Rajasthan News: राजस्थान, जो अपनी वीरता और भव्य किलों के लिए जाना जाता है, उसकी शांत अरावली की तलहटी में एक ऐसा पवित्र स्थल छिपा है जहां इतिहास ने नहीं, बल्कि भक्ति ने काल (मृत्यु) को पराजित किया था. सिरोही जिले के पिंडवाड़ा के पास बसा एक छोटा-सा गांव- अजारी, इन दिनों आस्था और पौराणिक कथाओं का केंद्र बना हुआ है. अजारी में स्थित प्राचीन मारकंडेश्वर ऋषि मंदिर हजारों साल पुरानी उस घटना का गवाह है, जिसका जिक्र हिंदू पुराणों में मिलता है— यमराज का लौटना और मार्कंडेय का अमर हो जाना. यह सिर्फ एक मंदिर नहीं, बल्कि 'कालजयी' भक्ति का एक जीवित प्रमाण है.
शिव-भक्ति का वो निशान जो 7000 साल बाद भी शिवलिंग पर मौजूद है
इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यहां का प्राचीन शिवलिंग है. मान्यताओं के अनुसार, यह वही शिवलिंग है जिससे लिपटकर युवा ऋषि मार्कंडेय ने मृत्यु के देवता यमराज को चुनौती दी थी. कथा है कि जब यमराज उन्हें लेने आए, तो मार्कंडेय ने भय और अटूट विश्वास के साथ इस शिवलिंग को कसकर पकड़ लिया और शिव का स्मरण किया.

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स्थानीय पुजारी सचिन रावल बताते हैं, 'यह शिवलिंग आज भी भक्तों को वह पौराणिक पल याद दिलाता है. कहा जाता है कि जब मार्कंडेय ने शिव से लिपटकर अपना मस्तक बार-बार शिवलिंग पर झुकाया, तो भक्ति के दबाव से वह प्राचीन शिवलिंग अपने स्थान पर भूमि में धंस गया. आप आज भी स्पष्ट रूप से देख सकते हैं कि यह शिवलिंग जमीन में धंसा हुआ है और इस पर उस जोरदार दबाव के निशान साफ दिखाई देते हैं.'

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यह भौतिक निशान हजारों साल पुरानी उस घटना की प्रामाणिकता को और मजबूत करता है, जहां एक भक्त की पुकार पर स्वयं महाकाल प्रकट हुए थे और यमराज को अपने परम भक्त के प्राण लेने से रोका था, उन्हें चिरंजीवी (अमर) होने का वरदान दिया था. इसी दिव्य घटना के कारण यह स्थान "मारकंडेश्वर महादेव" के नाम से विख्यात हुआ.
अल्पायु की पौराणिक कथा
मारकंडेश्वर की कथा ऋषि मृकंडु और उनकी पत्नी मारुद्वती के कठोर तप से शुरू होती है. निःसंतान होने पर उन्होंने शिव की आराधना की. भगवान शिव ने प्रसन्न होकर उन्हें दो विकल्प दिए— या तो दीर्घायु लेकिन अल्प-बुद्धि वाला पुत्र, या फिर अल्पायु (मात्र 16 वर्ष) लेकिन अत्यंत तेजस्वी और ज्ञानी पुत्र. दंपति ने दूसरे विकल्प को चुना, और इस वरदान से ऋषि मार्कंडेय का जन्म हुआ.

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जैसे-जैसे उनकी निर्धारित आयु समाप्त होने लगी, पिता ने उन्हें इस अजारी स्थल पर आकर शिव की उपासना करने को कहा. मार्कंडेय ने यहां अपनी कठोर उपासना शुरू की. उनकी भक्ति इतनी गहन थी कि जब यमराज उन्हें लेने प्रकट हुए, तो वे मंत्र जाप में लीन थे. मंदिर परिसर की शांति और दिव्य वातावरण आज भी उस गहन तपस्या और शिव-शक्ति के मिलन की स्मृतियों को जीवंत कर देता है.
हर सोमवार उमड़ती है भीड़
अजारी का यह पौराणिक मंदिर आज राजस्थान और गुजरात के श्रद्धालुओं के लिए आस्था का एक प्रमुख केंद्र बन गया है. यहां के स्थानीय निवासी कपिल बताते हैं, 'यह केवल एक मंदिर नहीं, बल्कि एक सिद्ध पीठ है. हमारे गांव में मान्यता है कि यहां सच्चे मन से की गई प्रार्थना जरूर स्वीकार होती है. जो भक्त यहां आशा लेकर आता है, शिव और मार्कंडेय की कृपा से उसकी मनोकामना पूरी होती है.'

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मंदिर में यूं तो रोजाना बड़ी संख्या में भक्त दर्शन के लिए पहुंचते हैं, लेकिन सोमवार, सावन मास और महाशिवरात्रि पर यहां भारी भीड़ उमड़ती है. दूर-दराज से आए श्रद्धालु मंदिर के आध्यात्मिक वातावरण और पौराणिक कथाओं से जुड़ाव महसूस करते हैं.
सिरोही को नई पहचान दिलाने की मांग
इतने महत्वपूर्ण पौराणिक और धार्मिक स्थल के बावजूद, स्थानीय निवासियों और श्रद्धालुओं को लगता है कि यह स्थल अपनी वास्तविक पहचान नहीं बना पाया है. ग्रामीणों की अपेक्षा है कि इस प्राचीन तीर्थ को धार्मिक पर्यटन के स्वरूप में विकसित किया जाए. उनका कहना है कि संरक्षण और सौंदर्यीकरण की दिशा में प्रशासनिक स्तर पर अगर विशेष प्रयास किए जाएं, तो यह स्थल सिरोही जिले को धार्मिक नक्शे पर एक नई और मजबूत पहचान दिला सकता है. यह केवल अजारी गांव के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे राजस्थान के लिए गौरव का विषय होगा.
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