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Begum Batool: “मुस्लिम होकर मंदिर क्यों जाती है?” बचपन में पड़ते थे ताने, आज बेगम बतूल के भजनों का फ्रांस-अमेरिका भी दीवाना

Nagaur: नागौर की मिट्टी से निकली एक ऐसी आवाज जिसने राजस्थान की लोक कला मांड गायिकी को दुनिया भर में पहुंचाया.

Begum Batool: “मुस्लिम होकर मंदिर क्यों जाती है?” बचपन में पड़ते थे ताने, आज बेगम बतूल के भजनों का फ्रांस-अमेरिका भी दीवाना
बेगम ने बिना किसी औपचारिक शिक्षा के रियाज करते हुए ही संगीत सीखा.

Rajasthani Folk Songs: राजस्थान की मांड गायिकी को 'पद्मश्री' बेगम बतूल ने वैश्विक पहचान दिलाई. धर्म और जाति के बंधन तोड़कर राम और कृष्ण के भजनों को अपनी आवाज दी. यह साधना 70 साल की उम्र में भी जारी है. बेगम का बचपन में नागौर के केराप गांव में बीता. बिना किसी औपचारिक शिक्षा के महज रियाज करते-करते ही संगीत सीखा. उनकी मांड गायिकी के लिए इसी साल पद्मश्री पुरस्कार से भी नवाजा गया. इससे पहले साल 2022 में नारी शक्ति पुरस्कार, 2024 में फ्रांस सीनेट भारत गौरव सम्मान, 2024 में ऑस्ट्रेलिया संसद सांस्कृतिक सम्मान, 2021 में GOPIO अचीवर्स अवार्ड और 2023 में राजस्थान गौरव सम्मान मिला. एनडीटीवी से खास बातचीत में उन्होंने बताया कि मुस्लिम होने के चलते उन्हें ताने भी पड़े, लेकिन बावजूद इसके उन्होंने साधना जारी रखी. उनका कहना है, "मेरा मन भक्ति में रमता है, भजनों में जो सुकून है, वो मुझे कहीं और नहीं मिला."

सवालः पद्मश्री जैसे बड़ा सम्मान पाना आसान नहीं होता, जब आप पीछे मुड़कर देखती हैं, तो ये यात्रा कैसी लगती है?

जवाब: यह सफर बहुत लंबा और संघर्षों भरा रहा. बचपन में केराप गांव में हम बहुत सीमित साधनों में रहते थे. मैं 8 साल की थी, तब से ही ढोलक लेकर मंदिर जाने लगी और ठाकुरजी के भजन गाया करती थी. लोगों ने ताने दिए कि “मुस्लिम होकर मंदिर क्यों जाती है?” लेकिन मेरा मन भक्ति में रमता था. भजनों में जो सुकून है, वो मुझे कहीं और नहीं मिला. मेरा कोई गुरु नहीं था, बस चाचा के घर जाती थी. वहां जो सुनती थी, वही सबकुछ सीखती जाती थी. धीरे-धीरे सुरों के साथ मेरा रिश्ता गहराता गया.

सवालः आपने कभी संगीत की औपचारिक शिक्षा नहीं ली, फिर भी आपकी गायिकी इतनी परिपक्व कैसे हुई?

जवाबः शायद रियाज़ और आत्मा की सच्चाई से, संगीत मेरे भीतर बस गया था. जब भी ढोलक उठाती थी, लगता था जैसे सुर मेरे साथ बहने लगते हैं. धीरे-धीरे मैंने खुद ही रियाज़ शुरू किया. वो रियाज़ आज तक चल रहा है. आज 70 साल की उम्र में भी मेरी साधना वैसी ही है, जैसी तब थी.

बेगम बतूल

सवालः मुस्लिम परिवार में रहकर भजन गाना क्या आसान था?

जवाबः बिलकुल नहीं. दादाजी पढ़ाई के भी खिलाफ थे. तीसरी क्लास के बाद स्कूल छूट गया. 16 साल की उम्र में फिरोज खान से निकाह हुआ. शादी के बाद घर-गृहस्थी में रम गई, लेकिन मन कहीं और था. मैंने एक दिन अपने पति से कहा कि भजन गाना चाहती हूं. शुरुआत में घर में विरोध हुआ, लेकिन फिरोजजी ने मेरा हौसला बढ़ाया. उन्हीं के सहारे मैंने मंदिरों में गाना शुरू किया. सबसे पहले जयपुर के मोती डूंगरी मंदिर में शुरू हुआ.

सवालः फिरोज खान ने आपके सफर में कैसा साथ निभाया?

जवाबः उन्होंने मुझमें छिपी गायिका को पहचाना. हमेशा कहा कि तुम्हारे सुरों में सच्चाई है, तुम गाओ. अगर उनका साथ नहीं होता तो शायद ये मंच, सम्मान और कुछ भी न होता.

सवालः आपने राम और कृष्ण के भजन पूरी दुनिया में गाए. क्या कभी धर्म की दीवारें आड़े आईं?

जवाबः कभी-कभी लोगों ने सवाल उठाए, लेकिन जब मैं गाती हूं. कोई नहीं पूछता कि किस धर्म की हूं. संगीत में जब पवित्रता हो, तब मजहब कोई मायने नहीं रखता. ‘केसरिया बालम' गाते हुए जब लोग आंखें बंद कर लेते हैं तो लगता है सुर ही सच्चा संवाद हैं.

सवालः  आपने मांड गायिकी को वैश्विक मंचों तक पहुंचाया. इसे लेकर आपका अनुभव कैसा रहा?

जवाबः मांड गायिकी मेरे खून में है. ये राजस्थान की आत्मा है. मैंने फ्रांस, इटली, अमेरिका, ट्यूनिशिया, स्पेन जैसे 55 देशों में मांड गाया है. पेरिस के टाउनहॉल में परफॉर्म करने वाली मैं राजस्थान की पहली महिला लोकगायिका बनी. होली के दिन बिना माइक के ढोलक पर गाया था और जब वहाँ के लोग थिरक उठे तो लगा संगीत वाकई सीमाओं से बड़ा होता है.

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सवालः आपका अयोध्या में राम मंदिर में गाने का सपना कैसे पूरा हुआ?

जवाबः  35 साल पहले अयोध्या गई थी. रामलला के जन्मस्थान को देखा और मन में ठान लिया कि यहां एक दिन भजन गाना है. वो सपना तब सच हुआ, जब मुझे राममंदिर में गाने के लिए बुलाया गया. जब वहां गाया तो लगा जैसे आत्मा को सुकून मिल गया और मेरी हर मुराद पूरी हुई.

सवालः प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से आपकी कई मुलाकातें रही हैं. उनके साथ अनुभव कैसा रहा?

जवाबः जब मुझे नारी शक्ति पुरस्कार मिला और प्रधानमंत्री आवास पर बुलाया गया, तो उन्होंने पूछा — “कुछ सुनाओ.” मैंने तुरंत गणेश वंदना गाई. उन्होंने कहा कि “आप राजस्थान की मांड गायिका हो और मेरी परफॉर्मेंस को सोशल मीडिया पर शेयर भी किया. आज क्षेत्रीय कलाकारों को जो पहचान मिली है, वो उनके नेतृत्व में संभव हो सका है.

सवालः पढ़ाई ना पूरी कर पाने का मलाल कभी हुआ?

जवाबः बिलकुल हुआ. लेकिन मैंने अपने बेटों को पढ़ाया. एक बेटा जयपुर में बैंक मैनेजर है और दो विदेश में नौकरी करते हैं. उनकी कामयाबी में मेरी अधूरी शिक्षा की भरपाई दिखती है.

बेगम बतूल

सवालः आप फ्रांस में हर साल ‘होली महोत्सव' करती हैं. उसकी शुरुआत कैसे हुई?

जवाबः 2016 में एक फ्रांसीसी पर्यटक ने मुझे राजस्थान में सुना और पेरिस बुलाया. फिर हर साल वहां होली मनाने लगे. मेरे पति, बेटों और पोतों के साथ हम वहां संगीत से होली मनाते हैं. वहां भाषा नहीं समझते लोग, लेकिन सुरों में खो जाते हैं.

सवालः आज जब धर्म को लेकर समाज में तनाव बढ़ रहा है, तब आप क्या सोचती हैं?

जवाबः राम और रहीम अलग नहीं हैं। जैसा दृष्टिकोण होगा, वैसा ही समाज दिखेगा. मैं तो सुरों में समरसता देखती हूं, वही बांटती हूं. जब मंच पर होती हूं तो कोई नहीं पूछता “कौन सा धर्म?” सब बस सुनते हैं और जुड़ जाते हैं.

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