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राजस्थानी भाषा को मान्यता देने की उठी मांग, JNVU के प्रोफेशर ने कहा- 'यह पीएम मोदी की इच्छा पर है निर्भर'

विश्व मायड़ भाषा दिवस से पहले डॉ. गजसिंह राजपुरोहित ने कही बड़ी बात, बोले: 'प्रधानमंत्री मोदी की इच्छा शक्ति पर निर्भर करता है राजस्थानी भाषा को मान्यता देने का मुद्दा'

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राजस्थानी भाषा को मान्यता देने की उठी मांग, JNVU के प्रोफेशर ने कहा- 'यह पीएम मोदी की इच्छा पर है निर्भर'
फाइल फोटो

Rajasthan News: राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता दिलाने और राजस्थान में स्थानीय भाषा का दर्जा देने की मांग एक बार फिर मुकर हो रही है. 21 फरवरी को मनाए जाने वाले विश्व मायड़ भाषा दिवस से पहले राजस्थानी भाषा को मान्यता देने का मुद्दा उठा. जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय के राजस्थानी विभाग के विभागाध्यक्ष ड़ॉ. गज सिंह राजपुरोहित ने एनडीटीवी से खास बातचीत की. 

डॉ. गजसिंह राजपुरोहित ने कहा कि राजस्थानी भाषा को मान्यता देने का मुद्दा देश की आजादी से पहले वर्ष 1944 से ठाकुर राम सिंह तंवर के नेतृत्व में दिनाजपुर (वर्तमान में बांग्लादेश में है) में राजस्थानी भाषा का पहला अधिवेशन हुआ था. इस अधिवेशन में सबसे पहले राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता देने का मुद्दा रखा गया ओर उसके बाद पिछले 76 वर्षों से राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता और राजस्थान में इससे स्थानीय भाषा का दर्जा देने को लेकर आंदोलन चल रहा है. लेकिन यह दुर्भाग्य है की आज वर्तमान 2024 में भी यह मुद्दा उसी स्थिति में है. 

कई दिग्गजों ने उठाई आवाज

राजस्थानी भाषा को मान्यता दिलाने के लिए शुरू किए गए इन आंदोलन में कहीं बड़े आंदोलन भी हुई जिसमें जोधपुर के पहले महाराजा गजसिंह से लेकर पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और वर्तमान के केंद्रीय जलशक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत के साथ ही राजस्थान के कई सांसद और नेता इस आंदोलन से जुड़े थे. वर्तमान में उपमुख्यमंत्री दिया कुमारी जब राजसमंद से सांसद थी उस दौरान भी इन्होंने लोकसभा में एक व्यक्तिगत बिल पेश कर राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता दिलाने की मांग रखी थी. 

'मान्यता की जगह मिला आश्वासन'

डॉ. गजसिंह राजपुरोहित ने कहा कि '25 अगस्त 2003 को जब राजस्थान की विधानसभा से सर्वसम्मति से राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता देने का प्रस्ताव पास कर केंद्र को भेजा गया था लेकिन आज भी वह विधेयक केंद्र में ज्यो-के-त्यों लंबित पड़ा है. इसमें सबसे बड़ी बात है कि वर्ष 2003 से लेकर 2013 तक राजस्थानी भाषा को मान्यता देने की पर भी अगर किसी नेताओं ने की है तो उसमें बीजेपी के कई गद्दार नेता भी शामिल रहें. हालांकि जब से केंद्र में भाजपा की सरकार बनी तब से आज वर्तमान तक मात्र आश्वासन ही मिल रहा है. वर्ष 2016 में भी दिल्ली के जंतर मंतर पर राजस्थानी भाषा को लेकर एक बड़ा आंदोलन भी किया गया था, जिसमें राजस्थान के 15 से अधिक सांसद और 40 से अधिक विधायक भी सम्मिलित हुए थे और उनका एक ही होता था कि राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता दी जाए. उस समय के तत्कालीन गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने एक प्रतिनिधि मंडल को बुलाकर उन्हें आश्वासन भी दिया था कि जल्द ही राजस्थानी भाषा को मान्यता दी जाएगी. यह दुर्भाग्य की बात है कि आज भी राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता नहीं मिल पाई.'

'यूनेस्को ने विश्व मातृभाषा दिवस 21 फरवरी को घोषित किया. जहां वर्ष 1999 में इसकी घोषणा हुई और वर्ष 2000 में पहली बार यह मनाया गया और इसके बाद वर्ष 2008 में यूनेस्को ने विश्व मातृभाषा दिवस के साथ ही पहली बार विश्व मातृभाषा वर्ष भी मनाया गया. जहां पूरे वर्ष पर विभिन्न स्थानीय क्षेत्र की मातृभाषा के संबंधित कार्यक्रम भी आयोजित किए गए और सिर्फ यूनेस्को ही नहीं हमारा भारतीय संविधान भी यह कहता है कि अगर किसी स्थानीय भाषा पूरे मानकों को पूरा करते हो तो उन्हें संवैधानिक मान्यता दी जा सकती है. राजस्थानी भाषा इन सभी मानकों पर भी खरा उतरता है लेकिन अब राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता देने का मुद्दा देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इच्छा शक्ति पर निर्भर करता है.'

एनडीटीवी से बात करते हुए डॉ गज सिंह राजपुरोहित ने कहा कि राजस्थानी भाषा का मान्यता देने का मुद्दा रोजगार से भी जुड़ा है. जहां अगर राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता और स्थानीय भाषा का दर्जा मिलता है तो निश्चित रूप से राजस्थान लोक सेवा आयोग(RPSC) और संघ लोक सेवा आयोग(UPSC) द्वारा आयोजित होने वाली समस्त परीक्षाओं में भी स्थानीय भाषा में परीक्षाएं और साक्षात्कार भी आयोजित होंगे. जिससे स्थानीय लोगों को भी रोजगार मिलेगा और ब्यूरोक्रेसी और प्रशासनिक सेवा में भी उन्हें और अधिक मौका मिलेगा.

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