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Annakoot 2024: राजस्थान का ऐसा मंदिर, जहां दीपावली पर 350 साल से चल रही है प्रसाद 'लूटने' की परम्परा 

Annakoot 2024: सदियों पुरानी इस परंपरा के तहत स्थानीय लोग मंदिर में सैकड़ों की संख्या में पहुंचते हैं और प्रसाद और चावल को लूट कर अपनी झोली में डालते हैं और घर जाते हैं. खास बात यह है कि इस समय मंदिर के द्वार सिर्फ आदिवासियों के लिए ही खोले जाते हैं.

Annakoot 2024: राजस्थान का ऐसा मंदिर, जहां दीपावली पर 350 साल से चल रही है प्रसाद 'लूटने' की परम्परा 

Govardhan Pooja 2024: गोवर्धन पूजा यानी अन्नकूट कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा 2 नवंबर को मनाया जाएगा. ऐसा माना जाता है कि मां अन्नपूर्णा अपने भक्तों को कभी भूखा नहीं रहने देती हैं. अन्नपूर्णा देवी की पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि और धन-धान्य की वृद्धि होती है. साथ ही इस दिन घर में दीपक जलाना भी शुभ माना जाता है. ऐसा करने से घर में कभी खाने की कमी नहीं होती है. अन्नकूट मनाने की परंपरा राजस्थान के नाथद्वारा में बेहद खास है.

राजसमंद जिले के नाथद्वारा (Nathdwara) में वल्लभ सम्प्रदाय के श्रीनाथजी (Shrinathji) मंदिर में अन्नकूट लूट की परंपरा है. यह परंपरा 350 साल पुरानी है, जहां भील आदिवासी प्रसाद लूटने आते हैं. यह आयोजन दीपावली के दूसरे दिन होता है. जहां अन्नकूट का भोग लगता है. यह अन्नकूट कई प्रकार के व्यंजनों से तैयार किया जाता है. जिसे भगवान श्रीनाथजी को चढ़ाया जाता है. 

प्रसाद और चावल को लूटकर झोली में भर लेते हैं भक्त

सदियों पुरानी इस परंपरा के तहत स्थानीय लोग मंदिर में सैकड़ों की संख्या में पहुंचते हैं और प्रसाद और चावल को लूट कर अपनी झोली में डालते हैं और घर जाते हैं. खास बात यह है कि इस समय मंदिर के द्वार सिर्फ आदिवासियों के लिए ही खोले जाते हैं. माना जाता है कि आदिवासी इस अन्नकूट को लूटकर अपने घर जाते हैं और अपनी तिजोरी अन्य जगहों पर रखते हैं, इससे पूरे साल इनके घर में अन्न की कमी नहीं होती. अन्नकूट को मटकी, झोली सहित अन्य तरीके से आदिवासी ले जाते हैं.

20 क्विंटल चावल को पकाकर लगा लिया जाता है ढेर

इस दौरान करीब 20 किवंटल चावल को पका कर एक ढेर लगा दिया जाता है. काफी गर्म होने के बावजूद आदिवासी भक्त भक्ति भाव से इसमें टूट पड़ते हैं. इस महाप्रसाद को आदिवासी समाज वर्ष भर सहेज कर रखता है. गुजरात, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश राज्य से लोग इस परम्परा में शामिल होने आते हैं वहीं नाथद्वारा और उसके आस पास के ज़िलों से भी लोग बड़ी संख्या में यहां पहुंचते हैं. इसी वजह से इन दिनों सभी होटल धर्मशालाएं और बसें खचाखच भरी रहती है.  

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