
Amber Hathi Gaanv: राजधानी जयपुर के आमेर स्थित कुंडा इलाके में करीब 100 एकड़ में फैला देश का एकमात्र हाथी गांव 2010 में बसाया गया था. इसका उद्देश्य हाथियों को प्राकृतिक और प्रदूषण मुक्त वातावरण देना था. यहां सैकड़ों पेड़ लगाए गए, तालाब बनाए गए ताकि हाथी खुलकर रह सकें, लेकिन अब यही गांव विभाग की सबसे बड़ी विडंबना बन गया है, क्योंकि यहां हथनियों को तो घर मिला, लेकिन जीवनसाथी नहीं.
हाथी गांव में इस समय करीब 75 मादा हाथनियां और केवल एक नर हाथी 'बाबू' है. वन्यजीव विशेषज्ञों के मुताबिक, इतनी हथनियों के लिए कम से कम पांच नर हाथियों की जरूरत है ताकि स्वाभाविक प्रजनन की प्रक्रिया हो सके. प्राकृतिक वातावरण के बावजूद जब साथी ही नहीं है, तो हथनियों का कुनबा कैसे बढ़ेगा?
''जीवनसाथी न मिलने के कारण इनकी संख्या बढ़ नहीं रही''
हाथी पालक आसिफ खान बताते हैं कि हथनियों को जीवनसाथी न मिलने के कारण इनकी संख्या बढ़ नहीं रही. ''सरकार ने आवास तो दिया, लेकिन प्रजनन की व्यवस्था नहीं की. हथनियों की उम्र बढ़ रही है, पर उनके साथ प्राकृतिक प्रक्रिया नहीं हो रही.''
कुछ वर्षों पहले तक हाथी गांव में 120 हाथी थे. लेकिन अब इनकी संख्या घटकर सिर्फ 75 रह गई है. इनमें से कुछ की मौत हुई, जबकि कुछ को गुजरात भेजा गया. सिर्फ पिछले सालों में तीन हथनियों की मौत दर्ज हुई है. यह स्थिति राजस्थान के हाथी पर्यटन के लिए भी चिंता का विषय है, क्योंकि आमेर महल की सवारी इन्हीं हाथियों से कराई जाती है.
''नहीं मिला साथी तो विलुप्त हो जाएंगे''
हाथी गाँव विकास समिति के अध्यक्ष बल्लू खान का कहना है, ''प्राकृतिक प्रक्रिया जरूरी है. अगर हथनियों में प्रजनन नहीं हुआ तो धीरे-धीरे हाथी विलुप्त हो जाएंगे. मनुष्य हो या वन्यजीव, हर किसी का जोड़ा होना जरूरी है.'' उनका कहना है कि विभाग को जल्द से जल्द 5 नर हाथी लाने चाहिए ताकि प्रजनन की प्रक्रिया फिर से शुरू हो सके.

हाथी गांव देशी-विदेशी पर्यटकों के लिए बड़ा आकर्षण
हथनियों पर मानसिक असर
वरिष्ठ वन्यजीव चिकित्सक डॉ. अरविंद माथुर बताते हैं कि जब हथनियों को लंबे समय तक नर हाथी का साथ नहीं मिलता, तो इसका मानसिक प्रभाव (साइकोलॉजिकल इफेक्ट) पड़ता है. वे चिड़चिड़ी या आक्रामक हो जाती हैं, और कई बार यह व्यवहार महावतों के लिए भी खतरा बन जाता है. उनके मुताबिक़, ''हाथियों में एक-दूसरे के प्रति स्वाभाविक आकर्षण होता है. अगर यह पूरी तरह खत्म हो जाए, तो प्रजनन असंभव हो जाता है.''
वन विभाग की भूमिका और मॉनिटरिंग
उप वन संरक्षक (वन्यजीव) विजयपाल सिंह के अनुसार, हाथी गांव में सभी हाथी निजी स्वामित्व (प्राइवेट) में हैं. वन विभाग केवल मॉनिटरिंग करता है. हर साल दो बार विभाग की ओर से स्वास्थ्य जांच शिविर लगाया जाता है. इसमें हाथियों के ब्लड, यूरिन, लीड और फिकल सैंपल लेकर जांच की जाती है, और रिपोर्ट उच्च अधिकारियों को भेजी जाती है.
डॉ. सुनील जैन बताते हैं कि जांच के बाद हाथियों को दवाइयां दी जाती हैं और पालकों को स्वास्थ्य संबंधी जानकारी देकर जागरूक किया जाता है.
पहले जयपुर में होता था हाथियों का प्रजनन
पुराने हाथी पालक बताते हैं कि 20–25 साल पहले जयपुर में हथनियों का प्रजनन होता था, लेकिन अब दशकों से ऐसा नहीं हुआ. नर हाथी स्वभाव से आक्रामक होते हैं, इसी कारण हाथी गांव में मुख्य रूप से हथनियों को ही लाया गया. लेकिन अब यह नीति उलटी पड़ रही है, क्योंकि नर हाथी ही नहीं होंगे तो प्रजनन कैसे होगा?

20–25 साल पहले जयपुर में हथनियों का प्रजनन होता था.
आमेर का हाथी गांव देशी-विदेशी पर्यटकों के लिए बड़ा आकर्षण है. यहां आने वाले सैलानी हाथी सफारी का आनंद लेते हैं. लेकिन अगर हाथियों की संख्या इसी तरह घटती रही, तो यह पर्यटन पर भी सीधा असर डालेगा. हाथी सवारी के कारण सैकड़ों परिवारों की रोजी-रोटी चलती है.
प्राकृतिक आवास, पर अधूरी व्यवस्था
हाथियों के लिए गांव में तालाब, पेड़-पौधे, खुली जगह और नियमित स्वास्थ्य सुविधा तो है, पर प्राकृतिक जोड़ी व्यवस्था नहीं है. यह एक बड़ी विडंबना है कि जिस गांव को हाथियों का स्वर्ग माना गया था, वहीं अब हथनियों की एकाकी जिंदगी चिंता का विषय बन गई है. विशेषज्ञों का मानना है कि अगर विभाग अब भी नहीं चेता, तो आने वाले वर्षों में हाथी गांव केवल एक पर्यटक स्थल बनकर रह जाएगा, जहां हथनियां तो होंगी, लेकिन अगली पीढ़ी नहीं होगी.
(जयपुर से रोहन शर्मा की रिपोर्ट)