Sawan Somwar 2024: सावन माह में सोमवार का दिन भगवान भोलेनाथ की पूजा अर्चना के लिए विशेष माना जाता है. पहले सोमवार को जिलेभर के शिव मंदिरों में आस्था का सैलाब उमड़ पड़ा. धौलपुर में श्रावण माह के पहले सोमवार को जिलेभर के शिव मंदिर बम-बम भोले की गूंज से गूंज उठे. जिले के सैपऊ कस्बे के ऐतिहासिक महादेव मंदिर में सुबह 4 बजे मंगला आरती के बाद श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ पड़ी. भगवान महादेव के गर्भगृह में स्थित शिवलिंग पर गंगाजल के माध्यम से सहस्त्रधारा छोड़ी गई. इसके बाद श्रद्धालुओं ने शिवलिंग पर बेलपत्र, धतूरा, घी, शहद और शक्कर से अभिषेक किया गया.
महादेव मंदिर से लेकर महाकालेश्वर में उमड़ी भक्तों की भीड़
इसके साथ ही अचलेश्वर महादेव मंदिर, चोपड़ा मंदिर, भूतेश्वर महादेव, गुप्तेश्वर महादेव, महाकालेश्वर व सैपऊ के ऐतिहासिक महादेव मंदिर समेत जिले के अन्य मंदिरों पर भी श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ी. हरिद्वार, सोरों और कर्णवास से कावड़िए गंगाजल लेकर पहुंचे. भगवान महादेव के शिवलिंग पर गंगाजल चढ़ाकर पूजा-अर्चना की गई. श्रद्धालुओं ने भगवान भोलेनाथ के भक्तों के लिए भंडारों का भी आयोजन किया. जगह-जगह स्टाल लगाकर भोग प्रसादी का वितरण किया गया.
सोमवार से शुरू सोमवार को होगा समापन
लंबे समय बाद सावन महीने की शुरुआत सोमवार से हुई है. सावन के आखरी महीने का समापन सोमवार को ही होगा. इसके कारण इस बार सावन के महीने में पांच सोमवार श्रद्धालुओं को पूजा अर्चना करने के लिए मिलेंगे. महंत रामभरोसी पुरी ने बताया लंबे अर्से बाद ऐसा संयोग हुआ है कि सावन के महीने की शुरुआत सोमवार से होकर सोमवार को ही समापन होगा. महंत रामभरोसी पुरी ने बताया कि लंबे समय के बाद ऐसा संयोग बना है कि सावन का महीना सोमवार से शुरू होगा और सोमवार को ही खत्म होगा. इसके चलते इस बार सावन के महीने में भक्तों को पूजा-अर्चना के लिए पांच सोमवार मिलेंगे.
750 वर्ष पुराना है शिव मंदिर
सैपऊ कस्बे का ऐतिहासिक महादेव मंदिर काफी पुराना बताया जाता है. पौराणिक मान्यता के अनुसार त्रेता युग में ऋषि विश्वामित्र ने भी शिवलिंग के चारों ओर पूजा-अर्चना की थी. लेकिन शिवलिंग 750 साल पहले प्रकट हुआ था. करीब 200 साल पहले तत्कालीन रियासत के महाराज कीरत सिंह के साले राजधर ने शिवलिंग के ऊपर गर्भगृह और मंदिर बनवाया था. पौराणिक मान्यता के अनुसार जब शिवलिंग की खुदाई की गई तो पता चला कि इसका न तो आदि है और न ही अंत। ऐसे में उसी स्थान पर प्राण प्रतिष्ठा कर मंदिर का निर्माण कराया गया.
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