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This Article is From Mar 18, 2024

Holi Special: राजस्थान के 263 साल पुराने गंगश्यामजी मंदिर में 40 दिन होती है होली, 1818 से चली आ रही परंपरा

शहर परकोटे में स्थित 263 वर्ष पुराने इस ऐतिहासिक गंगश्यामजी मंदिर की अपने आप में अनूठी धार्मिक मान्यता है. जहां प्रतिवर्ष फाल्गुन माह में यहां प्रतिदिन रंगोत्सव के रूप में होली खेली जाती है.

Holi Special: राजस्थान के 263 साल पुराने गंगश्यामजी मंदिर में 40 दिन होती है होली, 1818 से चली आ रही परंपरा
ऐतिहासिक गंगश्यामजी मंदिर की होली

Rajasthan Holi: देश भर में होली पर्व को लेकर लोगों में खासा उत्साह देखा जा रहा है. फाल्गुन माह की शुरुआत के साथ ही होली के गीत और होली के रंगों से देश भर के कृष्ण मंदिर भी सराबोर नजर आ रहे. इसी बीच राजस्थान की सांस्कृतिक राजधानी जोधपुर के भीतरी शहर में प्राचीन गंगश्याम जी मंदिर में आज भी वृंदावन की तर्ज पर होली खेलने की परंपरा चली आ रही है. यहां होली सिर्फ एक दिन नहीं बल्कि फागुन माह की शुरुआत से लेकर रंग पंचमी तक कुल 40 दिनों तक भगवान कृष्ण के सम्मुख होली के गीतों के साथ कृष्ण भक्त के रंग में रंगे श्रद्धालु अबीर- गुलाल ओर फूलों से होली खेलते हैं.

1818 से शुरू हुई यह परंपरा

शहर परकोटे में स्थित 263 वर्ष पुराने इस ऐतिहासिक गंगश्यामजी मंदिर की अपने आप में अनूठी धार्मिक मान्यता है. राजशाही शासन से भी पूर्व से चली आ रही यह परंपरा आज भी जीवित है. जहां प्रतिवर्ष फाल्गुन माह में यहां प्रतिदिन रंगोत्सव के रूप में होली खेली जाती है. जिसमें सैकड़ो की संख्या में कृष्ण भक्ति मंदिर प्रांगण में आते हैं. वृंदावन की तर्ज पर मनाए जाने वाली इस होली में न सिर्फ सनातनी बल्कि विदेशी लोग भी इस होली को देखने और खेलने आते हैं. वर्ष 1818 से शुरू हुई यह परंपरा आज के समय में भी कायम है जहां वैष्णव संप्रदाय से जुड़े पुजारी पीढ़ी दर पीढ़ी आज भी मंदिर में पुजारी के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे हैं.

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1932 में शुरू हुई फूलों की होली

एनडीटीवी से खास बातचीत करते हुए ऐतिहासिक गंगश्याम जी मंदिर के पुजारी पुरुषोत्तम महाराज ने बताया कि राजशाही शासन से भी पूर्व से इस ऐतिहासिक मंदिर में होली खेलने की परंपरा चली आ रही है. यहां बसंत पंचमी से होली का पर्व आरंभ होता है जो रंग पंचमी तक जारी रहता है. वर्ष 1818 से यह परंपरा चली आ रही है और वर्ष 1932 की बात करें तो जयपुर महाराजा दिलीप सिंह जी का जब जन्म हुआ था. जो जोधपुर राज परिवार के भांजे लगते थे. जहां जोधपुर के उस समय के महाराजा उम्मेद सिंह जी ने उस खुशी में इस होली के उत्सव को और बढ़ाने के लिए फूलों की होली की भी शुरू करवाई. जहां निरंतर यह होली पर्व पर चली आ रही परंपरा आज भी कायम है और होली पर्व के 5 दिन बाद तक यहां होली खेली जाती है. रंग पंचमी के दिन वैष्णव संप्रदाय के हमारे पूर्वजों के समय से चली आ रही प्रथा के अनुसार पंड्या नृत्य भी होता है.

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मंदिर का इतिहास

जोधपुर के ऐतिहासिक गंगश्याम जी मंदिर का इतिहास कई वर्ष पुराना है जहा जोधपुर के शासक राव गांगा सिंह (1484-1531) की रानी पद्मावती जो कि सिरोही के राव जगमाल की पुत्री थी. वह कृष्ण भक्त थी जहा रानी प‌द्मावती के कहने पर राव गांगा सिंह ने विवाह कर लौटते वक्त दहेज स्वरुप भगवान श्रीकृष्ण की श्याम वर्ण की मूर्ति मांगी. यह मूर्ति जोधपुर के राव गांगा सिंह द्वारा लाई जाने के कारण गंगश्याम नाम से प्रसिद्ध हुई. इस मूर्ति के साथ शाकद्वीपीय पुजारी भी साथ आए. यह मूर्ति इस मंदिर में स्थापना से पूर्व जोधपुर किले में शाकदीपीय पुजारी परिवार के घर, पंच देवरिया मंदिर मे कुछ समय स्थापित भी रही इसके बाद महाराजा विजय सिंह ने इस ऐतिहासिक गंगश्याम जी मंदिर का निर्माण करवाया. जहां 1818 ई. में बसंत पंचमी को गंगश्याम जी की मूर्ति को प्रतिष्ठित करवाया आज भी सनातन धर्म से जुड़े लोगों का एक बड़े आस्था का केंद्र है.

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