विज्ञापन

आपातकाल को लेकर आज भी झलकता है मीसा बंदियों का दर्द, बताया जेल में जली रोटियां और दाल में दिए जाते थे कंकर

आपातकाल के चार दशक बाद एक बार फिर उस याद के साथ इनका दर्द ताजा हो गया है. इन लोगों ने अपना दर्द बयां किया और उस समय की कड़वी यादों को ताजा करने अपने अनुभव साझा किए.

आपातकाल को लेकर आज भी झलकता है मीसा बंदियों का दर्द, बताया जेल में जली रोटियां और दाल में दिए जाते थे कंकर

MISA prisoners: टोंक जिले में इस समय 24 मीसा बंदी और 5 मीसा बंदियों की पत्नियां हैं. 2019 में पिछली कांग्रेस सरकार ने इनकी पेंशन बंद कर दी थी. हाल ही में भजनलाल सरकार ने इसे एक बार फिर से शुरू किया है. आपातकाल के चार दशक बाद एक बार फिर उस याद के साथ इनका दर्द ताजा हो गया है. इन लोगों ने अपना दर्द बयां किया और उस समय की कड़वी यादों को ताजा करने अपने अनुभव साझा किए.

टोंक बना आंदोलन का प्रमुख केंद्र

राजस्थान में यह आंदोलन टोंक जेल में बंद मीसा बंदियों का मुख्य केंद्र था. टोंक के अलावा जयपुर और सवाई माधोपुर जिले के कई लोग इस जेल में बंद थे. उस समय उन्हें काफी यातनाएं दी जाती थीं. उन्हें जली हुई रोटियां और दाल में कंकड़ खिलाए जाते थे. लेकिन जब उस समय जेल प्रशासन से शिकायत की गई तो इस पर कोई ध्यान नहीं दिया गया. इतना ही नहीं आपातकाल के दौरान जेल से परीक्षा देने का विरोध करने वाले छात्रों को भी जेल में डाल दिया गया था. इस दौरान टोंक के टोडारायसिंह से विधायक रहे पूर्व मंत्री नाथूसिंह गुर्जर सहित 30 छात्रों और जिले के कुछ छात्रों ने भी जयपुर जेल की बैरक में रहकर महाराजा कॉलेज में बीए फाइनल की परीक्षा दी थी.
  
पत्रों को खोलक जाता था पढ़ा 

आपातकाल के दौरान टोंक जेल में बंद रहे पुरानी टोंक निवासी श्याम बाबू नामा ने बताया कि उस समय मीडिया की स्वतंत्रता पर भी प्रतिबंध लगा हुआ था. मीडिया पर सेंसरशिप के कारण अखबारों में वही छपता था जो सरकार चाहती थी. उन्होंने बताया कि जेल में जब भी कोई पत्र आता था तो वह कोड वर्ड में होता था. क्योंकि जेल प्रशासन इन पत्रों को खोलकर पढ़ता था और फिर संबंधित व्यक्ति को देता था.

बिना बात के भेजा जाता था जेल

ताज कॉलोनी निवासी एक अन्य मीसा बंदी गोपाल पटवारी के अनुसार उन्होंने अपने साथियों के साथ टोंक जेल में बंद मीसा बंदियों के लिए घंटाघर से सत्याग्रह किया और कोतवाली टोंक पहुंचकर गिरफ्तारी दी. उस समय सरकार की दमनकारी नीति के खिलाफ आंदोलन को देखने के लिए बाजारों की छतों पर भीड़ जमा थी. उनसे कोर्ट में माफीनामा लिखने को कहा गया लेकिन जब वे नहीं माने तो उन्हें जेल भेज दिया गया. जेल में टोंक, जयपुर और सवाई माधोपुर के 100 कार्यकर्ता बंद थे.

 19 महीने जेल में थे रहें

टोंक के गांधी पार्क में रहने वाली स्वर्गीय रामरतन बुंदेल की पत्नी भगवती देवी ने बताया कि उस समय हर तरफ भय और आतंक का माहौल था. लोग एक दूसरे से बात भी नहीं कर पा रहे थे. उनके पति ने आपातकाल के दौरान कॉलेज की अपनी सरकारी नौकरी भी छोड़ दी थी. और मीसा बंदियों के लिए आवाज उठाने पर उन्हें 19 महीने जेल में रहना पड़ा था. इतना ही नहीं, उस समय विपक्षी दलों के नेताओं और संघ के स्वयंसेवकों तक को जेल में डाल दिया गया था.

आपातकाल का विरोध और घर को किया जब्त

इसके साथ ही इस दिन को याद करते हुए टोंक जिले के फुलेता के तत्कालीन माकपा जिला संयोजक राजराजेश्वर सिंह ने बताया कि उन्होंने उस समय आपातकाल का विरोध किया था. इसके लिए उन्होंने इंदिरा गांधी को पत्र भी लिखा था. लेकिन  उन्हें गिरफ्तार कर टोंक लाया और उनके घर को जब्त कर उनके परिवार के सदस्यों को बाहर निकाल दिया गया था. 

Rajasthan.NDTV.in पर राजस्थान की ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें. देश और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं. इसके अलावा, मनोरंजन की दुनिया हो, या क्रिकेट का खुमार, लाइफ़स्टाइल टिप्स हों, या अनोखी-अनूठी ऑफ़बीट ख़बरें, सब मिलेगा यहां-ढेरों फोटो स्टोरी और वीडियो के साथ.

फॉलो करे:
डार्क मोड/लाइट मोड पर जाएं
Previous Article
Jodhpur: शारदीय नवरात्र की तैयारी शुरू,  पश्चिम बंगाल के कलाकारों द्वारा तैयार की जा रही इको-फ्रेंडली मूर्तियां
आपातकाल को लेकर आज भी झलकता है मीसा बंदियों का दर्द, बताया जेल में जली रोटियां और दाल में दिए जाते थे कंकर
People gave memorandum CM stop transfer SP gangapur city IPS Sujit Shankar and  farewell heavy heart
Next Article
IPS Sujit Shankar: SP का तबादला रुकवाने के लिए CM को ज्ञापन, नहीं रुका तो भारी मन से दी विदाई 
Close