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राजस्थान के इस जिले में हैं 3300 साल पुराना महाभारत काल का मंदिर, मन्नत पूरी करने के लिए धधकते अंगारों पर चलते हैं लोग

राजस्थान के प्रतापगढ़ जिले के निनोर गांव स्थित मां पद्मावती मंदिर श्रद्धालुओं की गहरी आस्था का केंद्र है. 3300 साल पुराना यह मंदिर अपनी विशेष मान्यताओं के लिए प्रसिद्ध है. यहां भक्त दहकते अंगारों पर नंगे पैर चलकर माता के दर्शन करते हैं.

राजस्थान के इस जिले में हैं 3300 साल पुराना महाभारत काल का मंदिर, मन्नत पूरी करने के लिए धधकते अंगारों पर चलते हैं लोग
मां पद्मावती मंदिर.

Rajasthan News: देश में मंदिरों से हिन्दू अनुयायियों की कई प्रकार की मान्यताएं और गहरी आस्थाएं जुड़ी हुई है. ऐसी ही आस्था राजस्थान के प्रतापगढ़ जिले के निनोर गांव स्थित मां पद्मावती मंदिर से जुड़ी हुई है. अपनी आस्था को लेकर यहां पर हजारों की संख्या में श्रद्धालु प्रदेश के विभिन्न स्थानों से पहुंचते हैं.

राजस्थान ही नहीं मध्य प्रदेश और गुजरात के कई इलाकों से श्रद्धालु यहां आते हैं और अंगारों पर चलकर अपनी आस्था को प्रकट करते हैं. मान्यता है की माता भक्तों की हर मुराद पूरी करती है. बुधवार को रंग पंचमी पर आयोजित मेले में हजारों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचे और अंगारों पर चलते हुए माता के दर्शन किए.

3300 साल पुराना माना जाता है मंदिर

इस मंदिर से भक्तों की इतनी गहरी आस्था जुड़ी हुई है कि यहां बच्चे-बूढ़े, महिलाएं-पुरुष, सभी अंगारों पर नंगे पैर चलकर माता के दर्शन करते हैं. श्रद्धालुओं के मन इतनी गहरी आस्था कि उनके मन में न कोई आह, न जलने का डर रहता है, वे बेखौफ अंगारों पर गुजरते हैं. हजारों श्रद्धालु दहकते अंगारों पर नंगे पांव इस तरह चलते है. जैसे किसी मखमली गलीचे या फूलों की चादर पर चल रहे हों. माता पद्मावती मंदिर की ख्याति दूर-दूर तक फैली है.

अंगारों पर चल रहे लोग.

अंगारों पर चल रहे लोग.

यहां मां पद्मावती की प्राचीन प्रतिमा स्थापित है. गांव के लोग कहते हैं कि प्रतिमा दिन में तीन रूप धारण करती है. इसलिए इसे त्रिरूपधारिणी भी कहते हैं. इस मंदिर और निनोर कस्बे का उद्गम उत्तर महाभारत काल से है. उस काल के प्रसिद्ध चरित्र नल दमयंती का इस कस्बे से जुड़ाव है. नल दमयन्ती का उल्लेख उत्तर महाभारत काल के समय का है. जो करीब 3300 साल पुराना माना जाता है.

धधकते अंगारों पर चलते हैं लोग

यहां पर सबसे पहले में मंदिर पुजारी धधकते अंगारों पर चलकर मां पद्मावती के दर्शन करते हैं और फिर मेले में आने वाले भक्त अंगारों पर चलकर मां की प्रतिमा के दर्शन करते हैं. इस मंदिर में प्रतिमा को स्थानीय लोग दुर्गा के रूप में भी पूजते हैं. कहा जाता है कि यह प्रतिमा भगवान विष्णु की पत्नी और धन की देवी लक्ष्मी का रूप है. मंदिर के पास ही एक कुंआ है. जिसमें सबसे पहले श्रद्धालु पानी से अपने पांव को साफ करते हैं और उसके बाद दहकते अंगारों पर चलते हैं.

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