विज्ञापन
Story ProgressBack

कांठल में काले सोने के बंपर उत्पादन के आसार, सुरक्षा के लिए पहरेदारी कर रहे किसान

इस साल नारकोटिक्स विभाग की ओर से जारी आंकड़ों के अनुसार प्रतापगढ़ जिले में 9 हजार 267 किसानों को अफीम बुवाई के लाइसेंस दिए है. जिसमें 271 गांवों में किसानों ने फसल की बुवाई की है. इस बार अच्छी ठण्ड पड़ने के कारण ज्यादा फसल की पैदावार होने के आसार है.

Read Time: 4 min
कांठल में काले सोने के बंपर उत्पादन के आसार, सुरक्षा के लिए पहरेदारी कर रहे किसान
प्रतापगढ़ जिले में अफीम की फसल में फूल आ गए हैं

Rajasthan Opium Cultivation News: अफीम की फसल नकदी फसलों में सबसे टॉप पर आती है. कारण साफ़ है इसकी महँगी मार्केट वैल्यू होना. अफीम की फसल के लिए ठण्ड का मौसम सबसे ज्यादा लाभदायक माना जाता है. अफीम को अकसर लोग काला सोना  भी कहते हैं. राजस्थान के दक्षिण इलाकों में इसकी अच्छी पैदावार होती है. इसका एक कारण यह भी है कि मध्यप्रदेश से इस जिले का लगा होना जो कि नीमच और मंदसौर जिले से अपनी बॉउंड्री शेयर करता है.

प्रतापगढ़ जिले के अफीम किसानों के लिए नया साल खुशियां लेकर आया है. इस बार पिछले साल की तुलना में अधिक पैदावार होने के भी आसार हैं. काला सोना (Black Gold) कही जाने वाली इस फसल पर प्रतापगढ़ जिले में फूल आना शुरू हो गए है.

इस वर्ष नारकोटिक्स विभाग की ओर से जिले में 9 हजार 267 किसानों को अफीम बुवाई के लाइसेंस दिए है. जिसमें 271 गांवों में किसानों ने फसल की बुवाई की है.

हालांकि अभी बहुत कम खेतों में फूल दिखाई दे रहे है. फसल की बढ़वार को देखते हुए किसान भी फसल की सुरक्षा में जुटे हुए है. सुरक्षा के लिए अफीम खेतों के चारों तरफ जालियां लगा दी है. कई किसानों ने फसल के ऊपर भी प्लास्टिक की नेट भी लगा दी है. 

किसान रात भर जागकर देते हैं पहरा

अफीम की अच्छी फसल होने पर यह किसानों को मालामाल कर देती है. तो फसल खराब होने पर किसानों को बर्बादी की ओर भी ले जाती है. इसलिए इस काले सोने की सुरक्षा के लिए किसान तरह-तरह के जतन करने में लगे हुए हैं. अफीम फसलों की रखवाली के लिए किसान रात रात भर जागकर पहरा देते हैं. जिले में इस समय अफीम की फसल के फूल आने लगे हैं. फसल की पक्षियों से सुरक्षा के लिए किसानों ने कहीं पर नेट की जालियां लगाई है. तो नीलगाय से बचाव के लिए कंटीले तार भी लगाए हैं.

प्रतापगढ़ औैर अरनोद को प्रथम खंड में शामिल

नारकोटिक्स विभाग की ओर से प्रतापगढ़ औैर अरनोद को प्रथम खंड में शामिल किया गया है. इस वर्ष खंड प्रथम में चीरा लगाने के कुल 3211 लाइसेंस दिए गए है. जबकि गत वर्ष के 77 लाइसेंस को औसत में कमी होने से सीपीएस के तहत शामिल किया गया है. वहीं वर्ष 1998-99 के बाद 2021 तक के पात्र कुल 209 किसानों को भी इस वर्ष से सीपीएस के तहत लाइसेंस दिए गए है.

851 किसानों को मिले सीपीएस लाइसेंस

इस प्रकार इस वर्ष कुल 851 किसानों को सीपीएस के तहत लाइसेंस मिले है. विभाग की ओर से छोटीसादड़ी खंड में इस वर्ष कुल 5205 किसानों को लाइसेंस दिए गए है. इनमें से चीरा लगाने के कुल 3085 लाइसेंस है. जबकि गत वर्ष कम औसत देने वाले 322 किसानों को सीपीएस में शामिल किया गया है. वहीं गत वर्ष के सीपीएस के 1192 किसानों को सीपीएस में लाइसेंस दिए गए. वहीं कटे हुए पात्र किसानों को इस वर्ष 606 लाइसेंस दिए गए है. इस प्रकार कुल 2120 किसानों को सीपीएस के लाइसेंस दिए गए है.

जानें क्या होती है CPS पद्धति

(Concentrated poppy straw) यानी CPS पद्धति के तहत अफीम की फसल के फल पर चीरा लगाकर उसका दूध एकत्रित नहीं किया जाता है बल्कि अफीम के डोडों (फल) को बिना चीरा लगाए सूखने दिया जाता है.

इसे भी पढ़े: अफीम बुवाई के लिए लाइसेंस वितरण की प्रक्रिया शुरू, ऑनलाइन करना होगा आवेदन

Rajasthan.NDTV.in पर राजस्थान की ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें. देश और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं. इसके अलावा, मनोरंजन की दुनिया हो, या क्रिकेट का खुमार, लाइफ़स्टाइल टिप्स हों, या अनोखी-अनूठी ऑफ़बीट ख़बरें, सब मिलेगा यहां-ढेरों फोटो स्टोरी और वीडियो के साथ.

फॉलो करे:
डार्क मोड/लाइट मोड पर जाएं
Our Offerings: NDTV
  • मध्य प्रदेश
  • राजस्थान
  • इंडिया
  • मराठी
  • 24X7
Choose Your Destination
Close