Jhal Jhasi Art: आपने अक्सर लोगों को कागज, कपड़े और कैनवास पर पेंटिंग करते देखा होगा. लेकिन एक ऐसी अनूठी पेंटिंग है जिसने झीलों के शहर उदयपुर को चित्रकारी की दुनिया में मशहूर कर दिया है. इस कला को जलसांझी के नाम से जाना जाता है. यह कला करीब 500 साल पुरानी है जो खास तौर पर कृष्ण मंदिरों में बनाई जाती है. इसमें पानी पर पेंटिंग की जाती है. खास तौर पर इसे कृष्ण मंदिरों में बनाया जाता है. इसे सिर्फ अमावस्या (अमावस्या की रात) के दौरान बनाया जाता है.
जल सांझी में भगवान कृष्ण की लीलाओं का होता है मंचन
जल सांझी की शुरुआत भगवान कृष्ण के जन्म स्थान मथुरा से हुई थी, लेकिन धीरे-धीरे यह लुप्त हो गई. इसे उदयपुर के एक परिवार ने पुनर्जीवित किया है जो इस कला को जीवित रखने की कोशिश कर रहा है. शहर के जगदीश चौक स्थित गोवर्धननाथजी मंदिर में वह इसे सालों से बनाते आ रहे हैं. 60 वर्षीय राजेश वैष्णव बताते हैं कि जल सांझी में कृष्ण लीलाओं का चित्रण किया जाता है. इसे श्राद्ध पक्ष की एकम से अमावस्या के बीच ही बनाया जाता है.जल सांझी एक दुर्लभ मंदिर कला है जिसमें हिंदू धर्म के प्रमुख देवता भगवान कृष्ण के जीवन और समय को पानी पर दर्शाया जाता है.
कब से शुरू हुई यह जल सांझी चित्रकारी
एक पुरानी कहानी के अनुसार, इन चित्रों की शुरुआत तब हुई जब 'राधा' ने तालाब के पानी में भगवान कृष्ण की छवि देखी और पानी में फूल बनाकर भगवान की एक छवि बनाई. तब से यह सांझी में विकसित हुआ जो भगवान कृष्ण की 'लीला' का सम्मान करने के लिए पानी पर एक चित्रात्मक चित्रण है.
पानी में कैसे बनाया जाता है इसे
उदयपुर के गोवर्धननाथजी मंदिर में जल सांझी चित्रकला को श्राद्ध पक्ष की ग्यारस से अमावस्या तक जल सांझी महोत्सव के रूप में मनाया जाता है. इसमें कृष्ण लीला, गोवर्धन पर्वत, कृष्ण रासलीला, कालियावर्धन को जल सांझी के रूप में दर्शाया गया है. इसके लिए विभिन्न रंगों का प्रयोग किया जाता है. इसमें एक बड़े बर्तन में पानी भरा जाता है और उसमें भगवान कृष्ण की लीलाओं को विभिन्न रंगों से चित्रित किया जाता है.
सिर्फ उदयपुर में ही जाता है इसे बनाया
उदयपुर के 60 वर्षीय राजेश पिछले कई सालों से यह जलसांझी बना रहे हैं. राजेश वैष्णव को यह हुनर विरासत में मिला है. ये उनकी 18वीं पीढ़ी हैं जो बचपन से ही इसे बनाकर इस कला में पारंगत हुए हैं. बढ़ती उम्र के साथ राजेश का परिवार भी इस काम में उनकी मदद करने लगा है. चित्रकार राजेश वैष्णव ने बताया कि जब यमुना नदी पर कृष्ण का इंतजार करते हुए राधा नदी में फूल या रंग फेंकती थीं तो उसमें से कृष्ण की आकृति उभर आती थी. तभी से यह जलसांझी बनाई जा रही है. पहले इस तरह की जलसांझी मथुरा और गोकुल में भी बनाई जाती थी. लेकिन समय के साथ यह कला लुप्त होती जा रही है और वर्तमान में इस तरह की जलसांझी अब सिर्फ उदयपुर में ही बनती है.
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