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जोधपुर के जेएनवी विश्वविद्यालय का यह अनोखा म्यूजियम, जहां रखे गए हैं करोड़ों साल पुराना जीवाश्म

जोधपुर में है अनूठा म्यूजियम जहां लाखों वर्ष पूर्व की पत्थर, चट्टानों, खनिज के साथ ही विलुप्त समुद्री जीवों को संरक्षित किया है. जानिए इस म्यूजियम की खासियत!

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जोधपुर के जेएनवी विश्वविद्यालय का यह अनोखा म्यूजियम, जहां रखे गए हैं करोड़ों साल पुराना जीवाश्म
म्यूजियम के भीतर की तस्वीरें

Rajasthan News: बात जब म्यूजियम की आती है तो राजा महाराजाओं के किले और महल के साथ ही ऐतिहासिक धरोहर को संरक्षित करने वाले म्यूजियम का ख्याल मन में आना स्वभाविक है. यूं तो म्यूजियम आपने खूब देखें और सुने होंगे लेकिन जोधपुर के जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय के भू विज्ञान विभाग में एक अनूठा पत्थरों का म्यूजियम है. जहां लाखों वर्ष पहले के पत्थरों, चट्टानों के साथ ही मिनरल्स और जीवाश्मों को संग्रहित किया है.

वहीं 11 हजार से भी अधिक वर्ष के पत्थरों के अलावा समुद्री विलुप्त होती प्रजातियों के जीवाश्म को भी यहां सुरक्षित किया गया है. हाथी पांव का भी एक मॉडल इस संग्रहालय का आकर्षण है.

संजोए गए लाखों साल पुराने सैंपल

प्रदेश में संभवत पहला ऐसा अनूठा म्यूजियम जोधपुर के जेएनवीयू भू- विज्ञान विभाग में स्थापित है. इसकी विशेषताओं की बात करें हजारों लाखों साल पहले के चट्टान, खनिज के अलावा लाखों वर्ष पहले जब इन थार रेगिस्तान में समुद्र हुआ करता था. उस दौर के जीवाश्म और अवशेषों को भी यहां संजोया गया है. बाड़मेर की मंगला टर्मिनल से निकलने वाले क्रूड ऑयल के सैंपल भी यहां अध्ययन के लिए रखे गए हैं. यहां समुद्री जीवों की टोलबाईट और एमोनाइट के सैंपल भी रखे हैं. इसके अलावा सेंड स्टोन, लिग्नाइट, जिप्सम के खास किस्म के सैंपल भी यहां संजय हुए हैं.

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हजारों-करोड़ों साल पहले के जीव

एनडीटीवी से खाश बातचीत करते हुए भूविज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर(डॉ.) एस.आर जाखड़ ने इस अनूठी म्यूजियम की विशेषता बताई. उन्होंने कहा कि पृथ्वी की उत्पत्ति के बाद से उसकी जो 450 करोड़ वर्ष पुरानी जो आयु है, उस समय से लेकर के वर्तमान तक विभिन्न आयु तक के रोक्स जमा हुई या उत्पन्न हुई. उन सभी के सैंपल्स यहां पर है और इसकी खास बात यह है कि आमतौर पर राजस्थान में मिलने वाली 330 करोड़ वर्ष से लेकर के 50 करोड़ वर्ष तक की चट्टाने है. 50 करोड़ साल पहले की  चट्टानों में जीवों के जो अवशेष और फॉसिल्स जो प्रिजर्व या वेल प्रिजर्व नहीं है. उनके अलावा 10 हजार साल पहले के शिलाएं और चट्टाने हैं जिनमें अलग-अलग उम्र की चट्टानों के साथ में अलग-अलग टाइप के जीव प्रिजर्व है.

रेगिस्तान की जगह हुआ करता था समुद्र 

प्रोफेसर जाखड़ ने बताया कि पहले थार रेगिस्तान के जगह पर समुद्र हुआ करता था. जिसका शास्त्रों में भी उल्लेख है. इस विशाल सागर को तेथी सागर के नाम से जाना जाता था. पहले यहां से लेकर के हिमालय तक यह समुद्र था. उन्होंने आगे कहा कि आज जहां हिमालय है, किसी समय में वहां समुद्र हुआ करता था. हिमालय के अंदर भी समुद्री जीवों के जीवाश्म भी पा सकते हैं. जैसलमेर का किला और पुराने शहर की चट्टानें और उनकी लेयर को देखने पर कई सारे जीवों के फॉसिल्स नजर आएंगे. ऐसे जीवाश्म बीकानेर के कोलायत रीजन में भी देखे जा सकते हैं. इसके अलावा बाड़मेर में लिग्नाइट इत्यादि के भी प्रमाण है. 

म्यूजियम में रखे गए हाथी के बोन्स

प्रोफेसर ने बताया कि यहां बाड़मेर के मंगला टर्मिनल से निकलने वाले क्रूड ऑयल का सैंपल भी अध्ययन के लिए सुरक्षित किया गया है. जहां जिस प्रकार से बाड़मेर से निकलने वाली गैस और जैसलमेर के मंगल टर्मिनल से निकलने वाले तेल और अन्य पदार्थ का सैंपल भी यहां अध्ययन के लिए रखे गए है. इसके अलावा नागौर में तृतीय काल की चट्टानों से निकली हाथी की कई सारी बोन्स और जीवाश्म भी प्राप्त हुई थे, जिन्हें इस म्यूजियम में रखा गया है.

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