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This Article is From Oct 14, 2023

यहां होती है 'साइलेंट' रामलीला, दशहरे पर नहीं जलाया जाता रावण, दंगल पर अभिनय करते हैं कलाकार

इस लीला की खास बात यह है कि यह नवरात्र से शुरू होकर पूर्णिमा तक चलती है. वहीं इस लीला में रावण दशहरे वाले दिन नहीं, बल्कि चतुर्दशी के दिन जलाया जाता है.

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यहां होती है 'साइलेंट' रामलीला, दशहरे पर नहीं जलाया जाता रावण, दंगल पर अभिनय करते हैं कलाकार
फाइल फोटो.

Rajasthan News: रामलीला की बात चलती है तो रात का समय, मंच पर संवाद के जरिए विभिन्न प्रसंगों का मंचन आदि ही जहन में आता है. लेकिन झुंझुनूं जिले के बिसाऊ कस्बे में होने वाली रामलीला कुछ अलग है. यहां रामलीला का मंचन शाम के उजाले में होता है. स्टेज की जगह खुले मैदान में बीच सड़क पर बालू रेत बिछाकर दंगल तैयार किया जाता है. इसी दंगल पर सभी पात्र मूक रहकर अभिनय करते हैं. इतना ही नहीं राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न एवं सीता के पात्र को छोड़कर सभी पात्र चेहरे पर मुखोटा लगा कर अभिनय करते हैं. इसकी एक खासियत यह भी है कि यह रामलीला 15 दिन तक चलती है. रामलीला के दौरान दंगल में ढोल-नगाड़े बजाए जाते हैं जिनकी थाप के साथ रामदल व राक्षस दल के बीच युद्ध होता है. 

दशहरे पर नहीं जलाया जाता रावण

मूक रामलीला का मंचन लगभग 200 साल पहले जमना नाम की एक साध्वी ने रामाण जौहडा से शुरू किया था. साध्वी जमना ने गांव के कुछ बच्चों को एकत्रित कर रामलीला का मंचन शुरू किया. हाथ से पात्र के मुताबिक मुखोटे बनाए गए. मुखोटे पहनने के बाद बच्चों को संवाद बोलने में दिक्कत होने लगी तो उनसे मूक रहकर ही अपने पात्र की भूमिका निभाने को कहा गया. तब से ही रामलीला के पात्र आपस में संवाद नहीं करते. रामाणा जोहड़ के बाद इसका मंचन गुगोजी के टीले पर होने लगा. काफी समय तक स्टेशन रोड पर मंचन किया गया. वर्ष 1949 से गढ़ के पास बाजार में मुख्य सड़क पर लीला का मंचन शुरू हुआ. वर्तमान में भी यहीं पर मंचन हो रहा है. इस लीला की खास बात यह है कि यह नवरात्र से शुरू होकर पूर्णिमा तक चलती है. वहीं इस लीला में रावण दशहरे वाले दिन नहीं, बल्कि चतुर्दशी के दिन जलाया जाता है. इसके दूसरे दिन भरत मिलाप व राम के राज्याभिषेक के साथ सम्पन्न होती है. 

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कलाकारों की पोशाक के भी चर्चे

रामलीला में पंचवटी व लंका की बनावट मैदान के उत्तरी भाग में लकड़ी की बनी हुई अयोध्या व दक्षिण भाग में सुनहरे रंग की लंका तथा मध्य भाग में पंचवटी रखी जाती है. मैदान में बालू मिट्टी डालकर पानी का छिड़काव किया जाता है. लीला शुरू होने से पहले चारों स्वरूप रामलीला हवेली से रथ पर बैठकर आते हैं. बिसाऊ की रामलीला के पात्रों की पोशाक भी अलग तरह की होती है. अन्य रामलीला की तरह शाही एवं चमक दमक वाली पोशाक न होकर साधारण पोशाक होती है. राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न की पीली धोती, वनवास में पीला कच्छा व अंगरखा, सिर पर लम्बे बाल एवं मुकुट होता है. मुख पर सलमे-सितारे चिपका कर बेल-बूटे बनाए जाते हैं. हनुमान, बाली-सुग्रीव, नल-नील, जटायु एवं जामवन्त आदि की पोशाक भी अलग अलग रंग की होती है. सुन्दर मुखौटा तथा हाथ में गदा होती है. रावण की सेना काले रंग की पोशाक में होती है. हाथ में तलवार लिए युद्ध करती है. रामलीला के आखिरी चार दिनों में कुंभकरण, मेघनाद, नरांतक एवं रावण के पुतलों का दहन किया जाता है. मूक रामलीला को देखने के लिए प्रवासी भारतीयों के साथ-साथ काफी संख्या में सैलानी भी आते हैं.

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