![EXPLAINER: राजस्थान में तीसरे मोर्चे का ख़्वाब दिखाने वाले हनुमान बेनीवाल की पार्टी RLP कैसे एक सीट पर सिमट गई EXPLAINER: राजस्थान में तीसरे मोर्चे का ख़्वाब दिखाने वाले हनुमान बेनीवाल की पार्टी RLP कैसे एक सीट पर सिमट गई](https://c.ndtvimg.com/2023-12/gh6ar69_hanuman-beniwal-_625x300_05_December_23.jpg?downsize=773:435)
Rajasthan Election Result 2023: राजस्थान की जनता ने 3 दिसंबर को अपना फैसला सुनाते हुए भाजपा के पक्ष में जनता ने जनादेश जारी किया है, लेकिन इस बार तीसरे मोर्चे की जो कवायद की जा रही थी, वह सफल नहीं हो सकी है. इस नतीजे के बाद तीसरे मोर्चे की कवायद करने वाले नागौर सांसद और राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के सुप्रीमो हनुमान बेनीवाल को बड़ा झटका लगा है.
खींवसर में हनुमान को मिली कड़ी चुनौती
इस बार हनुमान बेनीवाल की राह आसान नहीं थी, क्योंकि इस बार उनके सामने कांग्रेस ने मिर्धा परिवार के तेजपाल मिर्धा को उम्मीदवार बनाया है, तो वहीं भाजपा ने हनुमान बेनीवाल के ही करीबी रहे रेवंतराम डांगा को अपना प्रत्याशी बनाया. लेकिन खींवसर से हनुमान बेनीवाल को भाजपा प्रत्याशी रेवंतराम डांगा से कड़ी चुनौती मिली. हनुमान बेनीवाल को 79492 मत मिले जबकि डांगा को 77433 वोट मिले.
रेवंतराम vs हनुमान बेनीवाल को कड़ी चुनौती दी
दरअसल, रेवंतराम खींवसर क्षेत्र के सक्रिय नेता है और मुंडवा की प्रधान गीता डांगा के पति हैं. ऐसे में उनकी भी खींवसर क्षेत्र में मजबूत पकड़ है. इसलिए डांगा ने बेहद संघर्षपूर्ण और रोचक मुकाबले में हनुमान बेनीवाल को कड़ी चुनौती दी. मतगणना के दौरान एक समय तो यह अफवाह भी फैल गई थी कि हनुमान बेनीवाल चुनाव हार गए, लेकिन अंतिम समय में हनुमान बेनीवाल ने नजदीकी मुकाबले में रेवंतराम को 2059 वोटो से पराजित कर दिया.
पिछली बार 3 MLA, अब एक ही विधायक
हनुमान बेनीवाल ने 5 साल पूर्व जब आरएलपी की स्थापना की गई थी, तब किसी ने नहीं सोचा था कि आने वाले समय मे यह पार्टी राजस्थान की राजनीति को प्रभावित करेगी. पिछले चुनाव में आरएलपी के तीन विधायक चुनाव जीते थे, वहीं हनुमान बेनीवाल खुद नागौर से सांसद चुने गए थे.
बेनीवाल की पार्टी से कांग्रेस को अधिक नुकसान हुआ
ऐसे में माना जा रहा था कि अबकी बार भी आरएलपी बड़ा उलटफेर कर सकती है, मगर यह कयास बेमानी साबित हुए और आरएलपी को उम्मीद के विपरीत बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा. माना जाता है कि बेनीवाल की पार्टी से कांग्रेस को अधिक नुकसान हुआ है, क्योंकि उनके प्रत्याशियों ने कांग्रेस के वोटों में सेंधमारी की, जिसका सीधा लाभ भाजपा को मिल गया.
हनुमान बेनीवाल की पार्टी क्यों अच्छा प्रदर्शन नहीं कर सकी और हनुमान बेनीवाल के अलावा आरएलपी के सारे प्रत्याशी क्यों चुनाव हार गए? हमने इसके कुछ कारण जानने की कोशिश की-
पहला कारण : कार्यकर्ताओं के फौज, लेकिन अनुभवी नेताओं की कमी
दरअसल, हनुमान बेनीवाल खुद एक जुझारू संघर्षशील और मजबूत नेता है. उनके पास हर जिले में हजारों कार्यकर्ताओं की फौज है. अपनी पार्टी में वे अकेले नेता है जो न केवल चुनाव जीतने की क्षमता रखते हैं, बल्कि प्रदेश की राजनीति को भी प्रभावित करते हैं. लेकिन आरएलपी में बेनीवाल के अलावा कोई ऐसा बड़ा नेता नहीं है, जो अपने दम पर चुनाव जीत सके. आरएलपी के ज्यादातर उम्मीदवार नए थे. वहीं कई उम्मीदवार भाजपा और कांग्रेस से नाराज होकर आरएलपी में शामिल हुए थे, जिन्हें चुनाव लड़ने का कोई अनुभव नहीं था.
दूसरा कारण : जनता ने तीसरा मोर्चा नकारा
हनुमान बेनीवाल ने तीसरे मोर्चे की कवायद के लिए आरएलपी को स्थापित करने की भरसक कोशिश की. पिछली बार उनका प्रयोग सफल भी रहा और आरएलपी के तीन विधायक जीते थे, लेकिन इस बार जनता ने तीसरे मोर्चे को सिरे से नकार दिया और भाजपा को स्पष्ट बहुमत दे दिया.
हनुमान बेनीवाल की पार्टी से अधिक विधायक निर्दलीय रूप में चुने गए हैं. जिससे समझा जा सकता है कि जनता तीसरे मोर्चे से अधिक निर्दलीय उम्मीदवारों पर भरोसा करती है और राजस्थान में क्षेत्रीय पार्टियों को स्वीकार नहीं कर पा रही है. इस बार के चुनाव में आरएलपी के अलावा आम आदमी पार्टी, एआईएमआईएम और जेजेपी ने भी चुनाव लड़ा था, लेकिन केवल भारत आदिवासी पार्टी ही सफल रही , जिसके तीन विधायक चुनाव जीते हैं.
तीसरा कारण : मजबूत गठबंधन का अभाव
पूर्व में हनुमान बेनीवाल ने किरोड़ी लाल मीणा और सचिन पायलट से संपर्क साधकर तीसरा मोर्चा बनाने की कवायद की थी, लेकिन सचिन और किरोड़ी ने कोई रुचि नहीं दिखाई. वहीं प्रदेश का कोई भी बड़ा नेता हनुमान बेनीवाल के साथ नहीं जुड़ा. दूसरी ओर भाजपा के साथ हनुमान बेनीवाल का गठबंधन भी टूट गया था, जिससे हनुमान को मजबूत गठबंधन की तलाश थी.
इस चुनाव से ठीक पहले हनुमान बेनीवाल ने आजाद समाज पार्टी के चंद्रशेखर आजाद से गठबंधन किया, ताकि जाट वोटों के साथ ही दलित वोटों को भी साधा जा सके, लेकिन चंद्रशेखर का राजस्थान में मजबूत जनाधार नहीं होने के कारण आरएलपी को कोई फायदा नहीं मिला.
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