New Criminal Law News: 1 जुलाई से एफआईआर (FIR) के लिए थाने में जाकर बहस की करने की जरूरत नहीं होगी. आप वॉट्सऐप और टेलीग्राम या ई-मेल जैसे माध्यम से भी एफआईआर दर्ज करा सकेंगे. अब आपको किसी भी थाने के चक्कर काटने की जरूरत नहीं होगी. अब नए नियम के तहत अंग्रेजी शासन के आईपीसी, सीआरपीसी व साक्ष्य कानून बदल जाएंगे. इनकी जगह पर भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (IEA) की जगह भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA) अस्तित्व में आ जाएंगे. जनता के राहत दिलाने के लिए नए कानूनों का सरलीकरण किया गया है. साथ ही कुछ पुराने प्रावधानों को भी मजबूत बनाकर स्पष्टता के साथ लाया गया है.
नए और पुराने प्रावधान
एडीजे न्यायाधीश सुंदर लाल खारोल ने डीडवाना जिले के अधिवक्ताओं को देश में आगामी एक जुलाई से लागू होने वाले तीन कानूनों की जानकारी दी. उन्होंने बताया कि 1 जुलाई से भारतीय दंड संहिता (IPC) की जगह भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस), दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की जगह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (आईईए) की जगह भारतीय साक्ष्य अधिनियम (बीएसए) ले लेंगे. नए कानूनों में एफआईआर को लेकर कई स्पष्ट प्रावधान किए गए हैं, तो कुछ पुराने प्रावधानों को भी मजबूत बनाकर स्पष्टता के साथ लाया गया है.
थाने में खुद ट्रांसफर हो जाएगी FIR
वरिष्ठ सिविल न्यायधीश ज्ञानेंद्र सिंह ने बताया की पहली बार 'सामुदायिक सेवा' को दंड के रूप में बीएनएस की धारा 4 में शामिल किया है, जिससे जेलों की भीड़ कम हो. एसीजेएम न्यायाधीश धर्मेंद्र पंवार ने बताया की नए कानून लागू होने पर अपराध के लिए देश में कहीं भी एफआईआर दर्ज हो सकेगी. वह एफआईआर संबंधित थाने में खुद ट्रांसफर हो जाएगी और वहां एफआईआर को नंबर मिल जाएगा. संज्ञेय अपराध में थाने में माध्यम से दी गई सूचना के आधार पर एफआईआर दर्ज हो सकेगी.
WhatsApp-Telegram से भी दर्ज करा सकेंगे FIR
न्यायाधीश ज्ञानेंद्र सिंह ने बताया की वॉट्सऐप- टेलीग्राम सहित किसी भी इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से भी एफआईआर दर्ज हो सकेगी, जिसको लेकर ऑनलाइन दर्ज कराने के बाद 3 दिन के भीतर प्रार्थी को संबंधित थाने में उपस्थित होकर हस्ताक्षर करने होंगे. थाने में एफआईआर दर्ज नहीं होने पर पहले की तरह ही पुलिस अधीक्षक कार्यालय में एफआईआर दी जा सकेगी. पुलिस के एफआईआर दर्ज नहीं करने पर कोर्ट के माध्यम से एफआईआर का प्रावधान पहले की तरह ही रखा गया है. इसके अलावा 3 से 7 साल तक की सजा वाले अपराधों में पुलिस डीवाईएसपी की मंजूरी के बाद उसे जांच के लिए भी रख सकती है, लेकिन पुलिस के स्तर पर एफआईआर के बारे में 14 दिन में निर्णय करना होगा.
बच्चों से अपराध कराने वालों पर भी होगी एफआईआर
अपर लोक अभियोजक एडवोकेट दौलत खान ने बताया की पीड़ित को एफआईआर की कॉपी थाने से निःशुल्क मिलेगी. पीड़ित को जांच के 90 दिनों के भीतर उस पर प्रगति के बारे में पुलिस सूचना पहुंचाएगी. बच्चों के अपराध करने पर तीन साल तक की ही सजा का प्रावधान होने से अपराधी बड़ी वारदातों में बच्चों का इस्तेमाल करने लगे थे. अब बच्चों से अपराध कराने वालों को सीधे तौर पर उस मामले में अपराधी की तरह मानते हुए एफआईआर दर्ज होगी.
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