विज्ञापन

Tonk Rain: बीसलपुर बांध से छोड़ा गया दिल्ली की 2 साल की जरूरत जितना पानी, टोंक में 50 की मौत, SDRF ने बचाई 200 जिंदगियां

राजस्थान के टोंक में भारी बारिश के बाद बाढ़ के हालात में SDRF के जवानों ने 200 से ज्यादा लोगों को बचाया.

Tonk Rain: बीसलपुर बांध से छोड़ा गया दिल्ली की 2 साल की जरूरत जितना पानी, टोंक में 50 की मौत, SDRF ने बचाई 200 जिंदगियां
टोंक में मानसून के 'देवदूत': SDRF जवानों के हौसलों को सलाम, 200 से ज़्यादा लोगों की जान बचाई

Rajasthan News: राजस्थान में इस साल मानसून 2025 ने जमकर मेहरबानी दिखाई है, लेकिन इस मेहरबानी के साथ ही कई जगहों पर कहर भी बरपा है. टोंक जिले में औसत बारिश (Tonk Rain) से 182 प्रतिशत अधिक यानी करीब 1192 MM बरसात दर्ज की गई, जिससे जिले के सभी 34 बांध लबालब हो गए. बीसलपुर बांध (Bisalpur Dam) से भी 60 दिनों में 115 TMC से ज्यादा पानी बनास नदी (Banas River) में छोड़ा गया. ये इतना पानी है जिससे देश की राजधानी दिल्ली जैसे शहर की 2 साल से ज्यादा की पानी की जरूरत को पूरा किया जा सकता है.

50 लोगों की मौत, 200 जिंदगियां बचाईं

नतीजतन, बनास, सहोदरा, माशी और डील जैसी नदियां उफान पर रहीं. इस दौरान जिले में लगभग 50 लोगों की पानी में डूबकर मौत भी हुई. ऐसे मुश्किल हालातों में, लोगों के लिए देवदूत बनकर सामने आए हैं SDRF (स्टेट डिजास्टर रेस्पॉन्स फोर्स) के जांबाज जवान, जिन्होंने 200 से ज्यादा जिंदगियां बचाई हैं. टोंक जिले में SDRF की 8-8 सदस्यों वाली तीन टीमों ने मिलकर इस मानसून सत्र में 35 से ज्यादा रेस्क्यू अभियान चलाए. इन जांबाजों ने न सिर्फ 200 से अधिक लोगों को पानी के तेज बहाव से बचाया, बल्कि 20 से ज्यादा शवों को भी पानी से बाहर निकाला है. कई बार तो हालात ऐसे भी बने जब खुद इन जवानों की जान भी खतरे में पड़ गई.

'रपट पार करते समय हुए कई हादसे'

टोंक में इस मानसून सत्र के दौरान कई घटनाएं ऐसी हुईं, जहां लोग जान जोखिम में डालकर नदी-नालों को पार करने की कोशिश कर रहे थे. इन्हीं घटनाओं में जब भी कोई व्यक्ति पानी में बह जाता था, तो सबसे पहले SDRF के जवानों का ही नाम सामने आता था. जुलाई से अब तक SDRF के 24 जांबाजों की तीन टीमों ने दिन-रात काम करके कई लोगों को मौत के मुंह से बाहर निकाला है. 

'परिजन के दबाव में लगता है ज्यादा समय'

SDRF टीम के इंचार्ज राजेंद्र सिंह ने बताया कि उनकी टीम की पहली प्राथमिकता हमेशा जिंदगियां बचाना होती है. वे रेस्क्यू अभियान के दौरान तकनीकी उपकरणों का इस्तेमाल करते हैं. उन्होंने कहा- 'हम पानी के बहाव और गहराई को देखकर अभियान की रणनीति बनाते हैं ताकि जोखिम को कम किया जा सके.' हालांकि, उनके काम में कई चुनौतियां भी आती हैं. अक्सर लोग और उनके परिजन रेस्क्यू अभियान में बाधा डालते हैं. राजेंद्र सिंह ने कहा, 'कई बार परिजन दबाव बनाते हैं कि यहां नहीं, वहां ढूंढो. इससे रेस्क्यू का समय बढ़ जाता है और हमें भी तकलीफ होती है.' बावजूद इसके, SDRF के जवान बिना रुके अपना काम जारी रखते हैं.

'हौसला' है सबसे बड़ा संसाधन

SDRF के जवान विशेष ट्रेनिंग के बाद ही टीम का हिस्सा बनते हैं. उनके पास रेस्क्यू के लिए जरूरी संसाधन भी होते हैं, जैसे मोटर बोट, रस्सी, डाइवर, डीप डाई सिलेंडर, लाइफ जैकेट, और लाइफ बॉय. लेकिन एक टीम के सदस्य ने बताया कि इन सब उपकरणों से भी ज्यादा महत्वपूर्ण "किसी की जान बचाने और मदद करने का हौसला" होता है. इस मानसून में टोंक जिले के मालपुरा, निवाई और पीपलू उपखंडों में सबसे ज्यादा बरसात हुई, जिसके बाद इन क्षेत्रों के अलावा उनियारा और टोंक में बनास नदी सहित कई जगहों पर रेस्क्यू अभियान चलाए गए. कुछ मामलों में तो शवों की तलाश दो से चार दिनों तक करनी पड़ी.

साल 2013 में हुआ था SDRF का गठन

राज्य में 2013 से कार्यरत SDRF का गठन प्राकृतिक आपदाओं और आपात स्थितियों के लिए ही किया गया था. पिछले 11 सालों में इस दल ने हजारों लोगों की जान बचाई है और सैकड़ों शवों को बाहर निकाला है. टोंक में इस साल के मानसून सत्र में उनका काम एक बार फिर यह साबित करता है कि ये जवान वाकई आम लोगों के लिए किसी देवदूत से कम नहीं हैं.

ये भी पढ़ें:- कोटा में आयकर विभाग की बड़ी कार्रवाई, दिल्ली से आई टीम ने मित्तल पिगमेंट के 10 ठिकानों पर की छापेमारी

Rajasthan.NDTV.in पर राजस्थान की ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें. देश और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं. इसके अलावा, मनोरंजन की दुनिया हो, या क्रिकेट का खुमार, लाइफ़स्टाइल टिप्स हों, या अनोखी-अनूठी ऑफ़बीट ख़बरें, सब मिलेगा यहां-ढेरों फोटो स्टोरी और वीडियो के साथ.

फॉलो करे:
Close