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Rana Sanga: राणा सांगा युद्ध जीतने के बाद सबूत के लिए उखाड़ लाते थे दुश्मनों के तंबू, मेवाड़ के बाहर भी लहराई थी विजय पताका

Rana sanga controversy: राणा सांगा पर सपा के राज्यसभा सांसद रामजीलाल सुमन के बयान पर विवाद का मामला तूल पकड़ चुका है.

Rana Sanga: राणा सांगा युद्ध जीतने के बाद सबूत के लिए उखाड़ लाते थे दुश्मनों के तंबू, मेवाड़ के बाहर भी लहराई थी विजय पताका

Mewar Ruler Rana Sanga: ‘इसकी अस्सी घावों वाली गाथा कितनी यशवर्धक है, राणा सांगा की अरिनाशक जय निष्ठा कीर्ति विवर्धक है...' कवि पंडित नरेंद्र मिश्र की ये पंक्तियां पराक्रमी राणा सांगा के शासन काल को एक पंक्ति में ही बतलाने के लिए काफी है. मेवाड़ के पराक्रमी शासक राणा सांगा (Rana Sanga) का जन्म वैशाख कृष्ण पक्ष नवमी (विक्रम संवत 1538) यानि गुरुवार को हुआ था. वे मेवाड़ के पहले शासक थे, जिन्होंने दिल्ली को लक्ष्य बनाया था. ना सिर्फ मेवाड़ और उसके आसपास, बल्कि मीलों दूर कई दूसरी रियासतों तक उनकी विजय पताका लहराई. उनकी जीत का उल्लेख कई शिलालेखों में मिलता है.  

राणा हस्ताक्षर नहीं करते थे, बल्कि लिखते थे 'सही'

इतिहासकारों के मुताबिक, राणा सांगा युद्ध में जीत के बाद सबूत भी साथ लाते थे. वह जब जीतकर आते तो प्रमाण के तौर पर विरोधी राजाओं के तंबू ले आते थे. मुगलों की सैन्य व्यवस्था का प्रमुख आकर्षण लाल डेरा का सैन्य शिविर था. जब जनवरी 1527 ई. में बयाना की लड़ाई हुई तो कमाल खान लोदी के सैन्य शिविर पर आक्रमण कर डेरे को सम्मान के रूप में हासिल किया था. 

उनके शासनकाल में कई परंपरा शुरू हुई, इसमें एक परंपरा है सही लिखने की. मेवाड़ के दस्तावेज पर पूर्व में महाराणाओं के हस्ताक्षर होते थे. लेकिन राणा सांगा दस्तावेजों पर हस्ताक्षर नहीं करते थे, बल्कि उसकी जगह सही लिखते थे. विक्रम संवत 1509 ई. में सांगा ने हस्ताक्षर की जगह ‘सही' लिखने की परंपरा शुरु की. दस्तावेजों में कर्मचारी को ‘सहीवाला' कहा जाने लगा. 

कुंभलगढ़ में लगा है राणा सांगा के शासन का शिलालेख

राणा सांगा के शासन काल का शिलालेख कुंभलगढ़ के दुर्ग में नीलकंठ महादेव के मंदिर में मिलता है. इस शिलालेख में लिखा है कि ‘संवत 1583 वर्षे श्रावण बुदी 11...जी पाजी श्री सहसा जी व (चनातु) श्री आघाट पुर रा मात भ...समस्त वास्तव्य प्रति ई श्री ई...श्री श्री तादा - ल लीष...ज ठाकर पालश्रिजे बीजु ही न...रहत-र ली प्पु लोपि तीय री मा...जा...घत्रड गवात ठकन जी....'

इस काल अभिलेख का मिलना इसलिए भी खास है क्योंकि सांगा के काल में यह व्यापारिक मंडी राज से नियंत्रित थी. आहड़ की राजधानी के रूप में ख्याति 10वीं सदी में रही. व्यापारिक मंडी के रूप में ख्याति 1280 ई. से मिलती है और यह इस काल में भी रही. इस काल में व्यापारियों को राड़-वराड़ यानी युद्ध कर (टैक्स) अनिवार्य तौर पर देना पड़ता था. यहीं पर विख्यात ढोला मारू गाथा का चित्रण हुआ. 

जब बाबर ने युद्ध के लिए ललकारा तो आहड़ में खड़ा करवाया गया था शिलालेख

ऐसा ही एक शिलालेख उदयपुर के आहड़ म्यूजियम में है. इस शिलालेख के संबंध में लोक संस्कृति और इतिहास के जानकार डॉ. श्रीकृष्ण जुगनू के मुताबिक, जब बाबर ने महाराणा सांगा को 1526 ई. (विक्रम संवत् 1583) के अगस्त में ललकारा थ,. तब यहां के अधिकारी ‘राज' सम्मान प्राप्त सहसा (सहेसा) ने आहड़ के महाजनों सहित सभी स्थानीय लोगों को पाबंद करते हुए यह अभिलेख खड़ा करवाया. 

उदयपुर के आहड़ म्यूजियम में शिलालेख लगा है.

उदयपुर के आहड़ म्यूजियम में शिलालेख लगा है.

आहड़ में मिला यह अभिलेख विक्रम संवत् 1583 के श्रावण के कृष्ण पक्ष की 11 तिथि का है. उस वक्त संस्कृत मूल की पत्र लेखन विधि और स्थानीय भाषा का प्रयोग होता था. आहड़ के आघाट पुरी नाम का इस काल का यह महत्वपूर्ण साक्ष्य है. इसका नाम ‘तांबावल्ली' (तांबावती नगरी) भी पढ़ा जा सकता है.

इतिहासकारों का दावा है कि किसी भी भारतीय अभिलेख या शिलालेख में राणा सांगा को पराजित नहीं बताया गया. वह अंतिम सांस तक अपराजेय रहे.

गुजरात में स्थित प्रसिद्ध शत्रुंज्य तीर्थ में लगे शिलालेख में भी उन्हें अपनी सांस रहने तक हर संग्राम को जीतने वाला कहा है. वह लोदी जैसे सामान्य और सामंत कोटि के राजा को खुद ही शिकस्त दे सकता था. 

महमूद खिलजी को हराने के बाद भी दे दिया मालवा का आधा राज्य 

कई इतिहासकार, राणा सांगा के शासन में उदारता के प्रमाण भी देते हैं. इतिहासकार गौरीशंकर हीराचंद ओझा का मत है कि महमूद खिलजी को हराने के बाद भी मालवा के आधे राज्य को देकर विदा किया. डॉ. गौरीशंकर औझा ने ‘वीर शिरोमणि महाराणा सांगा' पुस्तक में लिखा है, "लड़ाई में फतह करने के बाद राज्य देना उदारता का परिचय है. महाराणा ने मांडू के सुल्तान को कैद करने के बाद भी 3 महीने के बाद रिहा किया."  

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