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Vijaygarh Fort: खजाने के लालच में लोगों ने खोद डाला राजस्थान का ये किला, यहीं हुआ था सबसे पहला जौहर

इस किले के अंदर बनी हुई रहस्यमयी भूलभुलैया व गुप्त तहखाने जहां आज भी रहस्य और पहेली बने हुए हैं. वहीं इस किले में बने कलात्मक महल, भीमलाट, विजयस्तंभ, बावडियां व चीन जैसी लंबी और चौड़ी दीवारें आज भी बरबस ही अपनी ओर सभी का ध्यान आकर्षित करती हैं.

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Vijaygarh Fort: खजाने के लालच में लोगों ने खोद डाला राजस्थान का ये किला, यहीं हुआ था सबसे पहला जौहर
विजयगढ़ दुर्ग.

Bharatpur News: बयाना कस्बे के पश्चिम दक्षिण दिशा में अरावली पर्वतमाला के ऊपर सीना ताने खड़ा देश का सबसे प्राचीन व सबसे बड़ा पहाड़ी किला सरकारी उपेक्षा व अनदेखी का दंश झेल रहा है. इस किले में अकूत खजाना होने की किदवंतियों के चलते लालची लोगों ने गड़ा हुआ धन पाने के लिए जगह जगह से इसे खोदकर खंडहर में तब्दील कर दिया है. रही सही कसर को क्रेशर माफिया पूरी कर दे रहे हैं, जो इस पहाड़ में किले के आसपास अवैध खनन व क्रेशर संचालन करने के साथ ही इस किले की चीन जैसी लंबी चौड़ी दीवारों को खोद खोद कर अपने क्रेशर प्लांटो में पीस पीस कर गिट्टीयों में तब्दील कर करोड़ों के वारे न्यारे कर रहे हैं. 

पहले विजय मंदिर गढ़ से थी पहचान

पुरातत्व विभाग की मानें तो इस किले की सुरक्षा व देखरेख के लिए सरकारी चौकीदार तैनात किए हुए हैं. अब यह आश्चर्य की बात है कि चौकीदारों की तैनाती के बावजूद भी इस किले के अंदर व किले की तलहटी में अवैध खनन और किले को खुर्द बुर्द करने की करतूतें कैसे हो रही हैं? इसे लेकर स्थानीय लोगों में तरह तरह की चर्चाऐं होती हैं और सवाल भी खडे़ किए जाते हैं, लेकिन कोई जवाब नहीं मिलता. अतीत के इतिहास को देखें, तो बयाना का यह किला देश के नामचीन व बडे़ ही सुरक्षित किलों में शुमार था, जिसे कभी विजय मंदिर गढ़ (Vijay Mandir Garh) भी कहते थे और इसे अब विजयगढ दुर्ग (Vijaygarh Fort) के नाम से जाना जाता है. राजा विजयपाल की ओर से 1040 ईस्वी में इसका पुर्ननिर्माण करवाया गया था, जो भगवान श्रीकृष्ण और मथुरा के यादववंश के बताए जाते हैं.

Vijay Mandir Garh

Vijay Mandir Garh

सबसे पहले इसी किले में हुआ था जौहर

इस किले की एक-एक इमारत व दीवारे आज भी अपने वैभवशाली अतीत की गाथा गाती दिखती है. वहीं यह ऐतिहासिक किला यादववंश, गुप्तवंश, फक्कवंश, पालवंश, गुर्जर प्रतिहार वंश व मुगलकाल समेत कई शासनों व शासकों के उत्थान व पतन का मूक गवाह भी रहा है. इतिहास के पन्नों से यह बात भी पता लगती है कि चित्तौडगढ़ के मशहूर जौहर से करीब 250 वर्ष पहले इस किले में सामूहिक जौहर हुआ था, जिसे पहला जौहर कहा जाता है. बताया जाता है कि महाराजा विजयपाल की 360 रानीयों व दासीयों ने उस समय एक ऐतिहासिक घटना व गफलत में पड़ जाने से अपने आप को अग्नि में स्वाहा कर लिया था. विजयपाल रासो नाम की ऐतिहाकसिक पुस्तक में उल्लेख बताया है कि महाराजा विजयपाल का 1045 ईस्वी में अबूबकर शाह कंधारी से घमासान युद्ध हुआ था. इस युद्ध में राजा विजयपाल की जीत से उत्साहित सेना गफलत में काले झंडो को लेकर किले की ओर दौड़ पड़ी थी. इन्हीं काले झंडो को देख रानीयों व दासीयों को युद्ध हारने और अपने राजा के वीरगति को प्राप्त होने की गफलत हो गई थी, जिसके चलते उन्होंने सामूहिक जौहर का मार्ग अपनाकर अपने आप को अग्नि को समर्पित कर दिया था. 

राणा सांगा का भी किले से गहरा नाता

आपकों यह भी बता दें कि राजा विजयपाल की मृत्यु 1093 ईस्वी में हुई थी. इसके बाद विजयपाल के पुत्र तिमनपाल ने अपनी शक्ति बढ़ाई और आज के पूरे भरतपुर संभाग सहित मथुरा, आगरा, ग्वालियर व गुड़गांव, धौलपुर तक के विशाल क्षेत्र को जीतकर अपने राज्य का विस्तार किया था. इतिहास के अनुसार, इस किले पर 1200 वी ईस्वी के मध्य इल्तुमिश का शासन भी रहा है. राणासांगा व बाबर के इतिहास प्रसिद्ध युद्ध की शुरुआत भी बयाना से ही हुई थी. इस किले में अनेकों स्मारक आज भी सीना ताने खड़ी है जो गुप्तवंश व फक्कवंश सहित विभिन्न साम्राज्यों के मूक गवाह हैं. पृथ्वीराज चौहान व राणा सांगा का भी इस किले से गहरा नाता रहा है.

किले में स्थित है प्राचीन शिवायलय

इतिहासकारों की माने तो इस किले का 1150 साल पूर्व गुर्जर प्रतिहार वंश के राजा की ओर से पुनर्निमाण व पुनरुद्धार कार्य करवाकर वहां नए सिरे से बसावट की गई थी. इसी से अनुमान लगाया जा सकता है कि यह किला कितना प्राचीन होगा. किदवंतियों के अनुसार, यह किला महाभारत कालीन बताया गया है और भगवान श्रीकृष्ण से इसका गहरा नाता रहा है. धार्मिक ग्रंथों में मिले उल्लेख के अनुसार, इस किले में स्थित प्राचीन शिवालय में भगवान शिव के अनन्य भक्त वाणासुर ने घोर तपस्या की थी, और उसने केवल दृष्टीवार से ही रावण की सवा लाख सैनिकों की सेना को मूर्छित कर परास्त कर दिया था. 

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किले के गुप्त तहखाने आज भी रहस्य

इस किले के अंदर बनी हुई रहस्यमयी भूलभुलैया व गुप्त तहखाने जहां आज भी रहस्य और पहेली बने हुए हैं. वहीं इस किले में बने कलात्मक महल, भीमलाट, विजयस्तंभ, बावडियां व चीन जैसी लंबी और चौड़ी दीवारें आज भी बरबस ही अपनी ओर सभी का ध्यान आकर्षित करती हैं और ऐसा लगता है कि मानों वह वहां पहुंचने वाले लोगों से कहती हैं कि हमारा पुनरुद्धार कब होगा. जबकि यह किला काफी समृद्ध और महत्वपूर्ण माना जाता है. राजस्थान के जयपुर सर्किल के 21 स्मारकों में से अकेले 7 विशेष संरक्षित स्मारक बयाना में ही है.

कई बार उठी है विकास की आवाज

बयाना के इस प्रसिद्ध ऐतिहासिक किले के उद्धार व उसे पर्यटन के मानचित्र में लाने और एतिहासिक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने को लेकर बयाना विकास मंच व बयाना जिला बनाओ अभियान सहित विभिन्न संगठनों की ओर से कई बार अभियान चलाकर आंदोलन किए गए, हस्ताक्षर अभियान भी चलाए गए और सरकारों व जनप्रतिनिधीयों से पत्राचार व संवाद भी किया गया. लेकिन किसी ने कोई ध्यान नहीं दिया. पुरातत्व विभाग की ओर से भी पिछले 10 वर्षों में मरम्मत के नाम पर यहां कई करोड़ रुपये की राशि खर्च की गई बताई है. जिसे अगर वहां भौतिक रूप से देखा जाए तो बड़े घोटाले की बू आती है. जिसका खुलासा गहन जांच से हो सकेगा.

रोजगार के हो सकते हैं नए अवसर

बयाना के इस किले सहित बयाना क्षेत्र में चारों ओर पुरा संपदा व प्राकृतिक रमणीक स्थल बिखरे पड़े हैं, जिन्हें अगर सरकार और पर्यटन व पुरातत्व विभाग योजनावद्ध तरीके से विकसित कर इन्हें दिल्ली, आगरा, मथुरा, भरतपुर, फतेहपुर सीकरी व जयपुर ट्रायंगल से जोड़कर पर्यटन के मानचित्र पर स्थापित करें तो यहां रोजगार के नए अवसर विकसित हो सकते हैं. कई बार आगरा व भरतपुर से बयाना होकर सवाई माधोपुर जाने वाले विदेशी पर्यटकों की नजर जब बयाना कस्बे में स्थित ऐतिहासिक स्मारकों व इस किले पर पड़ती है तो उनके मुंह से बरबस ही निकल पड़ता है.

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