Rishi Panchami 2024: ऋषि पंचमी (Rishi panchami) का त्यौहार 8 सितंबर 2024 को मनाया जा रहा है. इस दिन महिलाएं सप्तऋषियों की पूजा करती हैं. मान्यता है कि इस पूजा से मासिक धर्म के दौरान जाने-अनजाने में किए गए पापों से मुक्ति मिलती है और मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है. इस त्यौहार को गुरु पंचमी और भाई पंचमी के नाम से भी जाना जाता है.
क्यों मनाई जाती है ऋषि पंचमी?
मान्यता है कि इस दिन व्रत और पूजा करने से सप्तऋषियों का आशीर्वाद मिलता है. साथ ही यह भी माना जाता है कि इस दिन गंगा में स्नान करने से व्यक्ति को सभी तरह के पापों से मुक्ति मिलती है.ऋषि पंचमी का व्रत महिलाओं के लिए काफी महत्वपूर्ण माना जाता है. शास्त्रों के मुताबिक, मासिक धर्म के दौरान महिलाएं तीन दिन अलग रूपों में बताया गया है. पहले दिन वह चांडालिनी, दूसरे दिन ब्रह्मघातिनी और तीसरे दिन धोबिन के समान अपवित्र मानी जाती हैं. इसके बाद चौथे दिन स्नान करने के बाद वे पवित्र हो जाती हैं. इस बीच, जाने-अनजाने में उनके जरिए किए गए पापों से मुक्ति पाने के लिए इस व्रत को रखकर विधिवत सप्त ऋषियों की ऋषि पंचमी पंचमी पर की पूजा की जाती है.
ऋषि पंचमी की कथा
ऋषि पंचमी की पौराणिक कथा के अनुसार विदर्भ देश में उत्तंक नामक एक सदाचारी ब्राह्मण रहता था. उसकी पत्नी सुशीला बहुत पतिव्रता स्त्री थी. उस ब्राह्मण के एक बेटा और बेटी थी. बेटी जब बड़ी हुई तो उसने उसका विवाह कर दिया. लेकिन कुछ समय उसकी पुत्री विधवा हो गई. दुखी ब्राह्मण दम्पति अपनी पुत्री के साथ गंगा तट पर एक कुटिया बनाकर रहने लगे।
एक दिन जब ब्राह्मण कन्या सो रही थी तो अचानक उसके शरीर में कीड़े भर गए. जब माता को इसका पता चला तो उसने अपने पति से इसका कारण पूछा. ब्राह्मण उत्तंक ने उस समय ध्यान के द्वारा इस घटना का पता लगाया और बताया कि पिछले जन्म में हमारी पुत्री ब्राह्मणी थी. उसने रजस्वला होने पर भी बर्तन छूए थे. जो इस समय वर्जित है. उसे इस पाप से मुक्त करने के लिए उसने उस जन्म में उस समय कोई उपाय नहीं किया. इसी कारण उसके शरीर में कीड़े पड़ गए हैं. उन्होंने बताया कि यदि अब भी कन्या सच्चे मन से ऋषि पंचमी का व्रत रखे तो उसके सभी दुख दूर हो जाएंगे. पिता की आज्ञा से पुत्री ने ऋषि पंचमी का व्रत रखा. व्रत के प्रभाव से उसके जीवन के सभी कष्ट दूर हो गए और अगले जन्म में उसे अखंड सौभाग्य की प्राप्ति हुई.
ऐसे करें पूजा
इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और साफ कपड़े पहनें. इसके बाद पूजा कक्ष को गाय के गोबर से लीपकर यहां सप्तऋषि और देवी अरुंधति की मूर्ति या चित्र बनाएं.इसके बाद इस स्थान पर कलश स्थापित करें. स्थापना के बाद कलश की हल्दी, कुमकुम, चंदन, फूल और चावल से पूजा करें. अंत में ऋषि पंचमी की कथा सुनने के बाद सात पुरोहितों को सप्तऋषि मानकर भोजन कराएं. भोजन के बाद उन्हें दक्षिणा दें और पूजा संपन्न होने के बाद गाय को भी भोजन कराएं.
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