Rajasthan News: राजस्थान सरकार ने राज्य के सरकारी मेडिकल कॉलेजों और उनसे जुड़े अस्पतालों में मरीजों की देखभाल को बेहतर बनाने के लिए एक बड़ा फैसला लिया है. चिकित्सा और स्वास्थ्य मंत्री गजेन्द्र सिंह खींवसर की सहमति से चिकित्सा शिक्षा विभाग ने प्रधानाचार्य अतिरिक्त प्रधानाचार्य और अधीक्षकों की नियुक्ति के लिए ताजा नियम जारी किए हैं.
ये नियम अभी से लागू हो गए हैं और इनसे डॉक्टरों की जवाबदेही बढ़ेगी साथ ही अस्पतालों का कामकाज सुधरेगा. चिकित्सा शिक्षा सचिव अम्बरीष कुमार ने कहा कि ये बदलाव स्वास्थ्य क्षेत्र में पारदर्शिता और कुशलता लाएंगे.
प्राइवेट प्रैक्टिस पर सख्त पाबंदी
अब सरकारी मेडिकल कॉलेजों के प्रधानाचार्य नियंत्रक और अधीक्षक अपनी निजी क्लिनिक या प्रैक्टिस नहीं चला सकेंगे. उन्हें पद संभालते समय एक हलफनामा देना होगा कि वे पूरी तरह से सरकारी काम पर ध्यान देंगे. इसके अलावा वे विभाग के प्रमुख या यूनिट हेड जैसे पदों पर नहीं रह सकेंगे.
इससे डॉक्टरों का पूरा समय अस्पताल और कॉलेज के काम में लगेगा जिससे मरीजों को बेहतर इलाज मिल सकेगा. पहले कई बार प्राइवेट प्रैक्टिस की वजह से सरकारी ड्यूटी प्रभावित होती थी लेकिन अब यह समस्या दूर हो जाएगी.
चयन के लिए नई योग्यता और प्रक्रिया
प्रधानाचार्य और नियंत्रक के पदों पर सिर्फ वे शिक्षक आवेदन कर सकेंगे जो राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग की शर्तों के मुताबिक वरिष्ठ प्रोफेसर के रूप में काम कर रहे हैं. अगर किसी कॉलेज में ऐसे योग्य डॉक्टर नहीं मिलते तो दूसरे सरकारी मेडिकल कॉलेजों से भी उम्मीदवार बुलाए जा सकेंगे.
इन पदों की भर्ती मुख्य सचिव की अगुवाई वाली समिति करेगी जो इंटरव्यू के जरिए उम्मीदवारों का चयन करेगी. समिति में कार्मिक विभाग के सचिव चिकित्सा शिक्षा विभाग के सचिव और राजस्थान स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय या मारवाड़ मेडिकल कॉलेज के कुलपति शामिल होंगे. आवेदन करने वालों की उम्र ज्यादा से ज्यादा 57 साल होनी चाहिए. इससे युवा और अनुभवी डॉक्टरों को मौका मिलेगा जो स्वास्थ्य सेवाओं को नई ऊंचाई देंगे.
स्थानांतरण और पद की अवधि
चयन समिति प्रधानाचार्य के पद के लिए तीन नामों की सूची बनाएगी. फिर राज्य सरकार इनमें से एक को चुनकर नियुक्ति देगी. अगर राज्य के हित में जरूरी हुआ तो चुने गए प्रधानाचार्य को किसी दूसरे मेडिकल कॉलेज में भेजा जा सकता है. पद की शुरुआती मियाद तीन साल की होगी जिसे अच्छे काम पर दो साल तक बढ़ाया जा सकेगा. इससे स्थिरता आएगी और लगातार बेहतर प्रबंधन सुनिश्चित होगा.
अधीक्षकों की नियुक्ति में बदलाव
एकल विशेषता वाले अस्पतालों में सबसे वरिष्ठ प्रोफेसर को अधीक्षक बनाया जाएगा. वहीं कई विशेषताओं वाले अस्पतालों में चिकित्सा शिक्षा सचिव की अध्यक्षता वाली समिति सिफारिश करेगी. जरूरत पड़ने पर दूसरे सरकारी कॉलेजों के योग्य डॉक्टर भी आवेदन कर सकेंगे.
अधीक्षक भी पूरी तरह से सरकारी काम करेंगे और निजी प्रैक्टिस से दूर रहेंगे. इससे अस्पतालों का रोजाना कामकाज सुचारू बनेगा और मरीजों की शिकायतें कम होंगी.
अतिरिक्त प्रधानाचार्य की संख्या और जिम्मेदारी
अब किसी भी सरकारी मेडिकल कॉलेज में पांच से ज्यादा अतिरिक्त प्रधानाचार्य नहीं होंगे. ये अधिकारी पढ़ाई अनुसंधान छात्रों के मामले प्रशासन और अस्पताल सेवाओं की निगरानी करेंगे. वे प्रधानाचार्य के मार्गदर्शन में काम करेंगे. उनका पद तीन साल का होगा जो अच्छे प्रदर्शन पर बढ़ाया जा सकता है. इससे टीम वर्क मजबूत होगा और कॉलेजों में हर विभाग सुव्यवस्थित चलेगा.
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