Ashok Gehlot: 3 दिसंबर को जब राजस्थान विधानसभा चुनाव के नतीजे आये तो भारतीय जनता पार्टी को पूर्ण बहुमत मिला गया. भाजपा ने 115 सीटें जीतीं तो कांग्रेस महज 69 सीटों पर सिमट गई. पिछले 25 साल से हर चुनाव में चला आ रहा सत्ता बदलने का रिवाज इस बार भी कायम रहा. लेकिन एक रिवाज टूट गया और वो था, पिछले 25 सालों से गहलोत-वसुंधरा के मुख्यमंत्री बनने की जुगलबंदी. इस बार भारतीय जनता पार्टी ने वसुंधरा के बजाए पहली बार विधायक चुने गए भजनलाल शर्मा को मुख्यमंत्री बना दिया और इस तरह वसुंधरा और अशोक गहलोत का युग का खत्म हो गया.
ऐसे में दोनों नेताओं के राजनीतिक भविष्य को लेकर अलग-अलग तरह के सवाल सियासी गलियारों में मौजूद हैं. अशोक गहलोत के पास फिलहाल सरदारपुरा के विधायक के अलावा कोई पद नहीं है. 6 महीने बाद देश में आम चुनाव हैं, ऐसे में अशोक गहलोत का इस्तेमाल पार्टी कैसे करती है, ये देखने वाली बात है.
गहलोत के तजुर्बे और कांग्रेस आलाकमान का उन पर भरोसे की मिसाल यह है कि राजस्थान में वो जब भी सत्ता से बे-दखल हुए उन्हें संगठन में बड़े पद दिए गए.
अगले साल होने वाले आम चुनावों में कांग्रेस अशोक गहलोत के तजुर्बे का इस्तेमाल करना चाहेगी. इसके अलावा इस बार कांग्रेस के कई चर्चित चेहरे लोकसभा चुनाव लड़ सकते हैं. खासतौर से MP, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में सरकार न आने बाद कांग्रेस वरिष्ठ नेताओं को लोकसभा चुनाव में उतार सकती है. उनमें अशोक गहलोत का नाम भी शामिल है.
यह पद पार्टी में कांग्रेस अध्यक्ष पद के बाद सबसे ताक़तवर पद माना जाता है. ऐसा ही कुछ 2003 में प्रदेश में कांग्रेस के हारने के बाद हुआ, तब भी 2004 में गहलोत को कांग्रेस का राष्ट्रीय महासचिव बनाया गया था. अगर गहलोत ने लोकसभा चुनाव लड़ा तो संभावना है कि वो जोधपुर से चुनाव लड़ें, ऐसे में शेखावत और उनके बीच कड़ा मुक़ाबला देखने को मिल सकता है. इसके अलावा पहले की तरह कांग्रेस उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर संगठन में जिम्मेदारी दे सकती है.
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