
Dugarpur unique Tradition: राजस्थान के डूंगरपुर जिले में दिवाली के बाद भाई दूज का पर्व मनाया जाता है, जिले के छापी गांव में इस दिन गायों की दौड़ की एक बेहद अनूठी परंपरा पिछले 200 साल से निभाई जा रही है. इस दौड़ के जरिए आने वाले वर्ष के मौसम, बारिश और फसल का पूर्वानुमान लगाया जाता है, जिसमें आसपास के 42 गांवों के लोग हिस्सा लेते हैं.
सजी-धजी 200 गायों की रेस
इस आयोजन के लिए पशुपालक अपनी गायों को खास तरीके से सजाकर छापी गांव लाते हैं. वह गायों दुल्हन की तरह सजाते है. उन्हें मोर पंख, रंग-बिरंगी कपड़ों की कतरनों, तोरणों और चमकीले रंगों से सजाते हैं.इसके बाद छापी पंचायत भवन के पास बने मैदान में 200 से अधिक गायों को इकट् किया जाता हैं. जिसमें छापी के साथ-साथ चंद्रवासा, बिछीवाड़ा, गेरुवाड़ा, धामोद, गुंडीकुआ और पावड़ा जैसे 42 गांवों के पशुपालक अपनी गायों को इस रेस में शामिल करने लाते हैं.
ढोल-धमाकों के बीच दौड़
दौड़ शुरू करने से पहले, सभी लोग ढोल-ताशों के साथ शिव मंदिर में पूजा-अर्चना करते हैं. इसके बाद, युवा और पशुपालक मिलकर गायों को हांकना शुरू करते हैं. जैसे ही गायें दौड़ती हैं, मैदान में धूल के गुबार उठने लगते हैं, जिससे दृश्य बेहद रोमांचक हो जाता है. दौड़ के दौरान, दोनों ओर मौजूद लोग हुल्लर करते हैं. इस दौड़ में सफेद, लाल, पीली और काली... अलग-अलग रंगों की गायों को दौड़ाया जाता है, जिसे देख हर कोई रोमांचित हो जाता है.

गायों की दौड़
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गाय का रंग तय करता है भविष्य
इस दौड़ की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें जीते वाली गाय के रंग का काफी महत्व होता है. जिससे आने वाले साल की खुशहाली का अंदाजा लगाया जाता है. गांव के एक निवासी संजय जोशी ने बताया कि जीतने वाली गाय का रंग आने वाले साल के लिए संकेत माना जाता है. पिछले वर्ष सफेद रंग की गाय ने दौड़ जीती थी, जिससे पूरे क्षेत्र में खुशी का माहौल छा गया था. ग्रामीणों की मान्यता है कि सफेद रंग की गाय की जीत का अर्थ है कि आने वाले साल में अच्छी बरसात होगी और फसलें भी खेतों में लहलाएगी.
अलग- अलग रंगों के हैं होते अलग मायने
इसके अलावा इस दौड़ में अलग- अलग रंगों का अर्थ अलग होता है. जिसमें सफेद रंग अच्छी बरसात और खुशहाल फसलें का सूचक होता है. लाल रंग अतिवृष्टि और काला रंग कम बरसात का सूचक है.
महामारी रोकने के लिए हुई थी शुरुआत
ग्रामीणों के अनुसार, सदियों पहले जब गांव में कोई महामारी फैली थी, तब इस परंपरा की शुरुआत हुई थी. लोगों का मानना था कि गाय में सभी देवी-देवताओं का निवास होता है, और उनके पैरों से उड़ने वाली मिट्टी महामारी को गांव में फैलने से रोक देगी.