Success Story Sita Mali: राजस्थान के बालोतरा जिले की मालियों की ढाणी निवासी सीता माली अपने जज्बे से ने यह साबित कर दिया है कि शारीरिक अक्षमता नहीं, बल्कि मन का संकल्प ही सफलता तय करता है. बचपन में पोलियोग्रस्त होने के बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी और आज उन्हें 'पैरा स्विमिंग की जलपरी के नाम से जाना जाता है. खेल के प्रति अपने अटूट जज्बे को कायम रखते हुए सीता ने अपनी दिव्यांगता को कमजोरी की जगह हिम्मत बनाया. दाएं पैर में पोलियो होने के बावजूद उन्होंने पैरा खेलकूद की तैराकी प्रतियोगिताओं में अब तक कुल 23 मेडल जीतकर जिले और प्रदेश का नाम रोशन किया है. सीता ने जिला, राज्य और राष्ट्रीय (नेशनल) प्रतियोगिताओं में कई स्वर्ण पदक हासिल किए हैं और वह प्रदेश की बेटियों के लिए एक बड़ी प्रेरणा का स्रोत बन चुकी हैं.
संघर्षपूर्ण वापसी और परिवार का साथ
बेहद साधारण परिवार में जन्मी सीता का जीवन बचपन से ही संघर्षों से भरा रहा. 2011 में शादी होने के बाद खेलों से उनकी दूरी बढ़ गई और उन्होंने करीब 10 साल का लंबा अंतराल लिया. लेकिन अपने खेल को वह भूल नहीं सकी. उनके जूनून को देखते हुए उनकी एक दोस्त ने उन्हें फिर से खेल की दुनिया में लौटने के लिए प्रेरित किया. शुरुआती दौर में रिश्तेदारों के तानों का सामना करना पड़ा, लेकिन उनके पतिमेहराराम (जो एक किराना दुकान चलाते हैं) ने हर मुश्किल समय में उनका साथ दिया, जिससे सीता दमदार वापसी कर पाईं. 2021 में राष्ट्रीय चयन (नेशनल सिलेक्शन) होने के बावजूद तैयारी कम होने से मेडल नहीं मिल पाया. इसके बाद उन्होंने कोच शेराराम परिहा के नेतृत्व में जोधपुर मेडिकल कॉलेज में 6 महीने कठोर अभ्यास किया. और मेडल लाने के लिए जी जान लगा दिया.
मेडल की झड़ी और लगातार चैंपियन
सीता ने साल 2022 में स्टेट प्रतियोगिता में 3 गोल्ड और नेशनल गुवाहाटी में 1 गोल्ड, 1 सिल्वर, 1 ब्रॉन्ज जीता।साल 2023 में स्टेट प्रतियोगिता में 3 गोल्ड और नेशनल ग्वालियर में 1 ब्रॉन्ज मिला।साल 2024 में स्टेट में 3 गोल्ड और नेशनल में 1 सिल्वर, 1 ब्रॉन्ज जीता, 2025 में सीकर स्टेट प्रतियोगिता में 3 गोल्ड और हाल ही में आयोजित नेशनल चैंपियनशिप में 1 ब्रॉन्ज जीता.ता अब तक कुल 23 मेडल जीत चुकी हैं और लगातार चार वर्षों से स्टेट लेवल पर अपनी तीनों कैटेगरी में गोल्ड मेडल चैंपियन बनी हुई हैं.
देश के लिए मेडल लाने का सपना
सीता के अनुसार, उनकी सफलता में उनकी सासका सबसे बड़ा योगदान है, जिनका सपना है कि उन्हें सरकारी नौकरी मिले. पति मेहराराम हर कदम पर उन्हें प्रेरित करते हैं। दो जुड़वां बच्चों की जिम्मेदारी के बीच खेल और परिवार के बीच संतुलन साधना उनके लिए एक चुनौती थी, लेकिन संकल्प और परिवार के सहयोगसे उन्होंने हर बाधा को पार किया. सीता माली कहती है कि उनका सबसे बड़ा सपना है कि वह देश के लिए खेलना चाहती है और भारत के लिए मेडल जीतकर तिरंगे को ऊंचा लहराना चाहती है.