
Chittorgarh News: चित्तौड़गढ़ शहर राजस्थान का ऐतिहासिक शहर अपनी वीरता और बलिदान की कहानियों के लिए प्रसिद्ध है. यहां होली के 13 दिन बाद रंग तेरस पर होली खेलने की परंपरा निभाई जाती है, जिसका संबंध 457 साल पहले हुए चित्तौड़ के तीसरे साके से है. 25 फरवरी 1568 को मुगल शासक अकबर की सेना ने चित्तौड़गढ़ पर भयंकर आक्रमण किया था, जिसके बाद राजपूतों ने युद्धभूमि में शौर्य का प्रदर्शन करते हुए रक्त की होली खेली थी. इसी दिन के स्मरण में आज भी चित्तौड़गढ़वासी रंग तेरस पर होली मनाते हैं, और इस दिन शहर में अवकाश भी रहता है.
कई साल पहले हुआ था साका
इतिहासकारों के मुताबिक तीसरा जौहर और साका चैत्र कृष्ण एकादशी विक्रम संवत 1624 यानी 23 फरवरी 1568 की रात हुआ था. अकबर ने किले में प्रवेश के लिए दक्षिण क्षेत्र में एक टीला बनवाने की योजना बनवाई थी, जो बाद में यह “मोहर मंगरी” के नाम से प्रसिद्ध हुआ. जब किले की रक्षा असंभव हो गई, तो महारानी और हजारों महिलाओं ने जौहर कर आत्मबलिदान दे दिया. अगली सुबह केसरिया बाना पहने राजपूत योद्धाओं ने अंतिम युद्ध के लिए किले के दरवाजे खोल दिए.
जयमल और कल्ला जी के पराक्रम की कहानी
इस महासमर में जयमल राठौड़ और कल्लाजी राठौड़ ने अतुलनीय पराक्रम दिखाया. जयमल युद्ध में घायल होने के बावजूद कल्लाजी के कंधों पर बैठकर तलवार चलाते रहे. यह दृश्य इतना अद्भुत था कि इसे देखने वाले स्वयं अकबर भी हतप्रभ रह गए. राजपूत योद्धाओं ने अंतिम सांस तक मुगलों से लोहा लिया, लेकिन अंततः वीरगति को प्राप्त हुए. जयमल और कल्लाजी के बलिदान की स्मृति में आज भी चित्तौड़गढ़ में उनके स्मारक बने हुए हैं.
कई लगों की हुई थी हत्या
जौहर और युद्ध के बाद भी चित्तौड़ की प्रजा ने हार नहीं मानी और अंतिम क्षण तक मुगल सेना से टकराती रही. अकबर इस संघर्ष से इतना क्रोधित हुआ कि उसने चित्तौड़गढ़ में भीषण कत्लेआम का आदेश दिया. इस नरसंहार में लगभग 10,000 सैनिक और 30,000 निर्दोष नागरिक मारे गए. इस हृदयविदारक घटना ने चित्तौड़ की मिट्टी को रक्तरंजित कर दिया था, और इसीलिए इसे “खून की होली” कहा जाता है.
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