
Royal Ride of Gangaur: राजस्थान की सांस्कृतिक राजधानी जोधपुर में गणगौर पर्व पर भीतरी शहर परकोटे में 2 करोड़ के स्वर्ण आभूषणों से सजी गणगौर की शाही ठाठ-बाठं के साथ सवारी निकली. इस बार हैदराबाद के विशेष पतियों से गणगौर के रथ को भी आकर्षक रूप में सजाया गया शाही सवारी के साथ ही तीजणियां भी गणगौर के गीतों पर थिरकती देखी गई. राजशाही शासन से भी पहले से चली आ रही है यह परंपरा जोधपुर में आज भी कायम है. गणगौर पर्व पर शाही अंदाज में निकलने वाली गणगौर की सवारी के दर्शन के लिए लाखों की संख्या में दर्शनार्थियों का हुजूम उमड़ता है. भारी पुलिस आवाज में के बीच 4 किलो से भी अधिक स्वर्ण आभूषणों से लदी गणगौर का विशेष श्रृंगार किया जाता है.
16 दिन तक महिलाएं करती हैं पूजा
72 वर्षों से जोधपुर का लोहिया परिवार परंपरा से जुड़ा है. उनकी यह चौथी पीढ़ी इस परम्परा को आगे बढ़ा रही है. मां पार्वती के गौरी स्वरूप के रूप में गणगौर माता का पूजन किया जाता है और गणगौर के पर्व पर विशेष श्रृंगार के साथ शोभायात्रा भी निकाली जाती है. महिलाओं के साथ ही कुंवारी कन्याओं में भी गणगौर के पर्व को लेकर खासा उत्साह रहता है. होली के अगले दिन से 16 दिनों तक महिलाएं तीजणियों के रूप में गणगौर माता की पूजा अर्चना करती हैं. गणगौर पर्व पर उद्यापन के साथ आराधना भी करती हैं.
दर्शन करने पहुंचे केंद्रीय मंत्री शेखावत
ऐसी मान्यता भी है कि विवाहित महिलाएं जहां अपने पति की लंबी उम्र के लिए गणगौर पूजा करती है. वहीं कुंवारी कन्याएं अच्छे वर की कामना के लिए गणगौर की आराधना और पूजा करते हैं. जोधपुर के इस गणगौर पर्व की विशेषता यह भी है कि प्रतिवर्ष आयोजित होने वाले गणगौर पर्व को लेकर गणगौर माता का खुद का बैंक अकाउंट और लॉकर भी है. जिसमे प्रतिवर्ष होने वाले गणगौर उत्सव का फंड भी डिपॉजिट रहता है. साथ ही राजस्थान में जयपुर, उदयपुर के साथ ही जोधपुर में गणगौर पर्व को विशेष उत्सव के रूप में शाही तरीके से मनाया जाता है. गुरुवार की गणगौर की विशेष शाही सवारी के दर्शन करने केंद्रीय जलशक्ति मंत्री व भाजपा प्रत्याशी गजेंद्र सिंह शेखावत भी दर्शन करने पहुंचे.
75 साल पहले राज दरबार में हुआ हादसा
एनडीटीवी से खाश बातचीत करते हुए गणगौर पर्व की इस परंपरा की जानकारी देते हुए बताया कि गणगौर कमेटी के मदमोहम माहेश्वरी ने बताया कि पहले गणगौर की सवारी राज दरबार से निकला करती थी और आज से 75 वर्ष पहले राज दरबार में किसी हादसे के कारण गणगौर की शाही सवारी निकालने का जिम्मा हमें सौंप दिया. उसके बाद से ही आज तक यह सारी शाही सवारी हमारे द्वारा निकाली जाती है. वर्ष में एक दिन ही यह गणगौर अपने ससुराल से शाही ठाठ के साथ अपने पीहर जाती है और भोलावनी के दिन अपने ससुराल इस शाही अंदाज में आती हैं.
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