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Makar Sankranti 2025: किसी अजूबे से कम नहीं है बांसवाड़ा की 135 साल पुरानी चोपड़ा परंपरा, सुनने के लिए जुटते हैं लाखों लोग

Banswara News: राजस्थान के जिले बांसवाड़ा में पिछले 135 सालों से चोपड़ा वाचन की परंपरा चल रही है, जिसमें आने वाले साल की भविष्यवाणी की जाती है.

Makar Sankranti 2025:  किसी अजूबे से कम नहीं है बांसवाड़ा की 135 साल पुरानी चोपड़ा परंपरा, सुनने के लिए जुटते हैं लाखों लोग
चोपड़ा वाचन सुनने के लिए इकट्ठा हुए लोग

Makar Sankranti 2025: आज के दौर में जहां आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ( AI) के जरिए हर सवाल का जवाब पल भर में मिल जाता है, वहीं आज के तकनीकी युग में भी लोग ग्रह-नक्षत्रों की गणना के लिए सदियों पुरानी परंपराओं का पालन कर रहे हैं.  इसी क्रम में बांसवाड़ा ( Banswara) में पिछले 135 सालों से चोपड़ा वाचन की परंपरा चल रही है, जिसमें आने वाले साल की भविष्यवाणी की जाती है. लोगों में आज भी इस पर काफी आस्था है. इसे देखने और सुनने के लिए लाखों लोग जुटते हैं. जो किसी अजूबे से कम नहीं है.

135 वर्षों से चली आ रही है चोपड़ा पाठ की परंपरा

बांसवाड़ा के भूंगड़ा गांव में एक ऐसी ही परंपरा है जो पिछले 135 सालों से मकर संक्रांति के दिन आदिवासी क्षेत्र के लोगों का दिल जीतती आ रही है. बांसवाड़ा जिले का पंड्या परिवार पिछले 135 सालों से मकर संक्रांति के दिन ज्योतिष गणना के आधार पर चोपड़ा बनाता आ रहा है. इसमें ज्योतिष गणना के आधार पर तैयार चोपड़ा को पढ़कर आने वाले साल के लिए भविष्यवाणी की जाती है. हजारों लोग इन भविष्यवाणियों पर अटूट विश्वास रखते हैं और इनके आधार पर अपने जीवन के फैसले लेते हैं. यही कारण है कि इसे सुनने के लिए हर साल यहां लाखों लोग जुटते हैं.

अब तक चल रही चोपड़ा वाचक की परम्परा 

* पंडित दौलतराम पंड्या (1890-1929)

* पंडित गेफरलाल पंड्या (1930-1967)

* पंडित प्रकाशचंद्र पंड्या (1968-2011)

* पंडित दक्षेश पंड्या (2012 से अब तक)

क्या है चोपड़ा परंपरा

चोपड़ा वाचन दरअसल एक तरह का ज्योतिषीय कैलेंडर है. इसे देवउठनी एकादशी से लेकर मकर संक्रांति तक विभिन्न पंचांगों का अध्ययन करके तैयार किया जाता है. इस दौरान ज्योतिषी ग्रह-नक्षत्रों की चाल का गहन अध्ययन करता है और फिर अपनी विशेषज्ञता से एक चोपड़ा तैयार करता है जिसमें आने वाले साल के लिए मौसम, कृषि, राजनीति, समाज आदि से जुड़ी भविष्यवाणियां होती हैं.

 पं. दक्षेश पंड्या

पं. दक्षेश पंड्या
Photo Credit: NDTV

कब हुई इस परंपरा की शुरुआत

इस परंपरा की शुरुआत तत्कालीन भूगंडा निवासी पंडित दौलतराम पंड्या ने 1890 में की थी. उनके बाद उनके पुत्र पंडित गेफरलाल पंड्या और उनके पौत्र पंडित प्रकाशचंद्र पंड्या ने इसे संभाला और अब उनके प्रपौत्र पंडित दक्षेश पंड्या इस परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं. पंडित दक्षेश पंड्या बताते हैं कि पिछले कई दशकों से चोपड़ा के जरिए की गई भविष्यवाणियां लगभग सटीक साबित हुई हैं. वे आगे कहते हैं कि आज के दौर में जब विज्ञान ने कई रहस्यों से पर्दा उठा दिया है, तब भी लोग ज्योतिष पर विश्वास करते हैं.

अब तो वैज्ञानिक भी ग्रहों व तारों की चाल व उनके प्रभावों को स्वीकार करने लगे हैं। बांसवाड़ा में चोपड़ा वाचन के दौरान राजस्थान के साथ ही मध्यप्रदेश व गुजरात से भी हजारों लोग आते हैं. यह इस बात का प्रमाण है कि लोग आज भी ज्योतिष व आस्था पर विश्वास करते हैं.

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