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राज्यों में SC-ST के 'अमीर' लोग होंगे आरक्षण से बाहर! क्या है 'कोटे में कोटा' मामले पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला?

एससी- एसटी कोटा के भीतर एक अलग सब कटैगरी बनाने के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पिछड़े समुदायों में किसी भी उप-वर्गीकरण को आंकड़ों के आधार पर निर्धारित करना होगा ताकि यह दिखाया जा सके कि पर्याप्त प्रतिनिधित्व मिल रहा है या नहीं.

राज्यों में SC-ST के 'अमीर' लोग होंगे आरक्षण से बाहर! क्या है 'कोटे में कोटा' मामले पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला?

SC-ST Reservation Issue: उच्चतम न्यायालय की सात-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने गुरुवार को SC-ST के पिछड़े समुदायों के बीच अधिक हाशिए पर रहने वाले लोगों को नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण देने का रास्ता खोल दिया. यानी अब SC -ST एक्ट के अंदर ही उन लोगों को आरक्षण देने के रास्ता साफ़ हो सकता है जो पिछड़े हैं. 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोटा के भीतर कोटा तर्कसंगत अंतर पर आधारित होगा. इसे लेकर राज्य मनमर्जी से काम नहीं कर सकते. इसके साथ ही राज्यों की गतिविधियां न्यायिक समीक्षा के अधीन होगी. इसके साथ ही अदालत ने 2004 में ईवी चिन्नैया मामले में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों के फैसले को पलट दिया है. मौजूदा पीठ ने 2004 में दिये उस फैसले को दरकिनार कर दिया है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि एससी/एसटी जनजातियों में सब कैटेगरी नहीं बनाई जा सकती है.

सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने कोर्ट से कहा था कि वह अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति श्रेणियों में उप-वर्गीकरण के पक्ष में है. मुख्य न्यायाधीश ने कहा था कि यह सुनिश्चित करने के लिए कि लाभ अधिक पिछड़े समूहों तक पहुंचे, राज्य आरक्षित श्रेणी समुदायों के लिए अलग से वर्गीकरण कर सकते हैं. 

जजों ने 6:1 के सुनाया फैसला

इस विवादास्पद मुद्दे पर कुल 565 पृष्ठों के छह फैसले लिखे गये हैं. प्रधान न्यायाधीश ने अपनी ओर से और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की ओर से फैसले लिखे, जबकि न्यायमूर्ति बी आर गवई, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, न्यायमूर्ति पंकज मिथल न्यायमूर्ति सतीश चंद्र मिश्रा और न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी ने अपने-अपने फैसले लिखे. न्यायमूर्ति त्रिवेदी को छोड़कर अन्य पांच न्यायाधीश मुख्य न्यायाधीश के निष्कर्षों से सहमत थे.

न्यायमूर्ति बेला त्रिवेदी ने दिया अलग फैसला 

न्यायमूर्ति त्रिवेदी ने अपने 85 पन्नों के असहमति वाले फैसले में कहा कि केवल संसद ही किसी जाति को अनुसूचित जाति की सूची में शामिल कर सकती है या बाहर कर सकती है, तथा राज्यों को इसमें फेरबदल करने का अधिकार नहीं है.उन्होंने फैसला सुनाया कि अनुसूचित जातियां एक 'सजातीय वर्ग' हैं, जिन्हें आगे उप-वर्गीकृत नहीं किया जा सकता.

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