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Diwali Special Story:- राजस्थान के बांसवाड़ा में दिवाली पर निभाई जाती है ये अनोखी परंपरा, नव विवाहित के लिए होती है बेहद खास

वागड़ क्षेत्र (डूंगरपुर और बांसवाड़ा जिला) में दीपावली के पर्व पर दिवाली आणा (गौना) और मेरियू पुराने (विशेष प्रकार के मिट्टी से बने दीपक में तेल भरना) की विशिष्ट परंपरा है. जो वागड़ की दिवाली को देश के अन्य हिस्सों से अलग पहचान देती है.

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Diwali Special Story:- राजस्थान के बांसवाड़ा में दिवाली पर निभाई जाती है ये अनोखी परंपरा, नव विवाहित के लिए होती है बेहद खास

Diwali 2023: बदलते समय के साथ शहरों देहात में पर्वों को मनाने के पारंपरिक तरीकों में भी बदलाव आए हैं. लेकिन वागड़ अंचल में दीपावली का त्यौहार मनाने की विशिष्ट और अनूठी परंपराएं और रवायतें आज भी कायम हैं. जो ज्योति के इस पर्व को यहां और भी खास बना देती हैं.

जानें क्या होता है मेरियू ?

बांसवाड़ा के पंडित निकुंज मोहन पंड्या ने बताया कि मेरियू दीपक का ही एक अलग रूप है. मेरीयू बनाने के लिए गन्ने के छोटे टुकड़े का प्रयोग करते हैं. फिर सूखा नारियल लेकर उसके पैंदे में छेद कर गन्ने को ऊपरी हिस्से में लगाया जाता है. इन दोनों को गोबर से लीप कर सुखाते हैं और इसके बाद मेरीयू में रुई की बत्ती लगा कर तेल भर कर जलाया जाता है. इसे बनाने में नारियल के अलावा मिट्टी के दीपक का उपयोग भी होता है.

ऐसे मनाई जाती है मेरियू परंपरा

पंडित निकुंज ने बताया कि दीपावली के अगले दिन यह परंपरा निभाई जाती है. इसमें नव विवाहित दूल्हा अपने घर की चौखट पर खड़ा होता है. जिसके हाथ में मेरियू होता है. इनके पास ही दुल्हन खड़ी होती है. पड़ोसी, रिश्तेदार, घर के सदस्य तेल लेकर आते हैं और फिर दुल्हन को देते हैं. दुल्हन मेरियू में तेल भरवाती है.

दुल्हन से तेल भरवाने का मतलब है कि दोनों जीवन को सफल बनाने में एक दूसरे के पूरक बने. 

बाद में सभी महिलाएं भगवान राम के आगमन के गीत गाती हैं. और साथ ही दूल्हा-दुल्हन को आशीर्वाद देते हैं. इसके पीछे वजह है कि दूल्हा-दुल्हन का जीवन प्रकाशित रहे. दुल्हन से तेल भरवाने का मतलब है कि दोनों जीवन को सफल बनाने में एक दूसरे के पूरक बने. 

दिवाली आणा की परंपरा

वहीं कुछ परिवारों और समाजों में आज भी यह परंपरा कायम है कि दीपावली के कुछ दिन पूर्व नव विवाहिता अपने पीहर के यहां आ जाती है. और दिवाली के दिन उसको वापस लेने दूल्हा और उसके परिजन आते हैं. इस परंपरा को राजस्थान में  "दिवाली आणा" बोला जाता है. इसको भी एक उत्सव के रूप में मनाया जाता है.

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