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This Article is From Oct 19, 2023

एक ऐसा विधानसभा क्षेत्र, जहां जीत के लिए कांग्रेस-भाजपा दोनों को लगानी पड़ती है एड़ी-चोटी का जोर

पिछले 14 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और भाजपा को कुशलगढ़ विधानसभा क्षेत्र पर जीत के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ा. अब तक इतिहास बताता है कि कांग्रेस और भाजपा को इस विधानसभा क्षेत्र पर महज एक एक बार ही जीत हासिल हुई है, और जीत भी मामूली अंतर से हासिल हुई है.

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एक ऐसा विधानसभा क्षेत्र, जहां जीत के लिए कांग्रेस-भाजपा दोनों को लगानी पड़ती है एड़ी-चोटी का जोर
प्रतीकात्मक तस्वीर

एक तरफ जहां वर्तमान कांग्रेस सरकार प्रदेश में एक बार फिर से कांग्रेस की सरकार रिपीट होने का दावा कर रही है , वहीं प्रदेश में एक ऐसी विधानसभा सीट भी है, जहां पिछले 14 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और भाजपा को जीत के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ा. अब तक इतिहास बताता है कि कांग्रेस और भाजपा को इस विधानसभा क्षेत्र पर महज एक एक बार ही जीत हासिल हुई है, और जीत भी मामूली अंतर से हासिल हुई है.

प्रदेश के अंतिम छोर पर मध्य प्रदेश और गुजरात की सीमा से सटे कुशलगढ़ विधानसभा क्षेत्र से अभी तक कांग्रेस और भाजपा को एक ही बार विधायक मिला है . यहां पर जनता दल ने हमेशा अपना झंडा बुलंद रखा है, लेकिन जनता दल का वजूद समाप्त होने के बाद अब यहां कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी ही प्रमुख प्रतिद्वंद्वी के रूप में सामने आए हैं. 

तो वर्ष 1957 में हुए पहले चुनाव से लेकर अभी तक के परिणामों पर गौर करें तो कांग्रेस को यहां पर 1985 में वीर सिंह के नाम से विधायक मिला था,जिन्होंने मात्र 312 मतों से विजय प्राप्त की थी. 1980 के चुनाव में पहली बार जनता पार्टी के फतेह सिंह ने यहां से विधायक बने थे, इसके बाद 1985 में हुए चुनाव में फतेह सिंह को टिकट नहीं मिलने पर कांग्रेस के वीर सिंह को टिकट मिला और उन्हें महज 312 मतों से विजय हासिल हुई.

कुशलगढ़ विधानसभा क्षेत्र में सबसे पहले 1957 में चुनाव हुए थे जब निर्दलीय हीरा भाई ने जीत हासिल की थी. उसके बाद 1962 में भी संयुक्त समाजवादी पार्टी के बैनर तले हीरा भाई ने फिर से जीत हासिल की , लेकिन उसके बाद 1972 और 1977 में समाजवादी विचारक जिथिंग भाई ने यहां जीत हासिल की थी.

1990 में हुए विधानसभा चुनाव से लेकर 2008 तक के चुनाव में इस क्षेत्र की जनता ने मामा बालेश्वर दयाल के शिष्य जनता दल यूनाइटेड के फतेह सिंह पर विश्वास जताया और विधायक के रूप में चुना. वहीं, वर्ष 2013 में हुए विधानसभा चुनाव में पहली बार भारतीय जनता पार्टी को भीमा भाई के रूप में पहला विधायक मिला, जिनको भाजपा ने 2023 के विधान सभा चुनाव के लिए फिर से टिकट दिया है.

2018 में हुए चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी के रुप में खड़ी हुई रमिला खड़िया ने भाजपा के भीमा भाई को हराकर विधानसभा पहुंची. इस चुनाव में इनाम स्वरूप रमिला खड़िया को कांग्रेस का टिकट देने जा रही है. अब देखना है कि क्या इस विधान सभा क्षेत्र में एक बार फिर विधायक रिपीट होगी या पुरानी जीत हार का रिवाज बदूस्तर जारी रहता है.

कांग्रेस को कुशल विधानसभा क्षेत्र गत 38 सालों से जीत हासिल नहीं हुई है, वहीं अब यहां पर कांग्रेस निर्दलीय रूप से चुनी गईं रमिला खड़िया को कांग्रेस के सिंबल पर चुनाव लड़ाने का मानस बना रही है. रमिला ने कांग्रेस सरकार में बगावत के दौरान कांग्रेस सरकार को बचाने में सीएम गहलोत का साथ दिया था. 

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