
राजस्थान शाही ठाठ-बाट, राजे-राजवाड़े और किलों के लिए तो मशहूर है ही, साथ राजस्थानी खान-पान भी ऐसा है, जो एक बार खा लें, जल्द उसके स्वाद को नहीं भूलता. राजस्थान के इसी राजसी जायके को पूरी दुनिया में फैलाने का काम कर रहे हैं डॉ. शेफ सौरभ शर्मा. जो राजस्थान की भूली-बिसरी रीजनल रेसिपीज़ को पर्यटकों की थाली तक पहुंचा रहे हैं.
इन्हें मां की रसोई से पाक-कला में ऐसा रुझान जगा कि पूरे राजस्थान को ही अपना पाकगृह बना लिया. राजस्थान के नागौर जिले के लाडनूं जैसे छोटे से शहर में पले-बढ़े डॉ. शेफ सौरभ शर्मा न सिर्फ राजस्थान बल्कि भारत की पाक विरासत के लिए प्रेरक के रूप में नाम कमा चुके हैं.
अपनी मां से सीखा खाने का महत्व
शेफ सौरभ शर्मा ने बताया कि बहुत कम उम्र से ही मां को रसोई में खाना बनाते हुए देखना एक रुचि बन गया था. इस दौरान उन्होंने मुझे पहली सीख दी कि खाना सिर्फ पेट भरने का माध्यम नहीं, बल्कि संस्कृति को जीवित रखने का जरिया है. वे रसोई में राजस्थान के गौरवशाली इतिहास की सैकड़ों कहानियां सुनातीं और मैं उनसे अपनी परिकल्पना को खाने से जोड़ता रहा.
राजस्थान के मूल इतिहास को समझने के लिए की पीएचडी
शेफ आगे बताते हैं कि होटल मैनेजमेंट में स्नातक और टूरिज्म मैनेजमेंट में परास्नातक करने के बाद, एमिटी यूनिवर्सिटी, राजस्थान से “राजस्थान की पाक विरासत और उसका पर्यटन, अर्थव्यवस्था एवं सतत विकास पर प्रभाव” विषय पर पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की.
मिलेट मिशन के जरिए ज्वार-बाजरा के महत्व को बताया
शेफ ने अपने 18 वर्षों से अधिक समय तक पाक कला और शिक्षण के क्षेत्र में कार्य करते हुए राजस्थानी व्यंजनों के संरक्षण और प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उन्होंने विलुप्त हो रही पारंपरिक रेसिपीज़ को खोजकर उन्हें दस्तावेज़बद्ध किया और मिलेट मिशन के माध्यम से बाजरा, ज्वार जैसे स्थानीय अनाजों के महत्व को फिर से सामने लाया.
वहीं अंतरराष्ट्रीय चैनल पर 'राजस्थानी रसोई' शो से न केवल देश बल्कि विदेशों में भी राजस्थान के पारंपरिक स्वादों को विश्व मंच पर पहुंचाया.