राजस्थान विधानसभा चुनाव शंखनाथ हो चुका है. प्रदेश में चुनाव के मद्देनजर पार्टियां तैयारी को लेकर एड़ी चोटी का जोर लगा रही हैं. 25 दिसंबर को राजस्थान में मतदान होगा और 3 जनवरी को परिणाम घोषित होंगे, प्रत्याशियों को अपने-अपने क्षेत्र में चुनाव प्रचार भी करना है, लेकिन सोमवार तक कांग्रेस ने अपने प्रत्याशियों की लिस्ट जारी नहीं की है.
अजमेर से पूर्व में सांसद और केंद्रीय मंत्री रहने के कारण सचिन पायलट का अजमेर में खासा दबदबा है. सीएम गहलोत का भी बरसों पुराने कार्यकर्ताओं में प्रभाव कायम है. जिले में आठ विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं. इनमें अजमेर उत्तर, अजमेर दक्षिण, पुष्कर, नसीराबाद, किशनगढ़, ब्यावर, केकड़ी, मसूदा शामिल हैं.
पिछले विधानसभा चुनाव के समय पायलट का प्रभाव
वर्ष 2028 विधानसभा चुनाव में सचिन पायलट राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष थे. जिसके चलते अजमेर जिले की सभी आठों सीट पर उनकी पसंद से प्रत्याशियों को टिकट मिले. हालांकि अंदरूनी गुटबाजी के चलते कांग्रेस मसूदा और केकड़ी सीट ही जीत पाई. शेष छ: सीटों पर कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा. सीएम अशोक गहलोत का प्रभाव जिले की आठों विधानसभा सीट पर है. संगठन और शीर्ष स्तर पर गुटबाजी के चलते ही कांग्रेस कई सीट कम अंतर से हार रही है.
अजमेर में गुटबाजी खत्म करना होगी बड़ी चुनौती
एआईसीसी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, सांसद राहुल गांधी, सोनिया गांधी, प्रियंका गाँधी भी अजमेर जिले में गहलोत-पायलट गुटबाजी से परिचित हैं. दोनों गुटों में सीधा टकराव रोकना उनके लिए चुनौती है, हालांकि पहली बार कांग्रेस ने कर्नाटक मॉडल पर विभिन्न स्तर पर आंतरिक सर्वेक्षण, चुनाव लड़ने के इच्छुक प्रत्याशियों से व्यक्तिगत साक्षात्कार लिए हैं.
गुटबाजी से आ सकते हैं निगेटिव रिजल्ट
ऊपरी तौर पर भले ही कांग्रेस के दिग्गज नेता सचिन पायलट और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत गुटबाजी नहीं होने के बयान बार-बार देते आए हैं, लेकिन अंदरूनी गुटबाजी अभी भी चरम पर है. पिछले तीन-चार महीने में गहलोत-पायलट समर्थकों में बंटे कांग्रेसियों में कांग्रेस की बैठक के दौरान मारपीट तक हो चुकी है. दोनों गुटों के नेता कार्यक्रमों में यदा कदा ही साथ दिखते हैं. इसे रोकना एआईसीसी और पीसीसी स्तर पर खासा चुनौतीपूर्ण है.
आरोप-प्रत्यारोप से होगा नुकसान
विधानसभा चुनाव की तारीख आने से पहले अजमेर से पूर्व विधायक डॉ राजकुमार जयपाल और अजमेर दक्षिण से कांग्रेस के प्रत्याशी रहे हेमंत भाटी ने एक दूसरे के खिलाफ निजी हमले भी बोले थे. इससे साफ जाहिर है अभी टिकट वितरण होने के बाद गुटबाजी चरम पर होगी और आपस में अंदरूनी खींचतान के चलते कांग्रेस को फिर नुकसान उठाना पड़ सकता है.
यह भी पढें- कांग्रेस में गुटबाजी नहीं होती तो सचिन पायलट मुख्यमंत्री होते: सतीश पूनिया