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Rajasthan: जोधपुर में साल 2006 के हत्याकांड मामले में सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, राज्य सरकार की अपील खारिज

Jodhpur News: साल 2008 में ट्रायल कोर्ट ने तीनों आरोपियों को उम्रकैद की सजा सुनाई. इसके तीन साल बाद 14 दिसंबर 2011 को राजस्थान हाईकोर्ट ने बरी कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को सही ठहराया है.

Rajasthan: जोधपुर में साल 2006 के हत्याकांड मामले में सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, राज्य सरकार की अपील खारिज
फाइल फोटो.

Supreme Court decision in Jodhpur murder case: सुप्रीम कोर्ट ने साल 2006 में जोधपुर के व्यवसायी सुरेश शर्मा की हत्या के मामले में राजस्थान सरकार और शिकायतकर्ता की अपील को खारिज कर दिया है. कोर्ट ने राजस्थान हाईकोर्ट के 2011 के फैसले को बरकरार रखा, जिसमें तीनों आरोपियों को सबूतों की कमजोरी के चलते बरी किया गया था. जस्टिस संदीप मेहता और जस्टिस जॉयमाल्य बागची की पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट के फैसले में कोई कानूनी खामी या सबूतों के गलत आकलन की बात नहीं दिखती.

केस में गवाही भरोसेमंद नहीं- सुप्रीम कोर्ट

कोर्ट ने कहा कि अंतिम बार साथ देखे जाने के गवाह देर से सामने आए और उनकी गवाही भरोसेमंद नहीं मानी गई. बरामद किए गए दुपट्टे (चुन्नी) पर खून के धब्बे तो थे, लेकिन उसका ब्लड ग्रुप मृतक से मैच नहीं हुआ. कॉल डिटेल रिकॉर्ड बिना धारा 65-बी प्रमाणपत्र के पेश किए गए, इसलिए तकनीकी रूप से मान्य नहीं थे.

ट्रायल कोर्ट ने सुनाई उम्रकैद, हाईकोर्ट ने किया रिहा

दरअसल, 22 जनवरी 2006 को सुरेश शर्मा लापता हो गए थे. अगले दिन उनका शव मिला, जिसमें गला घोंटने और चोटों के निशान थे. 10 जनवरी 2008 में ट्रायल कोर्ट ने हेमलता, नारपत चौधरी और भंवर सिंह को हत्या और साजिश का दोषी मानते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई थी. 14 दिसंबर 2011 को राजस्थान हाईकोर्ट ने सबूतों की कमी का हवाला देते हुए तीनों को बरी कर दिया. 26 सितंबर 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को सही ठहराया.

जानिए सुप्रीम कोर्ट ने आज क्या कहा

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जमीन विवाद और दुश्मनी के बयान असंगत और अतिरंजित पाए गए. हत्या से जुड़े तीनों अहम साक्ष्य मकसद, अंतिम बार साथ देखना और बरामदगी संदेह से परे साबित नहीं हुए. सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया, "बरी किए जाने के फैसले में दखल केवल उन्हीं मामलों में हो सकता है, जब फैसला साफ तौर पर विकृत हो. सबूतों को गलत पढ़ा गया हो या नजरअंदाज किया गया हो. जब दो संभावित व्याख्याएं संभव न हों और केवल दोषसिद्धि ही एकमात्र नतीजा निकलता हो."

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