
Rajasthan: करौली जिले के करणपुर क्षेत्र के कैमोखरी गांव में 12 मई को एक अनूठा और प्रेरणादायक विवाह संपन्न हुआ, जो पर्यावरण संरक्षण और परंपरा का अद्भुत संगम रहा. दुल्हन विनीता मीणा और दूल्हे सत्येंद्र मीना की शादी धराड़ी प्रथा के अनुसार कराई गई, जो जिले में अपनी तरह की पहली शादी हुई है.
मीणा महापंचायत के बाद बदला फैसला
यह विवाह जोहार जागृति मंच आदिवासी मिशन और मीना महापंचायत द्वारा तय 14 नियमों के अंतर्गत संपन्न हुआ. शादी में पाखंड और दिखावे से दूर रहते हुए पर्यावरण के प्रति प्रेम को प्राथमिकता दी गई. विवाह स्थल पर मंडप में नीम और बरगद के पौधे रखे गए, जिन्हें धराड़ी यानी साक्षी मानकर सात फेरे लिए गए. शादी के अगले दिन इन्हीं पौधों को दूल्हा-दुल्हन ने अपने घर के आंगन में रोपित किया.
क्या है धराड़ी प्रथा ?
धराड़ी आदिवासी समुदाय की एक परंपरा है, जिसमें एक विशेष पेड़ या स्थान को मातृशक्ति और प्रकृति का प्रतीक मानते हुए पूजा जाता है. विवाह में धराड़ी पेड़ को साक्षी मानकर दूल्हा-दुल्हन फेरे लेते हैं और एक-दूसरे से जल, जंगल और जमीन की रक्षा का संकल्प करते हैं. यह विवाह न केवल पर्यावरण संरक्षण का संदेश देता है, बल्कि आदिवासी संस्कृति की गहराई और सोच को भी उजागर करता है.
अनोखी शादी बनी आकर्षक का केंद्र
इस अनोखी शादी में बारातियों को भी विदाई में पौधे भेंट किए गए, ताकि वे भी पर्यावरण संरक्षण का संदेश अपने साथ ले जाएं. इस अवसर पर सवाई माधोपुर के खंडार क्षेत्र के बड़ौद गांव से बारात आई थी. दुल्हन विनीता ने धराड़ी प्रथा की पारंपरिक भाषा में छपा हुआ विवाह निमंत्रण पत्र भी जारी किया, जो सबके आकर्षण का केंद्र रहा.
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