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क्या राणा सांगा ने बाबर को भारत बुलाया था?

Sushant Pareek
  • विचार,
  • Updated:
    मार्च 23, 2025 17:34 pm IST
    • Published On मार्च 23, 2025 17:29 pm IST
    • Last Updated On मार्च 23, 2025 17:34 pm IST
क्या राणा सांगा ने बाबर को भारत बुलाया था?

History of Rana Sanga: राज्यसभा में समाजवादी पार्टी के सांसद रामजी लाल सुमन द्वारा दिए गए बयान ने राणा सांगा और बाबर के संबंधों को लेकर एक नई बहस छेड़ दी है. उन्होंने कहा कि अगर मुसलमान बाबर की संतान कहे जाते हैं, तो बाबर को बुलाने वाले की आलोचना क्यों नहीं होती? यह बयान ऐतिहासिक संदर्भों के बिना अधूरा और भ्रामक हो सकता है. इसलिए यह आवश्यक है कि हम इस विषय की इतिहासकारों और प्रमाणिक पुस्तकों के आधार पर पड़ताल करें.

राणा सांगा (संग्राम सिंह) (1472-1528) मेवाड़ के इतिहास में एक ऐसा नाम है, जिसकी वीरता और युद्धकौशल को कई इतिहासकारों ने ‘अद्वितीय' कहा है. राणा सांगा महाराणा कुम्भा के वंशज और मेवाड़ के सर्वश्रेष्ठ योद्धाओं में से एक थे. वे राजपूत संघ को संगठित कर उत्तर भारत में हिंदू प्रभुत्व स्थापित करना चाहते थे. हालांकि राणा सांगा और बाबर के बीच किसी आधिकारिक आमंत्रण का कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं मिलता. लेकिन कुछ परिस्थितियां ऐसी थीं जिनसे यह भ्रांति उत्पन्न हुई. 

स्टेनली लेन-पूल (Stanley Lane-Poole) अपनी पुस्तक “Medieval India Under Mohammedan Rule” में लिखते हैं कि  “राणा सांगा एक महान हिंदू योद्धा थे, जिनका लक्ष्य दिल्ली और आगरा में इस्लामिक प्रभुत्व को चुनौती देना था.”

उन्होंने कई लड़ाइयां लड़ीं, जिनमें गुजरात के सुल्तान और दिल्ली के लोदी वंश के शासकों के खिलाफ युद्ध शामिल थे. उनका शरीर युद्ध के घावों से भरा था. एक हाथ नहीं था, एक आंख चली गई थी, और एक पैर कट चुका था. फिर भी, वे कभी नहीं झुके. 

डॉ. जी.एन. शर्मा अपनी पुस्तक “Rajasthan Through The Ages” में लिखते हैं कि राणा सांगा के शरीर पर अनगिनत घाव थे. एक आँख खो चुकी थी, एक हाथ कट चुका था, फिर भी उनके हौसले और नेतृत्व क्षमता ने मेवाड़ को स्वर्णकाल की ओर अग्रसर किया.

प्रसिद्ध राजस्थानी इतिहासकार मुहणोत नैणसी ने अपनी रचना “नैंससी री ख्यात” में लिखा है. “राणां सांगा री सूज-धूज अणूठी, सामर्थ अचूक. अणेक रण लड़या, पण बीरता थकी कदी ना हारया.” यानी राणा सांगा की रणनीति अनूठी थी, शक्ति अचूक थी. उन्होंने अनेक युद्ध लड़े, लेकिन वीरता से कभी हार नहीं मानी.

क्या राणा सांगा ने बाबर को भारत बुलाया था?

यह प्रश्न कई इतिहासकारों और लेखकों के बीच चर्चा का विषय रहा है. डॉ. दशरथ शर्मा, “A Concise History of Mewar” में लिखते हैं. “ऐसा कोई प्रमाणिक दस्तावेज़ नहीं मिलता, जिससे सिद्ध हो कि राणा सांगा ने आधिकारिक रूप से बाबर को भारत आने का न्यौता दिया था.”  कुछ इतिहासकारों का मानना है कि राणा सांगा ने बाबर से अप्रत्यक्ष संपर्क किया होगा, लेकिन वह केवल इब्राहिम लोदी को परास्त कराने की रणनीति भर हो सकती थी.

इरफान हबीब अपनी पुस्तक “The Agrarian System of Mughal India” में लिखते हैं. “बाबर ने खानवा के युद्ध से पहले अपनी सेना को जिहाद के लिए प्रेरित किया और यह स्पष्ट कर दिया कि वह भारत में एक मज़बूत सत्ता स्थापित करना चाहता है. अतः यदि राणा सांगा ने कभी बाबर से संपर्क किया भी होगा तो वह यह मानकर चल रहे थे कि बाबर लोदी को हराकर लौट जाएगा.

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प्रसिद्ध राजस्थानी लेखक गोपीनाथ शिविरा ने अपनी पुस्तक “मेवाड़ रत्नों की गाथा” में लिखा है. “राणा सांगा बाबर नै लावणो चाहतो हतो, ई मत कोई-कोई इतिहासकार राखे छे, पण ठोस साक्ष्य कोनी पासे नथी.” (कुछ इतिहासकार मानते हैं कि राणा सांगा बाबर को बुलाना चाहते थे, लेकिन इसके ठोस प्रमाण किसी के पास नहीं हैं.)

कुछ इतिहासकारों के मुताबिक़ 1523 में, बाबर को दिल्ली सल्तनत के कई प्रमुख लोगों से निमंत्रण मिला था. सुल्तान सिकंदर लोदी के भाई आलम खान लोदी, पंजाब के गवर्नर दौलत खान लोदी और इब्राहिम लोदी के चाचा अलाउद्दीन ने इब्राहिम लोदी के शासन को चुनौती देने के लिए उसकी सहायता मांगी.

इसके अलावा कई इतिहासकारों के अनुसार, बाबरनामा में राणा सांगा के निमंत्रण का उल्लेख किया गया है, लेकिन यह घटना पानीपत की पहली लड़ाई के बाद की बताई जाती है, जब बाबर राजपूत राजा के विरुद्ध युद्ध की तैयारी कर रहा था.

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि- बाबर का आगमन

1526 में बाबर ने पानीपत की पहली लड़ाई में इब्राहिम लोदी को हराकर दिल्ली व आगरा पर अधिकार कर लिया. डॉ. आर.सी. मजूमदार (R.C. Majumdar) अपनी पुस्तक “The History and Culture of the Indian People” में लिखते हैं. “बाबर की योजना महज़ एक आक्रमणकारी की नहीं थी, वह भारत में स्थायी सत्ता स्थापित करना चाहता था.”

जेम्स टॉड (James Tod) ने “Annals and Antiquities of Rajasthan” में उल्लेख किया है कि बाबर का उद्देश्य केवल लूट-खसोट नहीं, बल्कि भारत में एक मज़बूत साम्राज्य स्थापित करना था. वहीं राणा सांगा को उम्मीद थी कि बाबर लोदी वंश का अंत कर वापस मध्य एशिया लौट जाएगा और तब राजपूत राज्य उत्तर भारत में स्वतंत्र रूप से संगठित हो सकेंगे.

खानवा का युद्ध (1527)

जब राणा सांगा को पता चला कि बाबर वापस जाने के बजाय दिल्ली-आगरा पर स्थायी रूप से कब्जा जमाना चाहता है, तो उन्होंने खानवा के मैदान में बाबर का सामना करने का निर्णय लिया. 

फ़रिश्ता (Muhammad Qasim Firishta) ने अपनी पुस्तक “Tarikh-i-Firishta” में लिखा है. “यदि राणा सांगा खानवा में जीत जाते, तो हिंदुस्तान का भविष्य पूरी तरह से बदल जाता.”

राणा सांगा ने महमूद लोदी, हसन खान मेवाती, मेदिनी राय जैसे शक्तिशाली अफगान और राजपूत सरदारों के साथ मिलकर लगभग 100,000 सैनिकों की विशाल सेना तैयार की. राणा सांगा के सेना में राजस्थान की सभी बड़ी रियासतों के राजा शामिल थे.

बाबर की सेना संख्या में कम थी, लेकिन तुर्की तोपखाने और संगठित रणनीति से लैस थी.बाबर ने तोपों और तुर्की युद्ध तकनीक का कुशल प्रयोग किया. राणा सांगा की सेना बहुत बड़े बल के बावजूद इस नई युद्ध प्रणाली का सामना नहीं कर सकी. राणा सांगा घायल हुए और उनके सेनापतियों ने उन्हें युद्धभूमि से हटा लिया.

राणा सांगा को “गद्दार” कहना ऐतिहासिक रूप से गलत है, क्योंकि उन्होंने बाबर को न तो आधिकारिक न्योता दिया, न ही उससे स्थायी मित्रता की. जब बाबर ने भारत छोड़ने से मना किया, तो सांगा ने युद्ध का रास्ता अपनाया. उनका सपना था एक शक्तिशाली हिंदू संघ, जो विदेशी आक्रमणों को रोक सके.

वी.एस. भंडारकर (V.S. Bhandarkar) अपनी पुस्तक “A History of Mewar” में लिखते हैं “राणा सांगा कभी बाबर के समर्थक नहीं थे. यदि ऐसा होता, तो खानवा का युद्ध असंभव था. उनके लिए राष्ट्रहित सर्वोपरि था.”

खानवा के युद्ध में पराजय के बाद भी राणा सांगा ने हार नहीं मानी. वे फिर से सेना संगठित करने की तैयारी कर रहे थे.1528 में उनकी मृत्यु हो गई. महाराणा प्रताप जैसे वीर शासक ने राणा सांगा को अपना प्रेरणास्रोत माना. राजस्थानी लोकगीतों और कविताओं में राणा सांगा का उल्लेख एक ऐसे योद्धा के रूप में मिलता है, जिसने आख़िरी सांस तक स्वाधीनता के लिए संघर्ष किया.

जेम्स टॉड ने भी लिखा है- “राणा सांगा की वीरता ने राजपूताने के भविष्य को संवारा. अगर वे कुछ और वर्षों तक जीवित रहते, तो शायद भारत का इतिहास अलग होता.”

कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि सांगा के बाबर को बुलाने का प्रश्न ही नहीं है. कोई ठोस ऐतिहासिक प्रमाण यह सिद्ध नहीं करता कि राणा सांगा ने आधिकारिक रूप से बाबर को भारत आने का निमंत्रण दिया था. यह ज़रूर है कि सांगा ने लोदी वंश को हटाने के लिए बाबर के आगमन को एक अवसर के रूप में देखा, लेकिन बाबर की महत्वाकांक्षाएँ कहीं बड़ी थीं.

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : लेख भारत के प्रतिष्ठित इतिहासकारों की कृतियों और राजस्थान के जाने-माने लेखकों के उद्धरणों के आधार पर तैयार किया गया है. इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. 

Posted by: Nishant Mishra 

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