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This Article is From Jan 14, 2024

3 दिन के नवजात बच्चे का पूरा खून बदलकर बचाई जान, बांगड़ जिला अस्पताल के डॉक्टरों का कमाल

तीन दिन की नवजात बच्ची के शरीर का पूरा खून बदलकर डॉक्टरों ने उसकी जान बचाई. यह चमत्कार एक सरकारी हॉस्पिटल में हुआ. मामला राजस्थान के डीडवाना जिले के बांगड़ जिला अस्पताल का है. जहां के डॉक्टरों ने एक्सचेंज ट्रांसफ्यूजन करके नवजात शिशु की जान बचाई.

3 दिन के नवजात बच्चे का पूरा खून बदलकर बचाई जान,  बांगड़ जिला अस्पताल के डॉक्टरों का कमाल
तीन दिन की नवजात बच्ची के शरीर का पूरा खून बदलकर डॉक्टरों ने बचाई जान.

Didwana News: डॉक्टर को धरती का दूसरा भगवान यूं ही नहीं कहा जाता. कई मौकों पर डॉक्टरों ने असाध्य बीमारियों का इलाज कर लोगों की जान बचाई है. अब एक ऐसा ही मामला राजस्थान के डीडवाना जिले से सामने आया है. जहां बांगड़ जिला अस्पताल के डॉक्टरों ने 3 दिन की बच्ची का पूरा खून बदलकर उसकी जान बचाई. इस प्रक्रिया को मेडिकल साइन्स की भाषा में एक्सचेंज ट्रांसफ्यूजन कहा जाता है, जिसमें बच्चे के शरीर का सम्पूर्ण रक्त बदलकर दूसरा रक्त चढ़ाया जाता है. बच्ची को बचाने के लिए डॉक्टरों ने कल आधी रात को इस प्रकिया को अंजाम दिया. डॉक्टरों की यह मेहनत आखिरकार रंग लाई और बच्ची की जान बच गई.

पीलिया पीड़ित नवजात बच्ची की बचाई जान

मिली जानकारी के अनुसार डीडवाना के राजकीय बांगड़ जिला चिकित्सालय के नवजात शिशु गहन चिकित्सा ईकाई (एसएनसीयू) वार्ड में शनिवार देर रात को दाउदसर निवासी नवजात शिशु बेबी ऑफ़ अनिशा को भर्ती करवाया गया. इस बच्ची को अत्यधिक मात्रा में पीलिया हो गया था और सीरम बिलीरूबीन का स्तर तीस मिलीग्राम से अधिक हो रखा था. ऐसे में उसकी जान बचाने का एकमात्र तरीक़ा यही था कि इस बच्ची का सम्पूर्ण रक्त बदलकर दूसरा रक्त चढ़ा दिया जाए. 

मेडिकल की भाषा में एक्सचेंज ट्रांसफ्यूजन कहते है इसे

ड्यूटी पर मौजूद शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. शाहनवाज़ ख़ान ने एसएनसीयू प्रभारी डॉ.सी.पी. नागौरा और ब्लड बैंक के तकनीकी अधिकारी अमरीश माथुर से विचार विमर्श कर आवश्यक जाँचे करवाकर बच्ची का पूरा रक्त बदलने का निर्णय लिया. इस प्रक्रिया को मेडिकल साइन्स की भाषा में एक्सचेंज ट्रांसफ्यूजन कहा जाता है. इसके बाद शनिवार अर्धरात्रि में ही डॉ.सी.पी. नागौरा, डॉ. शाहनवाज़ ख़ान, डॉ. विशाल बुरडक की टीम ने सामूहिक प्रयास करते हुए एक्सचेंज ट्रांसफ्यूजन करके नवजात शिशु की जान बचा ली.

बांगड़ चिकित्सालय में पहली बार हुई यह प्रक्रिया

एक्सचेंज ट्रांसफ्यूजन करने के बाद अब बच्ची का बिलीरूबीन लेवल काफ़ी कम आ गया है और अब वो ख़तरे से बाहर है. हालांकि अभी भी उसे एसएनसीयू में ही भर्ती रखा गया है. संभवतया चार-पांच दिन उपचाराधीन रखकर उसे डिस्चार्ज कर दिया जाएगा. गौरतलब है कि बांगड़ चिकित्सालय में पहली बार ये प्रक्रिया की गई है.

निजी क्षेत्र में ये काफी महंगी प्रक्रिया है और परिजन अक्सर इसका खर्चा वहन करने में सक्षम नहीं होते है. कई बार तत्काल इसके लिए ब्लड यूनिट की उपलब्धता नहीं होती. तमाम चीज़ें अनुकूल होने पर ही ये प्रक्रिया किया जाना सम्भव हो पाता है. ऐसे में सरकारी अस्पताल में ये प्रक्रिया हो जाने पर परिजनों ने राहत की सांस ली.

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(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)

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