Nirjala Ekadashi Vrat 2024: निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi )का व्रत एक हिंदू परंपरा है, जिसे ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष में किया जाता है. इस बार यह व्रत 18 जून को किया जाएगा. इस व्रत में लोग ना सिर्फ भोजन का त्याग करते हैं बल्कि पानी-भी त्याग देते हैं. हालांकि, इस व्रत को काफी कठिन माना जाता है, लेकिन इसके पीछे आध्यात्मिक (Spiritual) महत्व के साथ-साथ वैज्ञानिक (Scientific) कारण भी हैं.
कैसे हुई रिसर्च (How was research did)
जानकारी के मुताबिक जर्मनी के दो प्रतिष्ठित संस्थानों डीजेएनई (DZNE) और हेल्महोल्ट्ज सेंटर के संयुक्त शोध में उपवास से जुड़े कई तथ्य सामने आए. इन दोनों संस्थानों के संयुक्त अध्ययन में वैज्ञानिकों ने चूहों के दो समूह बनाए. एक को उपवास कराया गया और दूसरे को नहीं. इसके बाद उनमें आए बदलावों के निष्कर्ष के आधार पर बताया कि उपवास करने से शरीर को क्या लाभ मिलते हैं. शोध में जिन चूहों को ऐसा कराया गया वे पांच फीसदी से ज्यादा जिए. वहीं जिन चूहों को उपवास रखवाया उनकी जांच में सामने आया कि उन भूखे रहने वाले चूहों के शरीर में कैंसर कोशिकाएं धीमी गति से बढ़ीं. उपवास वाले चूहे 908 दिन जीवित रहे. वहीं लगातार खाने वाले 806 दिन.
आइए, देखें कैसे निर्जला एकादशी व्रत विज्ञान की दृष्टि से हमारे शरीर को लाभ पहुंचाता है:
पाचन तंत्र को आराम (Resting the Digestive System)
हम अक्सर भरपेट खाते रहते हैं, जिससे हमारा पाचन तंत्र लगातार काम करता रहता है. निर्जला एकादशी का व्रत पाचन तंत्र को आराम देने का एक प्राकृतिक तरीका है. जब हम कुछ समय के लिए भोजन नहीं करते, तो हमारा शरीर पाचन तंत्र को साफ करने और खुद को मजबूत बनाने में सक्षम होता है.
शरीर का डिटॉक्सिफिकेशन (Detoxification of the Body)
हमारे शरीर में रोजमर्रा के खान-पान और प्रदूषण के कारण दूषित पदार्थ जमा हो जाते हैं. निर्जला एकादशी का व्रत शरीर से इन पदार्थों को बाहर निकालने में मदद करता है. व्रत के दौरान शरीर वसा ऊतकों (Body Adipose Tissue) का उपयोग कर एनर्जी लेता है, इस प्रक्रिया में जमे हुए कुछ विषाक्त पदार्थ भी बाहर निकल जाते हैं.
कोशिकाओं का पुनर्निर्माण (Cellular Repair)
हाल के वैज्ञानिक अध्ययनों से पता चला है कि उपवास के दौरान शरीर ऑटोफगी (Autophagy) नामक प्रक्रिया को सक्रिय करता है. इस प्रक्रिया में शरीर कमजोर या खराब हुई कोशिकाओं को तोड़कर नई और स्वस्थ नई कोशिकाओं को बनाता है.
मेंटल स्टेट (Mental Clarity)
जब हम खाते-पीते रहते हैं, तो हमारा शरीर भोजन को पचाने में काफी ऊर्जा खर्च करता है. निर्जला एकादशी जैसे व्रत के दौरान शरीर को भोजन पचाने में कम ऊर्जा लगती है, जिससे दिमाग को अधिक ऊर्जा मिलती है. इससे मानसिक स्पष्टता और एकाग्रता बढ़ती है.
ध्यान देने योग्य बातें :
निर्जला एकादशी का व्रत शारीरिक रूप से कमज़ोर या बीमार लोगों के लिए उपयुक्त नहीं है. व्रत रखने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लें.
प्रेगनेंट महिलाए , बीपी, शुगर और दिल से संबंधित किसी भी बिमारी से ग्रस्त लोगों को भी इस व्रत से बचना चाहिए.
व्रत के दौरान शरीर में पानी की कमी न हो, इसलिए व्रत तोड़ते समय तरल पदार्थों का सेवन एकदम से करके धीरे-धीरे ही शुरू करें. वरना पेट में पाचन संबंधी समस्या पैदा हो सकती है.
निर्जला एकादशी का व्रत सिर्फ आध्यात्मिक आस्था का ही विषय नहीं है, बल्कि ये हमारे शरीर के लिए भी काफी फायदेमंद है. इसलिए व्रत रखने से पहले अपनी शारीरिक स्थिति का ध्यान भी रखना जरूरी है. अगर आपका शरीर व्रत देने के लिए बिल्कुल अनुकूल है तभी इसे रखे.