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दीवाली पर बीकानेर में दुखी हैं कुम्हार, दीये बनाने वालों के सामने रोजी-रोटी का संकट

Rajasthan News: दिवाली पर मिट्टी के दीयों से रोशन होती है. लेकिन अब इन्हे बनाने वालों को अपनी आजीविका चलाने में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.

दीवाली पर बीकानेर में दुखी हैं कुम्हार, दीये बनाने वालों के सामने रोजी-रोटी का संकट
दिवाली के दिये बनाता कुम्हार

Bikaner: दिवाली आने में अभी काफी समय है, लेकिन उससे पहले ही लोग रोशनी के इस त्योहार को मनाने की तैयारियों में जुट गए हैं. इस त्योहार में अमावस्या की अंधेरी रात में रोशनी लाने के लिए दीयों की भूमिका सबसे अहम मानी जाती है.मिट्टी के दीयों के बिना दिवाली अधूरी मानी जाती है. क्योंकि इन्हीं मिट्टी के दीयों से दिवाली की रात रोशन होती है. लेकिन अब इन दीयों को बनाने वालों को अपनी आजीविका चलाने में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.

कुम्हारों पर छाया अजीविका का संकट

हर साल दिवाली पर करोड़ों दीये घरों को रोशन करते हैं. लेकिन इन्हें बनाने वालों के घरों में रोशनी की कमी रहती है. दीये बनाने का काम दिवाली से कई दिन पहले से ही शुरू हो जाता है और जैसे-जैसे त्योहार नजदीक आता है, बाजार में इनकी बिक्री बढ़ जाती है. इन्हें बनाना कोई आसान काम नहीं है. इसमें पूरा दिन मेहनत लगती है.इसके बाद भी कुछ सौ दीये ही तैयार हो पाते हैं.

कैसे बनते हैं मिट्टी के दिये ?

कई सालों से इन्हें बना रहे गणेशाराम कुम्हार और उनकी पत्नी ने इन्हें बनाने के बारे में कई बातें बताईं. उन्होंने बताया कि इसके लिए वे कई दिन पहले से ही यह काम शुरू कर देते हैं. इन्हें बनाने के लिए वे सबसे पहले कोलायत और अंबासर से मिट्टी खरीदते हैं. उसके बाद इस मिट्टी को कूटा जाता है. अच्छी तरह कूटने के बाद मिट्टी को रातभर पानी में भिगोया जाता है. उसके बाद मिट्टी के ढेर बनाकर रख दिए जाते हैं और एक-एक करके चाक पर डालकर घुमाया जाता है और मिट्टी को मनचाहा आकार दिया जाता है. दीये बनाने के बाद इन्हें सुखाया जाता है और सूखने के बाद इन्हें भट्टी में पकाया जाता है.पकने के बाद ये दीये दूसरे लोगों के घरों को रोशन करने लायक बन जाते हैं.

आसान काम नहीं है दीपक बनाना

समय के साथ जहां इनके उत्पादन की लागत बढ़ी है, वहीं मुनाफा भी काफी कम हो गया है. एक दीया बनाने में करीब 70 से 80 पैसे का खर्च आता है वहीं दिया बाजार में महज एक रुपये में बिकता है. वैसे भी यह बुजुर्गों का काम है. अपनी परंपरा का पालन करना भी जरूरी है. इसके अलावा मिट्टी के लगातार संपर्क में रहने से फेफड़ों पर भी असर पड़ता है. इससे कई तरह की बीमारियां होती हैं.इन कुम्हारों का कहना है कि सरकार की तरफ से भी उन पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है. सरकार ने माटी कला बोर्ड का गठन किया था। लेकिन आम कुम्हार को इसका कोई फायदा नहीं मिला.

माटी कला बोर्ड क्या है

माटी कला बोर्ड का गठन सरकार ने मिट्टी से घड़े, खिलौने और अन्य सामग्रियां बनाने वाले कारीगरों और व्यवसायियों को संरक्षण और  प्रोत्साहन देने के लिए 2017 में किया था.

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