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Rajasthan Politics: संगठन की ओर पलायन या राजस्थान से दूर रखने की कवायद! क्या हैं सतीश पूनिया को हरियाणा का प्रभारी बनाए जाने के मायने?

सतीश पूनिया को संगठन का 'आदमी' कहा जाता है. उन्होंने 30 साल भाजपा और उससे जुड़े संगठनों में काम किया. पूनिया की नियुक्ति से यह तो साफ़ है कि शायद उनका चुनावी राजनीति का करियर पर विराम लग गया है? और पार्टी उनके 30 साल संगठन में काम करने के अनुभव का फायदा उठाना चाहती है.

Rajasthan Politics: संगठन की ओर पलायन या राजस्थान से दूर रखने की कवायद! क्या हैं सतीश पूनिया को हरियाणा का प्रभारी बनाए जाने के मायने?

Satish Poonia Appointed As Haryana In-Charge: भारतीय जनता पार्टी राजस्थान के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया को पार्टी ने हरियाणा का प्रभारी बनाया है. इससे पहले उन्हें लोकसभा चुनाव में हरियाणा के चुनाव प्रभारी की जिम्मेदारी दी गई थी. हालांकि हरियाणा में भाजपा अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाई थी. उसे लोकसभा चुनाव में 10 में से 5 सीटों पर ही जीत मिल पाई थी. 

पूनिया करीब 4 साल तक राजस्थान भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष रहे और विधानसभा चुनाव से 8 महीने पहले उन्हें हटा कर उनकी जगह सीपी जोशी को यह जिम्मेदारी दे दी गई थी. उसके बाद इस तरह की चर्चा भी हुई कि अगर भाजपा के सरकार बनी तो उन्हें कोई बड़ी जिम्मेदारी दी जा सकती है. लेकिन पूनिया आमेर विधानसभा से विधायकी का चुनाव ही हार गए. 

सतीश पूनिया को हरियाणा का प्रभारी बनाये जाने के बाद कई तरह की सियासी फुसफुसाहटें जारी हैं. सवाल है कि क्या उन्हें राजस्थान से दूर कर दिया गया है? या फिर उनका चुनावी राजनीतिक करियर पर विराम लग गया है? 

पूनिया की राजनीतिक यात्रा की शुरुआत छात्र जीवन से ही हो गई थी. वो अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में कई पदों पर रहे. बाद में भारतीय जनता युवा मोर्चा में प्रदेश स्तरीय पदों पर काम किया.

पूनिया ने 2004 से 2006 तक भारतीय जनता पार्टी, राजस्थान में प्रदेश महासचिव और 2006 से 2007 तक प्रदेश मोर्चा प्रभारी के रूप में काम किया. उसके बाद 2004 से 2014 तक चार बार भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश महासचिव रहे.

30 साल संगठन में काम और फिर एक अदद टिकट 

सतीश पूनिया को संगठन का 'आदमी' कहा जाता है. उन्होंने 30 साल भाजपा और उससे जुड़े संगठनों में काम किया. 2018 के विधानसभा चुनाव में पहली बार उन्होंने चुनावी राजनीति में कदम रखा और आमेर विधानसभा से चुनाव जीत गए. जीत के 1 साल बाद जब उन्हें प्रदेशाध्यक्ष बनाया गया तो उन्हें मुख्यधारा के नेताओं ने तवज्जोह नहीं दी. अशोक गहलोत तो उनका नाम तक नहीं लेते थे. हालांकि इस दौरान पूनिया ने गहलोत सरकार के खिलाफ खूब आंदोलन किये. 

सतीश पूनिया को संगठन का 'आदमी' कहा जाता है. उन्होंने 30 साल भाजपा और उससे जुड़े संगठनों में काम किया.

चुनावी राजनीति से संगठन की ओर पालयन 

पूनिया को हरियाणा का प्रभारी बनाये जाने के पीछे की वजहें कई हो सकती हैं और इसके क्या राजनीतिक अर्थ निकल सकते हैं? यह काफी महत्वपूर्ण है. 

पूनिया की नियुक्ति से लगता है कि शायद उनका चुनावी राजनीति का करियर पर विराम लग गया है? और पार्टी उनके 30 साल संगठन में काम करने के अनुभव का फायदा उठाना चाहती है. क्योंकि भाजपा अपने नेताओं के साथ यह प्रयोग करती रहती है ताकि यह जान सके की कौन नेता किस धारा में मजबूत है.

ऐसे में पूनिया को फिर एक बार फिर संगठन को मजबूत करने की जिम्मदारी मिली है. पूनिया के पक्ष में यह फैक्टर भी जाता है कि उन्होंने 2010 और 2015 के हरियाणा विधानसभा चुनावों में भी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. 

जातीय समीकरणों को साधने की कोशिश ! 

अगर राजस्थान और हरियाणा के लोकसभा चुनाव को मिला कर देखें तो यह साफ़ नजर आता है कि जाट बहुल इलाकों में भाजपा का लगभग सूपड़ा साफ़ हो गया था. राजस्थान में तो भाजपा का सिर्फ एक जाट प्रत्याशी चुनाव जीत पाया है. हरियाणा में करीब 23 प्रतिशत के साथ जाट मतदाता सबसे ज्यादा हैं. ऐसे में जाटों की नाराजगी को खत्म करने की कोशिश के बीच सतीश पूनिया को यहां लाकर भाजपा जातीय समीकरण साधने की कोशिश कर सकती है. 

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