Rajasthan Assembly Election 2023: धोरों की धरती चूरू को वैसे तो अपनी सर्दी और गर्मी के लिए जाना जाता है. लेकिन इस समय चूरू का राजनीतिक पारा हाई है. भाजपा के प्रमुख रणनीतिकार राजेंद्र राठौड़ भी चुरू जिले से ताल्लुक रखते हैं. राठौड़ वैसे तो चूरू विधानसभा से चुनाव जीतते आए हैं, लेकिन इस बार राठौड़ ने चुरू जिले की तारानगर विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने का निर्णय लिया है. तारानगर कांग्रेस का गढ़ रहा है. आजादी के बाद से महज दो बार तारानगर में बीजेपी कमल खिलाने में कामयाब हुई है. सबसे पहले 2008 में राजेंद्र राठौड़ ने ही तारानगर में कमल खिलाया था.
चुनावी राजनीतिक उठापटक के बीच चुरू जिले में भाजपा ने कांग्रेस को तगड़ा झटका दिया. यहां के दो दिग्ग्ज नेता डॉ. चंद्रशेखर बैद व नंदलाल पूनिया ने हाथ का साथ छोड़ भाजपाई बन गए हैं. डॉ. बैद तारानगर और नंदलाल पूनिया राजगढ़ क्षेत्र में अपना वजूद रखते हैं. दोनो ही नेता कांग्रेस के विधायक रह चुके हैं. इनके भाजपा में शामिल होने के पीछे भाजपा के दिग्गज नेता राजेन्द्र राठौड़ का दिमाग माना जा रहा है. इसको इस तथ्य से भी बल मिलता है कि डॉ. बैद का तारानगर क्षेत्र से विधायक रहे हैं. वहीं पिछले चुनाव में उन्होंने टिकट नहीं मिलने पर निर्दलीय के रूप में करीब 42 हजार वोट लिए थे. तारानगर से अब राजेंद्र राठौड़ भाजपा में मैदान में हैं.
सरदारशहर में भाजपा कर सकती है बड़ा खेला!
तारानगर ओर सादुलपुर के बाद सरदारशहर में भी भाजपा कांग्रेस को तगड़ा झटका देने की तयारी कर रही है. अब भाजपा की नजर कांग्रेस के एक और अभेद्य गढ़ सरदारशहर पर है. जिले के सबसे बड़े विधानसभा क्षेत्र सरदारशहर में भाजपा पिछले 70 सालों में महज 2 बार ही जीत हासिल कर सकी है. लेकिन इस बार भाजपा इस सीट पर विशेष मंथन कर रही है. इस सीट पर अभी तक भाजपा ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं. वहीं कांग्रेस सरदारशहर विधानसभा सीट पर अनिल शर्मा को चुनावी समर में उतारा है. सूत्रों के हवाले से मिल रही खबरों के अनुसार, सरदारशहर कांग्रेस के नेता राजकरण चौधरी और वर्तमान सरदारशहर नगर परिषद सभापति राजकरण चौधरी अब जल्द ही भाजपा का दामन थाम सकते हैं. भाजपा यदि ऐसा करने में सफल होती है तो निश्चित रूप से भाजपा एक तीर से दो शिकार कर सकती है. बताया जा रहा है कि राजकरण चौधरी भाजपा के वरिष्ठ नेता राजेंद्र राठौड़ के संपर्क में हैं और भाजपा यहां पर कमल खिलाने की जिम्मेदारी सभापति राजकरण चौधरी को दे सकती है. इसकी एक वजह यह है कि सरदारशहर विधानसभा सीट पर सबसे ज्यादा जाट मतदाताओं की संख्या है. वहीं सभापति राजकरण चौधरी कांग्रेस की टिकट भी मांग रहे थे, लेकिन कांग्रेस ने फिर से अनिल शर्मा पर विश्वास जताया और उन्हें यहां पर उम्मीदवार घोषित कर दिया. जिसके बाद से ही राजकरण चौधरी कांग्रेस से नाराज हैं. अब इसी का फायदा यहां पर भाजपा उठा सकती है. राजकरण चौधरी की पैठ जाट मतदाताओं के साथ-साथ एससी एसटी और मुस्लिम समुदाय में भी है. ऐसे में भाजपा सरदारशहर विधानसभा सीट पर बड़ा दाव खेल सकती है.
बैद के ज्वाइन करते ही तारानगर में भाजपा मजबूत
चुरू जिले की तारानगर में राजेंद्र राठौड़ ने डॉ. चंद्रशेखर बैद को भाजपा में शामिल कर कांग्रेस को शुरुआती झटका दे दिया है. डॉ. चंद्रशेखर बैद ने अपने पिता वरिष्ठ नेता चन्दनमल बैद की राजनीतिक विरासत संभाली है. उनके पिता चंदनमल बैद सरदारशहर से चार बार और तारानगर से चार बार विधायक रहे हैं. चंदनमल बैद के कद का इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि वे कांग्रेस की सरकार में हर बार मंत्री रहे हैं. सबसे ज्यादा वित्त मंत्री रहने का रिकॉर्ड भी चंदनमल बैद के नाम है. वहीं 2003 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की ओर से डॉ़. चन्द्रशेखर बैद ने अपना पहला चुनाव लड़ा और जीता. 2008 में कांग्रेस ने दूसरी बार कांग्रेस को टिकट दिया और भाजपा से राजेन्द्र राठौड़ ने चुनाव लड़ा, लेकिन बैद चुनाव हार गए. वर्ष 2013 में भाजपा ने इनेलो छोड़कर आए जयनारायण पूनिया को टिकट दिया. डॉ़. चन्द्रशेखर बैद चुनाव मैदान में थे, लेकिन वे चुनाव हार गए. 2018 में कांग्रेस ने प्रत्याशी बदलकर नरेन्द्र बुडानियां को टिकट दिया तो डॉ़. चन्द्रशेखर बैद ने बतौर निर्दलीय चुनाव लड़ा. हालांकि वे चुनाव हार गए, लेकिन चालीस हजार से अधिक मत प्राप्त कर उन्होंने राजनीतिक समीक्षकों को चौंका दिया.
पूनिया सादुलपुर में लम्बे समय से सक्रिय
कांग्रेस नेता नंदलाल पूनिया ने भी टिकट वितरण के बीच भाजपा का दामन थाम लिया है. सादुलपुर के पूर्व विधायक नंदलाल पूनिया का क्षेत्र में लंबे समय से राजनीतिक वर्चस्व है. वे दो बार विधायक रहे. नंदलाल पूनिया ग्राम पंचायत बेवड के सरपंच रहे, पंचायत समिति के प्रधान रहे. इसके अलावा उप जिला प्रमुख के पद पर भी एक बार रहे. वर्ष 2000 से 2008 में दो बार विधायक रहे. वर्ष 1980 में नंदलाल पूनिया ने कांग्रेस से पहला चुनाव लड़ा, लेकिन वे हार गए. 1998 में पूनिया ने बतौर निर्दलीय चुनाव लड़ा. यह चुनाव भी वो जीत नहीं पाए. 2008 में कांग्रेस से पूनिया चुनाव लड़े, लेकिन हार गए. 2013 में कांग्रेस ने पूनिया को टिकट नहीं दी और इसके बाद वे कांग्रेस की दृष्टि से नेपथ्य में चले गए. अब नंदलाल पूनिया भाजपा में शामिल हो गए. सादुलपुर विधानसभा में अब तक पूनिया और कस्वां के बीच हमेशा प्रतिद्वंदिता रही है. लेकिन इस बार नंदलाल पूनिया व रामसिंह कस्वां के बीच सहमति की भी चर्चा है. पूनिया को भाजपा के सदस्य बनाने के दौरान सांसद राहुल कस्वां कार्यक्रम में शामिल थे.