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Gapsagar Dungarpur: डूंगरपुर की करीब 650 साल पुरानी खूबसूरत झील अतिक्रमण का शिकार, कोर्ट की फटकार के बाद भी नहीं हुआ एक्शन

Rajasthan: राजस्थान उच्च न्यायालय ने इस मामले में नगर परिषद डूंगरपुर को दिए थे. लेकिन अब तक कोई एक्शन नहीं हुआ है.

Gapsagar Dungarpur: डूंगरपुर की करीब 650 साल पुरानी खूबसूरत झील अतिक्रमण का शिकार, कोर्ट की फटकार के बाद भी नहीं हुआ एक्शन
गैपसागर झील कूड़ादान में तब्दील हो चुकी है.

Encroachment in Dungarpur's Gapsagar lake: डूंगरपुर शहर की शान कहलाने वाली गैपसागर झील इन दिनों बदहाली और उपेक्षा का शिकार हो गई है. झील के जल आवक मार्गों पर अतिक्रमण के चलते यह अब पोखर में तब्दील हो चुकी है. वर्ष 2017 में राजस्थान उच्च न्यायालय में दायर जनहित याचिका के बाद कोर्ट ने जिला कलेक्टर को अतिक्रमण हटाने की जिम्मेदारी दी थी. लेकिन 6 साल बाद भी कलेक्टर ने इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया. गेपसागर झील के 14 जल आवक मार्गों पर पक्का निर्माण हो चुका है. वहीं, झील के कैचमेंट एरिया की ग्राम पंचायतों बिलडी, कुशालमगरी, सियालदरी, तिजवड़ और मांडवा में धड़ल्ले से कॉलोनियां बन रही हैं. सभी नालों पर भी पक्का निर्माण कर दिया गया है.

राजस्थान उच्च न्यायालय ने झील से कचरा और गंदगी हटाने के निर्देश नगर परिषद डूंगरपुर को दिए थे. लेकिन नगर परिषद भी इस मामले में सक्रिय नहीं है. नतीजतन, झील कूड़ादान में तब्दील हो चुकी है. शहर की खूबसूरती में चार चांद लगाने वाली इस झील का अस्तित्व अब खतरे में पड़ गया है.

ऐतिहासिक झील की बदहाली, पानी की आवक बंद

डूंगरपुर शहर के बीचों-बीच स्थित गैपसागर झील शहर की पहचान है. इसे डूंगरपुर रियासतकाल में 14वें महारावल गैपा रावल ने विक्रम संवत 1485 में बनवाया था. उनके नाम पर ही इसका नाम गैपसागर झील रखा गया. करीब 280 बीघा में फैली यह झील 100 फीट तक गहरी है. झील के एक किनारे पर पाल और सीढ़ियां हैं. वहीं, दूसरे किनारे पर पर्यटक स्थल बादल महल इसकी खूबसूरती को बढ़ाता है. लेकिन अतिक्रमण और उपेक्षा के कारण झील का स्वरूप बिगड़ गया है. अतिक्रमियों ने झील के किनारों पर निर्माण कर इसके आकार को छोटा कर दिया. जल आवक मार्गों पर अतिक्रमण के चलते पानी की आवक कम हो गई. नतीजतन, औसत बारिश के बावजूद पिछले छह साल से झील ओवरफ्लो नहीं हुई. झील का तल उखड़ने लगा है और इसका आकार लगातार सिकुड़ रहा है.

हाईकोर्ट के आदेश की अनदेखी, झील बनी कूड़ादान

इसके जल आवक मार्ग शहर से सटे बिलड़ी, कुशालमगरी, सियालदरी, तिजवड़ और मांडवा ग्राम पंचायतों में हैं. इन कैचमेंट एरिया में भूमाफिया और जनप्रतिनिधियों ने अवैध कब्जे कर अतिक्रमण कर लिया. इससे झील में पानी की आवक लगभग बंद हो गई. इस स्थिति से परेशान होकर वर्ष 2017 में शहर के प्रबुद्धजनों ने राजस्थान उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर की थी. कोर्ट ने झील के सूखने पर नाराजगी जताते हुए नगर परिषद डूंगरपुर को साफ-सफाई, सौंदर्यीकरण और संरक्षण की जिम्मेदारी सौंपी थी.

जिला कलेक्टर डूंगरपुर को सभी जल आवक मार्गों का चिह्नीकरण कर हर छह माह में अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया था. जल संसाधन विभाग को कैचमेंट एरिया, जल आवक मार्गों की स्थिति स्पष्ट करने के निर्देश दिए गए थे. कोर्ट के फैसले के बाद वर्ष 2019 में तीनों विभागों ने अपनी जिम्मेदारी निभाई. लेकिन इसके बाद पिछले छह साल से सभी ने इसकी अनदेखी कर दी. 

मंत्री और मुख्यमंत्री के निर्देश भी बेअसर

गेपसागर झील की दयनीय स्थिति को सुधारने के लिए भाजपा के टीएडी मंत्री बाबूलाल खराड़ी और मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा की ओर से निर्देश जारी हो चुके हैं. लेकिन जिला प्रशासन, जल संसाधन विभाग, ग्राम पंचायत और नगर परिषद संयुक्त रूप से कोई कार्रवाई नहीं कर रहे. ग्राम पंचायत और नगर परिषद की टालमटोल नीति का फायदा जिला कलेक्टर उठा रहे हैं. पिछले 6 साल से जल आवक मार्गों को नहीं खोला गया, जिसके चलते झील लगातार सूखती जा रही है.

एक-दूसरे पर ठीकरा फोड़ रहे परिषद और पंचायत 

झील के संरक्षण को लेकर जब नगर परिषद सभापति अमृत कलासुआ से बात की गई तो उन्होंने जल आवक मार्गों पर अतिक्रमण के सवाल पर पल्ला झाड़ लिया. उन्होंने कहा, “झील के जल आवक मार्ग बिलडी ग्राम पंचायत में आते हैं. वहां से निर्माण स्वीकृतियां दी जाती हैं, जिससे पानी की आवक बंद हो गई है.” वहीं, बिलड़ी ग्राम पंचायत के सरपंच पति बद्रीलाल ने झील की बदहाली का ठीकरा नगर परिषद और अन्य ग्राम पंचायतों पर फोड़ दिया.

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