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This Article is From Aug 05, 2023

बांसवाड़ा : जानिए, आखिर पानी से कैसे होता है बिजली का उत्पादन, क्यों है ये इतना खास

कहने को पन बिजली घर कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस, विंड, सोलर पावर या परमाणु बिजलीघरों की तरह बिजली बनाता है. लेकिन अन्य बिजलीघरों से परे ये बिजलीघर खास विशेषता से लैस हैं.

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बांसवाड़ा : जानिए, आखिर पानी से कैसे होता है बिजली का उत्पादन, क्यों है ये इतना खास
अपनी बनाई बिजली खुद नहीं कर सकते इस्तेमाल

प्रदेश के बड़े बांधों में शुमार माही बांध में पानी का फ्लो होने के साथ ही बांसवाड़ा जिले में स्थित सबसे सस्ती दर पर बिजली उत्पादन करने वाले पन बिजली घर से बिजली का उत्पादन भी शुरु हो चुका है. अभी पानी का फ्लो कुछ कम है, इस कारण प्रतिदिन दस से बारह लाख यूनिट बिजली का ही उत्पादन संभव हो पा रहा है. लेकिन जैसे-जैसे माही बांध में पानी का फ्लो बढ़ेगी, वैसे-वैसे बिजली का उत्पादन और अधिक बढ़ेगा. जिससे प्रदेश को बहुत सस्ती दर पर करोड़ों यूनिट बिजली मिल सकेगी. आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि कैसे इस पन बिजली घर में पानी से कैसे बिजली का उत्पादन होता है. 

कहने को पन बिजली घर कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस, विंड, सोलर पावर या परमाणु बिजलीघरों की तरह बिजली बनाता है. लेकिन अन्य बिजलीघरों से परे ये बिजलीघर खास विशेषता से लैस हैं. इसकी विशेषता है तुरत स्टार्ट और बंद करने की क्षमता. माही से पानी का फ्लो घटने-बढने पर इसे चंद पलों में बंद और चालू किया जा सकता है, जो दूसरे बिजलीघरों में संभव नहीं होता. एक और खास बात लागत की है, जहां तमाम खर्चे जोड़ने के बाद एक रुपए प्रति यूनिट से भी कम कीमत में बिजली बन रही है.

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अपनी बनाई बिजली खुद नहीं कर सकते इस्तेमाल

पावर हाउस के बाहरी परिसर में अमूमन सन्नाटा ही दिखाई देता है और अंदर बिजली उत्पादन के समय बाहर कोई हलचल नहीं होती. लेकिन भूतल से करीब 150 मीटर गहराई पर बने पावर हाउस के अंदर की कार्यप्रणाली धड़कन बढ़ा देती है. भीतरी हिस्से में भूतल से नीचे पांच माले उतरने के बाद माही से आते 4000 से ज्यादा क्सूसेक पानी के प्रवाह और उससे घूमते टरबाइन के शोर के साथ जनरेटरों से बिजली निर्माण की जटिल प्रक्रिया बेहद शानदार है.

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भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड द्वारा 1986 में स्थापित की गई मशीनरी का इस्तेमाल और अधिकतम उत्पादन हासिल करने की कोशिशें देखने वाले को कायल कर देती हैं. स्वीकृत 125 के स्टाफ के मुकाबले धीरे-धीरे संख्या में आधी होने के बावजूद निगम के 65-70 अधिकारी-कर्मचारी 25-25 मेगावाट की दो इकाइयों को 24 घंटे चलाते हैं. यह किसी चुनौतीपूर्ण मिशन से कम दिखाई नहीं पड़ता.

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इस हाइडल पावर स्टेशन में यह है खूबी

कंस्ट्रोल रूम में दोनों इकाइयों में माही के पानी का फ्लो, वोल्टेज बिल्ड अप करने, नीचे के तल पर एलटी पैनल पर चेंज ओवर कराने, रनिंग फ्रिक्वेंसी के अनुसार इनकमिंग फ्रिक्वेंसी और वॉल्टेज मेचिंग, सिंक्रोनाइजिंग, जनरेटर लोड पर लेने समेत तमाम गतिविधियां जांच-परख कर इंजीनियर संचालित करते हैं. पावर हाउस के सहायक अभियंता शरद दीक्षित के अनुसार इसकी नियंत्रण प्रणाली भी जटिल है. लिहाजा किसी भी तथ्य की अनदेखी नहीं की जाती. जयपुर के निर्देशों की अनुपालना करते हुए जरूरत अनुसार मेगावाट बढ़ाने-घटाने की प्रक्रिया करते हैं. 

विशाल मैग्नेटिक फील्ड जहां बनती है बिजली
पावर हाउस में दो इकाइयां समानान्तर भू-तल से कुल सात माले नीचे माही के जल आवक स्थल तक है. कनिष्ठ अभियंता लालचंद कुमावत ने बताया कि सबसे नीचे आवक के रास्ते पर दो बड़े-बड़े टरबाइन हैं. जो पानी की मार से तेजी से घूमते हैं. इससे टरवाइन के मध्य के रोटर घूमते हैं और वे इससे ऊपर के तल पर बनाए जनरेटर को चलाते हैं. यहां मैग्रेटिक फील्ड बनता है और फैराडे के इलेक्ट्रोमेग्रेटिक फील्ड के सिद्धांत पर बिजली बनती है. जिसे ग्रिड को भेजा जाता है. यह तकनीकी प्रक्रिया काफी जटिल है. जिसके हर बिंदु पर अधिकारी खुद ध्यान रखकर पावर जनरेशन करते हैं.

अपनी बनाई बिजली खुद नहीं कर सकते इस्तेमाल
खास बात यह भी है कि यहां बनाई बिजली का खुद इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. इसे ग्रिड पर भेजा जाता है. दूसरी ओर, पावर हाउस में मशीनरी चलाने के लिए लोधा जीएसएस से अलग से लाइन है, जिससे सप्लाई मिलती है. बता दें कि बांसवाड़ा में हर साल करोड़ों यूनिट बिजली बनती है. इसमें पावर हाउस नंबर एक और दो के अलावा घाटोल और गनोड़ा के छोटे जनरेशन स्टेशन का भी योगदान रहता है.

लीलवानी में इससे बड़ा पावर हाउस, एलएमसी पर निर्भरता
माही से पावर हाउस नंबर एक और उससे कागदी के बढ़ते जलस्तर पर बांयी मुख्य नहर से जल प्रवाह लीलवानी भेजा जाता है. वहां कच्चे बांध में पानी संग्रहित करने के बाद उससे 45-45 मेगावाट की दो बड़ी इकाइयों का संचालन संभव होता है. लीलवानी का पावर हाउस नंबर 2 पूरी तरह एलएमसी पर ही निर्भर है.

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इस हाइडल पावर स्टेशन में यह है खूबी 
हाइडल पावर स्टेशन में क्वीक स्टार्ट एंड क्वीक स्टॉप होने की नियंत्रण प्रणाली भी दूसरे बिजलीघरों से इसे खास साबित करती है. कोल पावर स्टेशन हो या कोई और, तुरंत इनपुट बंद कर संचालन रोकना मुमकिन नहीं होता, जबकि इस बिजलीघर में यह आसान और सुरक्षित है. जलप्रवाह रोकते ही इसकी तमाम प्रक्रिया कुछ देर में बंद हो जाती है, जबकि दूसरे पावर स्टेशनों में काफी वक्त लगता है.

रिकॉर्ड उत्पादन
बांसवाड़ा में पावर हाउस नंबर एक और दो के बिजली उत्पादन का बीते पांच साल का रिकॉर्ड देखें तो हर साल औसतन 15 से 17 करोड़ यूनिट बिजली का उत्पादन होता है लेकिन साल 2016-17 में अच्छी बारिश के दौर से करीब 21 करोड़ यूनिट बिजली बनाई जा सकी थी.

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