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History Of Bikaneri Bhujia: कहानी बीकानेरी भुजिया की, बीकानेर के महल से निकल कर कैसे बना 9 हजार करोड़ का व्यापार

बीकानेरी भुजिया पर बीकानेर की आब-ओ-हवा, इसी का असर भुजिया के ज़ायक़े पर पड़ता है जो चटखारा लेने पर मजबूर कर देता है. बीकानेर के बाहर के रहने वाले नमकीन निर्माताओं ने बीकानेरी भुजिया बनाने की कोशिश की तो उन्हें कामयाबी नहीं मिली.

History Of Bikaneri Bhujia: कहानी बीकानेरी भुजिया की, बीकानेर के महल से निकल कर कैसे बना 9 हजार करोड़ का व्यापार
बीकानेर भुजिया.

History Of Bikaneri Bhujia: बात बीकानेर की चले और उसमें भुजिया (Famous Bikaneri Bhujia) का ज़िक्र ना हो तो बीकानेर की चर्चा अधूरी लगती है. जी हाँ जनाब, भुजिया वो चीज़ है जिसने सिर्फ़ बीकानेर या राजस्थान या फिर हिंदुस्तान ही नहीं बल्कि दुनियां के कई मुल्कों में लोगों को अपना दीवाना बना रखा है. बीकानेरी भुजिया का नाम आते ही ज़बान अपने आप चटखारा लेने लगती है.  लोगों को पहली ही बार में अपना दीवाना बना लेने वाली इस नमकीन की ईजाद कब और कैसे हुई? आइये इससे हम आपको रूबरू करवाते हैं.

अपनी तहज़ीब, मुहब्बत, सौहार्द, सद्भाव, एकता, कला और संस्कृति के मशहूर शहर बीकानेर की स्थापना सन 1482 में राव बीकाजी ने की थी. हालांकि खानपान में तो उनके वक़्त से ही बीकानेर अपने आप में एक ख़ास पहचान रखता था. लेकिन आगे चल कर राव बीकाजी के ही वंशज महाराजा डूंगर सिंह जी 1877 में जब बीकानेर के राजा बने तो उन्होंने बीकानेर के अग्रवाल परिवार के हलवाई से कोई ख़ास चीज़ बनाने की फ़रमाइश की.

जब महाराजा डूंगर सिंह जी की ज़बान से बेसाख़्ता निकला "वाह"

महाराजा की ख़्वाहिश को उन्होंने अपने दिल में महसूस किया और काफ़ी सोचने के बाद उनके दिमाग़ जो आईडिया आया उसने एक ऐसी बारीक नमकीन की शक्ल ली, जिसे मुँह में रखते ही महाराजा डूंगर सिंह जी की ज़बान से बेसाख़्ता निकला "वाह" इसी वाह ने उस बेहिसाब ज़ायक़ेदार नमकीन को भुजिया नाम दे दिया और उसे बनाने वाले अग्रवाल परिवार के बुज़ुर्ग गंगा बिशन अग्रवाल ने महाराजा की इजाज़त से इसे बाज़ार में उतारा और आम लोगों को पेश किया.

गंगा बिशन अग्रवाल बने 'हल्दीराम ' 

उस वक़्त बीकानेर में एक ही बाज़ार हुआ करता था जिसे बड़ा बाज़ार कहा जाता था. गंगा बिशन अग्रवाल की दुकान वहीं थी और वहीं बैठ कर उन्होंने इस नायाब चीज़ को जब लोगों के सामने पेश किया तो लोगों ने इसे सर-आंखों पर बिठा लिया और अपने रोज़ाना के खान-पान का एहम हिस्सा बना लिया. धीरे-धीरे भुजिया पूरे शहर में मशहूर हो गयी और गंगा बिशन अग्रवाल ने इसे नाम दिया हल्दीराम. बाद में गंगा बिशन भी हल्दीराम के नाम से ही मशहूर हो गए. जब बाहर से वालों ने इसका ज़ायक़ा चखा तो वे भी हैरत में पड़ गए. क्यूंकि ऐसी नमकीन उन्होंने भी पहली ही बार चखी थी.

यहां की हवा में बसा सौहार्द और लोगों के दिलों में क़ायम अपनापन इसे असली ज़ायक़ा देता है. इसलिए जब भी आप चाय पियें तो बीकानेरी भुजिया ज़रूर साथ में रखे और इसे चबाते वक़्त बीकानेर की तहज़ीब को महसूस करें.

बीकानेर के बड़े बाज़ार से देश में छाया स्वाद 

इसके ज़ायक़े ने उन्हें ऐसा बाँधा की बीकानेर आने वाले लोग जाते वक़्त भुजिया पैक करवा कर अपने साथ ले जाने लगे. जब बीकानेर की भुजिया देश के दुसरे हिस्सों में पहुंची तो इसकी डिमांड बढ़ती गयी और हल्दीराम अग्रवाल बड़ा बाज़ार स्थित अपनी दूकान में बैठ कर भुजिया तैयार करते और ना सिर्फ़ बीकानेर बल्कि देश के दुसरे इलाक़ों में भेजते. उनकी दुकान में भुजिया तैयार होने की वजह से ही बड़ा बाज़ार के शुरू वाले हिस्से का नाम भी भुजिया बाज़ार ही पड़ गया.

दिलो दिमाग़ पर छा जाता है बीकानेरी भुजिया का स्वाद

दिलो दिमाग़ पर छा जाता है बीकानेरी भुजिया का स्वाद

भुजिया की डिमांड बढ़ती गयी और हल्दीराम अपने बेटो और पोतों के साथ इस डिमांड को पूरा करने में लगे रहे. अब भुजिया का उत्पादन बड़े स्तर पर होने लगा था. हल्दीराम के परिवार ने भुजिया का निर्यात भी करना शुरू किया. धीरे-धीरे इसने एक छोटी इन्डस्ट्री की शक्ल ले ली और अब इस काम में दुसरे लोग भी आने लगे थे. बड़े लेवल पर इसका निर्यात शुरू हुआ. आगे चल कर भुजिया के निर्माता हल्दीराम अग्रवाल का नाम भुजिया का पर्याय बन गया और एक ब्रांड के तौर पर मशहूर हुआ.

भुजिया की ईजाद करने का सेहरा जहां हल्दीराम को जाता है वहीं इसे उद्योग के रूप में स्थापित करने का श्रेय भी उन्हीं के परिवार को जाता है.  उन्होंने भुजिया बनाने की इस कला को सिर्फ़ अपने तक ही सीमित नहीं रखा बल्कि बीकानेर के कई लोगों को अपने साथ जोड़ा और उन्हें भी भुजिया बनाने की कारीगरी सीखा कर उनके लिए रोज़गार का साधन मुहैया करवाया.

बीकानेर की आबो-हवा में है भुजिया का स्वाद 

बीकानेरी भुजिया की एहम बात ये है की देश के दुसरे इलाक़ों में चने के बेसन से नमकीन तैयार की जाती है, वहीं बीकानेरी भुजिया मोठ या मूंग के आटे से तैयार होती है. इसमें कई तरह के मसाले मिलाए जाते हैं जो इसे असल ज़ायक़ा प्रदान करते हैं. सबसे ख़ास है बीकानेर की आब-ओ-हवा, इसी का असर भुजिया के ज़ायक़े पर पड़ता है जो चटखारा लेने पर मजबूर कर देता है. बीकानेर के बाहर के रहने वाले नमकीन निर्माताओं ने बीकानेरी भुजिया बनाने की कोशिश की तो उन्हें कामयाबी नहीं मिली. यहाँ तक की कई लोग बीकानेर से ही भुजिया निर्माण की सामग्री भी लेकर गए, उसमे पानी भी बीकानेर का ही मिलाया गया, लेकिन उस भुजिया में वो स्वाद नहीं आया जो बीकानेर में बनी भुजिया का होता है.

भुजिया बन गई हल्दीराम ब्रांड

भुजिया बन गई हल्दीराम ब्रांड

भुजिया बन गई हल्दीराम ब्रांड

बीकानेर में भुजिया के अब कई ब्रांड्स हैं जो देश-विदेश में मशहूर हैं. अब ये एक बड़ी इन्डस्ट्री बन चुका है. हल्दीराम अग्रवाल के वंशजों ने बड़े पैमाने पर कंपनियां बना कर बीकानेर की भुजिया को पूरी दुनियां में पहुँचाया है.

उनके पोतों में कुछ ने हल्दीराम ब्रांड को बरक़रार रखा है वहीं उनके एक और पोते शिव रतन अग्रवाल ने बीकाजी ब्रांड बना कर अपने दादा की मेहनत में चार चांद लगाए हैं. भीखाराम-चांदमल ब्रांड हल्दीराम परिवार का ही एक ब्रांड है.

कुछ समय पहले तक बीकानेर के बाहर के लोगों ने भुजिया बना कर उसे बीकानेरी भुजिया के नाम से बेचना शुरू किया था. लेकिन अब बीकानेर भुजिया को पेटेंट मिल चुका है और अब बीकानेरी भुजिया नाम का इस्तेमाल सिर्फ बीकानेर में बनी भुजिया के लिए ही हो सकता है.

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