
Rajasthan News: झालावाड़ के लिए बड़ी ही महत्वपूर्ण माने जाने वाली मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व परियोजना में एक बार फिर से बाघ छोड़े जाने की तैयारी है. माना जा रहा है कि अप्रैल के महीने तक यहां फिर से बाघ छोड़ दिए जाएंगे. जिला कलेक्टर अजय सिंह राठौड़ ने बताया कि रिजर्व की गागरोन रेंज में इसी महीने टाइगर का जोड़ा लाने की पूरी तैयारी है. यहां अभी तक रणथम्भौर से टाइगर लाए गए थे, लेकिन इस बार क्रॉस ब्रीडिंग को ध्यान में रखते हुए मध्यप्रदेश के बांधवगढ़ या महाराष्ट्र की ब्लडलाइन से कॉस मैच करते हुए ब्रीड को आगे बढ़ाने की योजना है. दूसरी ओर पूर्व में बाधिन एमटी-4 की भी टेरिटरी इस क्षेत्र में रही है.
भेजे गए एन्टी पोचिंग कैम्प के प्रस्ताव
ग्रामीणों का कहना है कि मशालपुरा और लक्ष्मीपुरा के तालाब में पानी की पर्याप्त उलब्धता और कालीसिंध, आहू नदियों के पास होने के कारण कई बार एमटी-4 की साइटिंग हुई थी. लेकिन बाद में उसकी मौत हो गई. इस बार वाइल्ड लाइफ प्रशासन मुस्तैद है. चैक पोस्ट बनाए जा रहे हैं और एन्टी पोचिंग कैम्प के प्रस्ताव स्वीकृति के लिए भेज रखे हैं.
कोर एरिया नहीं हुआ खाली
2012 में घोषित मुकुंदरा टाइगर रिजर्व परियोजना के कोर एरिया का पुनर्वास अब तक पूरा नहीं हो पाया है. कोर एरिया में आने वाले नारायणपुरा गांव में फिलहाल आबादी तो नहीं है. लेकिन वहां लोगों की खेती की जमीन है, जिसके चलते लगातार लोगों का आना-जाना रहता है. वहीं मशालपुरा गांव में लगभग एक दर्जन परिवारों का विस्थापन मुआवजे की विसंगतियों के चलते नहीं हो पाया है.
यहां पहले भी बाघ छोड़े गए थे, लेकिन एक-एक करके सबकी मौत हो गई. अंत में एक बाघ ही बचा जिसको दूसरी जगह शिफ्ट कर दिया गया. वहीं अब फिर से यही सवाल पैदा होता है कि गांव का विस्थापन हुआ नहीं है और फिर से बाघ छोड़े जाने की तैयारी की जा रही है. ऐसे में आने वाले वक्त में यह है देखना होगा कि इलाके में बाघ रह पाएंगे या इंसान, क्योंकि पहले तो इस लड़ाई में मनुष्य जीता था और बाघ हार गए थे.
बिना विस्थापन ही बर्बाद हो रहे बफर जोन के गांव
जहां एक तरफ कोर एरिया के गांवों का विस्थापन पूरा नहीं हो पाया है वहीं दूसरी तरफ परियोजना के दूसरे चरण में बफर जोन में आने वाले लक्ष्मीपुरा, हरिपुरा, बोर का कुंआ, गोलभाव, डंडिया आदि
गांव विस्थापित किए जाएंगे.
इन गावों का पुनर्वास भले ही दूसरे चरण में होना है. लेकिन परेशानियां इन गावों के लोग करीब गत 5 सालों से झेल रहे हैं. जब से ये गांव टाइगर रिजर्व के बफर जोन में आए हैं, यहां खेती और रिहायशी जमीन मकानों की खरीद-बेचान पर सरकार ने रोक लगा दी है.
दूसरी ओर सरकारी योजनाओं के लाभ और विकास कार्य भी बंद हो गए हैं. न सड़कों की मरम्मत हो रही है. और न ही सरकारी भवनों की. जल जीवन मिशन के तहत गांव तक पीने पानी की पाइप लाइन डाल दी गई थी. टंकी के निर्माण का काम चल रहा था. महिलाओं को उम्मीद थी कि घर में
नल लगेगा और पानी अएगा. लेकिन टंकी निर्माण काम रोक दिया गया. पाइप लाइनें भी जमीन में दफन हो गई है.
ये भी पढ़ें- रणथंभौर नेशनल पार्क में एक और टाइगर की मौत, 2 साल में 16 बाघों की गई जान