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This Article is From Nov 14, 2023

Rajasthan Famous Sweet: झालावाड़ की इस मिठाई की बढ़ रही विदेशों में मांग, GI टैग मिलने की है उम्मीद

पहले फीणी की मांग सर्दी के मौसम में ही रहती थी. लेकिन अब पूरे वर्ष इसकी मांग रहती है. बाहर से आने वाले रिश्तेदारों के साथ ही यहां से बाहर जाने वाले अधिकांश लोग यहां की मशहूर फीणी को अपने साथ लेकर जाते हैं. आलम यह है कि दुबई, अमेरिका इंग्लैंड जैसे कई देशों में लोग अपने परिजनों के साथ ही संबंधी और मित्रों के लिए सौगात के रूप में फीणी लेकर जाते हैं.

Rajasthan Famous Sweet: झालावाड़ की इस मिठाई की बढ़ रही विदेशों में मांग, GI टैग मिलने की है उम्मीद
Jhalawar:

अधिकांश राजस्थानियों ने कभी न कभी कोटा की कचौड़ी, बीकानेर का भुजिया, ब्यावर की तिल पट्टी की तरह झालरापाटन में बनाई जाने वाली फेनी का स्वाद जरूर लिया होगा. वसुंधरा राजे के विधानसभा क्षेत्र में बनने वाली फेनी/फीणी अब पूरे देश के साथ ही विदेशों तक में अपनी पहचान बना चुका है. साथ ही इसकी खुशबू भी अब सात समंदर पार भी महकने लगी है. 

जिले की झालरापाटन की मशहूर फीणी अब देश के साथ विदेश में अपनी खास पहचान बन चुकी है. यह मिठाई विदेशी लोगों के जुबान पर भी चढ़ रही है. झालरापाटन शहर में पिछले 200 वर्षों से फीणी बनाने का काम गली-मोहल्लों में होता आया है. इसकी वजह से यहां की एक खास पहचान बन चुकी है. माना जाता है कि फीणी बेहद शुद्ध मिठाई होती है. इसमें किसी भी प्रकार की कोई मिलावट नहीं होती है.

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फणी को तैयार करता युवक

फीणी दीवाने लोग दीवापली के सीजन में इसे खरीदने के लिए मिठाई की दुकानों पर उमड़ पड़ते हैं. सस्ती-सुंदर-टिकाऊ मैदा की फीणी की महक न केवल बाजारों में बल्कि घर-घर पहुंच चुकी है.

ऐसे बनती है फीणी

फीणी बनाने की पूरी प्रक्रिया में काफी मेहनत लगती है. पहले मेंदा को रात भर के लिए भिगोया जाता है. उसके बाद मेंदे के कई टुकड़े कर उनको बल देने का काम शुरू होता है. जो काफी मेहनत का कार्य होता है. गुंधे हुए मेंदे से फिर सैंकड़ों टुकड़े किए जाते हैं. फिर उनकी लोइयां बना कर उनको घी में तला जाता है और जैसे-जैसे उसकी लोइयों को तला जाता है. वह बिखरना शुरू कर देती हैं, और एक-एक धागा अलग हो जाता है. कुछ इसी तरह फीणी अपना आकर ले लेती है. उसके बाद फीणी को चीनी की चाशनी में भिगोकर मिठास दी जाती है.

दो प्रकार की होती है फीणी

फीणी दो प्रकार की होती हैं. एक वह जिनको दूध वाली फीणी कहा जाता है. यह हल्के बादामी रंग की होती है. दूसरी सादी फीणी जो सफेद रंग की होती है. दूधवाली फीणी महंगी होती है, जबकि सादा फीणी सस्ती होती है. लेकिन दोनों में ही शुद्धता की पूरी गारंटी होती है. आप इनको लंबे समय (अधिकतम 3 माह) तक अपने घर में रख सकते हैं. फिर भी यह खराब नहीं होती है. क्योंकि इनमें जरा भी मिलावट नहीं होती है. त्योहारी सीजन में विशेष तौर पर फीणी की मांग बढ़ जाती है. ऐसे में आजकल झालरापाटन के बाजारों में चारों तरफ फीणी के थाल सजे हुए नजर आते हैं.

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नकली मावा मिठाइयों का ज्यादा चलन 

आजकल नकली मावा मिठाइयों के कारण भी लोगों का रुझान देसी मिठाई की तरफ बढ़ने लगा है. और इसी को देखते हुए लोग अब फीणी को खरीदने में लगे हैं. देसी मैदा से बनने वाली इस मिठाई की महक ने इसको घर-घर पहुंचा दिया है. आजकल आलम तो यह है कि राजस्थान के घेवर और फीणी के बिना मेहमानों की मेहमान नवाजी को भी‌ अब इसके बिना अधूरा माना जाता है.

GI मिलने की उम्मीद 

राजस्थान की बीकानेर भूजिया (खाद्य वस्तु) को इससे पहले GI  मिल चुका है. वहीं जयपुर के घेवर और झालावाड़ की फ़ीणी दोनों ही मिठाई इस टैग की लम्बी रेस में शामिल हैं.

राजस्थान की निम्न 12 वस्तुओं (लोगो सहित शामिल करने पर 16 ) को जीआई टैग दिया जा चुका है-

  • बगरू हैंड ब्लॉक प्रिंटिंग (हस्तशिल्प)
  • जयपुर की ब्लू पॉटरी (हस्तशिल्प),जयपुर 
  • जयपुर की ब्लू पॉटरी (लोगो),जयपुर 
  • राजस्थान की कठपुतली (हस्तशिल्प)
  • राजस्थान की कठपुतली (लोगो)
  • कोटा डोरिया (हस्तशिल्प)
  • कोटा डोरिया (लोगो) 
  • राजस्थान का मोलेला मिट्टी का काम (लोगो) (हस्तशिल्प)
  • फुलकारी (हस्तशिल्प)
  • पोकरण मिट्टी के बर्तन (हस्तशिल्प)
  • सांगानेरी हैंड ब्लॉक प्रिंटिंग (हस्तशिल्प),जयपुर 
  • थेवा आर्ट वर्क (सोने के आभूषण - हस्तशिल्प) ,प्रतापगढ़ 

खाद्य सामग्री

  • बीकानेरी भुजिया (खाद्य सामग्री), बीकानेर 

प्राकृतिक सामान

  • मकराना मार्बल (प्राकृतिक सामान), डीडवाना कुचामन 
  • सोजत मेहंदी, पाली 

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