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This Article is From Oct 16, 2023

Latiyal Mata Mandir: फलोदी में स्थित है 550 साल पुराना लटियाल माता मंदिर, जानें इससे जुड़ी मान्यताएं और आस्था

Shardiya Navratri 2023: पूर्व में हुए युद्ध के दौरान फलोदी पर भी बम गिरे, लेकिन एक भी फटा नहीं. मां लटियाल का इससे बड़ा चमत्कार और क्या हो सकता है. इतना ही नहीं, मन्दिर के प्रथम पुजारी के निधन पर पूरे फलोदी शहर में आसमान से केसर की वर्षा हुई, ये कोई बनावटी या मनगढंत बात नहीं, ये भी मां लटियाल का चमत्कार ही था.

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Latiyal Mata Mandir: फलोदी में स्थित है 550 साल पुराना लटियाल माता मंदिर, जानें इससे जुड़ी मान्यताएं और आस्था
लटियाल माता मंदिर, फलोदी जोधपुर.

Navratri 2023: पश्चिमी काशी और फलवृद्धिका नाम से विख्यात फलोदी शहर अपनी स्थापना से ही धार्मिक नगरी के रूप में पहचान कायम किए हुए है. करीब 550 साल पहले ब्राम्हण सिद्धूजी कल्ला द्वारा बसाए गए फलोदी शहर की स्थापना के साथ ही शहर में स्थापित लटियाल माता का मंदिर (Latiyal Mata Mandir) शहरवासियों के लिए आस्था केन्द्र बना हुआ है. लोगों का विश्वास है कि लटियाल माता फलोदी शहर व यहां के श्रद्धालुओं को अपनी असीम कृपा से प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षित रखकर बचाव करती है, तथा शहर को खुशहाली, शान्ति व प्रगति की राह पर आगे बढ़ा रही है. लटियाल माता के मंदिर को लेकर मान्यताओं और इतिहास पर पेश है एक रिपोर्ट..

विक्रम संवत 1515 में बना था मंदिर

बताया जाता है कि विक्रम संवत 1515 में पाकिस्तान के सिंध स्थित आसाणी कोट के राजा का आतंक अधिक हो जाने से मां लटियाल ने सिद्धू कल्ला जो कि एक पुष्करणा ब्राम्हण था, उसे सपने में आकर कहा कि अब हमारा यहां रहना ठीक नहीं, क्यूंकि इस राजा के पापों का घड़ा भर चूका है. जल्द ही इस राजा का विनाश हो जाएगा. माता ने सिद्धूजी कल्ला से कहा कि अब हम यहां चल पड़ेंगे, और वहीं रुकेंगे जहां हमारा रथ रुकेगा. इस तरह वर्तमान में जहां मंदिर स्थित खेजड़ी के पेड़ के दो हिस्से हैं, वहीं आकर माता के रथ का पहिया टकराया और पेड़ के दो भाग हो गए जो आज भी मंदिर परिसर में श्रद्धालुओं द्वारा पूजा जाता है. रथ टकराने से ये खेजड़ी का वृक्ष चमत्कारिक ढंग से दो भागों में विभाजित हो गया. यह वृक्ष आज भी मंदिर में विद्यमान है. 

पहले लघु आकार में था मंदिर

शुरुआती दौर में मंदिर लघु आकार में था. जैसे-जैसे शहर की आबादी और लटियाल माता के भक्तों की संख्या बढ़ने लगी, वैसे-वैसे मंदिर भव्यता धारण करता गया. वर्तमान में लटियाल माता का मंदिर विशाल एवं सभी सुविधाओं से परिपूर्ण है. साथ ही नवरात्र में भक्तों की सुरक्षा व मंदिर की सजावट के लिए विशेष इंतजाम भी किए जाते हैं. नवरात्र में मंदिर में श्रद्धालुओं की रेलमपेल लगी रहती है. साथ ही मंदिर में होमाष्टमी के दिन हवन के दर्शन करने के लिए सुबह से ही श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ने लगती है.

ऐसे पड़ा शहर का नाम फलोदी

विक्रम संवत् 1515 में फलोदी का नाम विजयनगर था, जहां राव हमीर नामक राजा का शासन बताया जाता है. लेकिन जब ब्राम्हण सिद्धूजी कल्ला के रथ पर सवार बड़े-बड़े बालों की लटों से शोभायमान एक बालिका को देख लोगों ने उसका नाम लटियोवाली रखा, जिससे माता को लटियाल नाम से पुकारा जाने लगा. ठीक इसी तरह पराई बालिका को राजस्थानी भाषा में फलां की धी नाम से सम्बोधित किया जाता है, तो लोगों ने अपनी दिनचर्या में एक दूसरे को पूछना शुरू कर दिया 'अरे भई कठे जा रहयो है' तो लोग कहते थे 'वठेही जठे फलां की धी आयोडी है'. इस तरह फलां धी फलां धी करते शहर का नाम फलोदी पड़ गया.

मंदिर से जुड़ी मान्यताएं और आस्था

फलोदी शहर स्थित लटियाल माता का मंदिर शहरवासियों के लिए सुख-समृद्धि दायक और पीड़ा, विघ्न का नाशक है. मंदिर में विद्यमान सालों पुराने खेजड़ी के वृक्ष को लेकर मान्यता है कि इस वृक्ष की छाल नाखून से उतार अपने घर पर रखने से घर में सुख, शांति, समृद्धि का वास होता है, जिससे यहां आने वाले श्रद्धालु इस वृक्ष की छाल उतारकर अपने पास रखते हैं. साथ ही निज मंदिर में लटियाल माता की प्रतिमा के आगे पिछले करीब 550 सालों से अखण्ड ज्योत प्रज्वलित हो रही है. मान्यता है कि इस अखण्ड ज्योत के धुएं से बनने वाले काजल को लगाने से सभी प्रकार की मनोकामनाएं पूर्ण होती है.

युद्ध के हालात होने पर बेखौफ रहते है फलोदी के लोग

मां लटियाल युद्ध के समय भी शहर की रक्षा करती हैं. चाहे वो 1965-71 का युद्ध था, या वर्तमान हालात हो, मां के भक्त निडर हैं. पूर्व में हुए युद्ध के दौरान फलोदी पर भी बम गिरे, लेकिन एक भी फटा नहीं. मां लटियाल का इससे बड़ा चमत्कार और क्या हो सकता है. इतना ही नहीं, मन्दिर के प्रथम पुजारी के निधन पर पूरे फलोदी शहर में आसमान से केसर की वर्षा हुई, ये कोई बनावटी या मनगढंत बात नहीं, ये भी मां लटियाल का चमत्कार ही था.

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