थे. लेकिन अब लगता है कि सही समय अब आया है.

राजस्थान का है यह दुर्भाग्य

राजस्थान की जनता के लिए निश्चित रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक अच्छी खुशखबरी देंगे और आने वाले लोकसभा चुनाव से पहले राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता मिलने के आसार भी लग रहे हैं. असल में देखा जाए तो शिक्षा से संबंधित जितनी भी योजनाएं बन रही है उसमें आप एक मातृभाषा को भी जोड़ रहे हैं. राजस्थान का दुर्भाग्य है कि राजस्थानी भाषा को ना तो राजभाषा का दर्जा है और ना ही संवैधानिक मान्यता मिली है. मैं मांग करूंगा कि राजस्थान की नई सरकार इसे राजभाषा की मान्यता दें और केंद्र इसे संवैधानिक भाषा की मान्यता दे.

 दर्जा नहीं होने से पिछड़ रहा प्रदेश का युवा

जेएनवीयू के राजस्थानी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. गजसिंह राजपुरोहित ने एनडीटीवी से बात करते हुए कहा कि राजस्थानी भाषा को राजभाषा का दर्जा नहीं मिलने से सबसे बड़ी समस्या राजस्थान के युवाओं के रोजगार की है. जैसे कि राजस्थान का युवा कॉम्पिटिशन की परीक्षा देने अगर गुजरात, महाराष्ट्र, पंजाब या यूपी या अन्य प्रदेश में जाता है. तो उसे वहां की मातृभाषा के ज्ञान होना आवश्यक है. वहीं राजस्थान में जो परीक्षाएं होती है उसमें बाहर से आने वाले परीक्षार्थियों को कोई बंधन नहीं है. और यह बंधन नहीं होने की वजह से ही राजस्थान का युवा सरकारी सेवाओं में पिछड़ रहा है.

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